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३०, बर्ष ३३, कि.२
अनेकान्त
होकर पिता के कुल का नाश करेगी, ऐसा सुनने पर प्राप्त हो जाता है । घड़े के कमल पर एक रूपवती युवती मन्दोदरी नवजात शिशु बालिका को गले में पत्थर बांध प्राप्त होती है। हल की नोक से प्राप्त होने के कारण नदी में फिकवा देती है।
उस युवती का नाम सीता रखा गया। दूसरी एक कथानुसार 'रावण' स्वयं ही कन्या को रक्तजा-प्रदभत रामायण की कथा इस प्रकार हैमजषा में बन्द करवा कर समुद्र मे फिकवा देता है।
दण्डकारण्य में गृत्समद नाम के ऋषि थे, उनकी पत्नी का जनक उसे समुद्र-तट पर पाते हैं।
प्राग्रह था कि उसके कुक्ष से स्वयं लक्ष्मी अवतरित हों, जावा के 'सरेतकण्ड' की कथा इस प्रकार से है :- प्रतएव ऋषि पत्नी की अभिलाषा पूर्ण करने के लिए प्रति मन्दोदरी के गर्भ से श्री (देवी) का अवतार कन्या रूप मे दिन थोड़े से दूध को अभिमन्त्रित कर उसे एक घड़े मे होता है। मन्दोदरी को ज्योतिषियों ने पूर्व मे ही प्रागाह इकट्ठा करने लगे । एक दिन रावण राजस्व उगाहने ऋषि कर दिया था कि इस गर्भ से जिस कन्या का जन्म होगा के प्राश्रम में प्राता है। राजस्व के रूप में वह ऋषि के उस पर रावण भविष्य में प्रासक्त होगा। मन्दोदरी नव. शरीर में बाण की नोक च भो-चुभोकर रक्त की बूंद उसी जात को समुद्र मे बहवा देती है। मतिली निवासी 'कल'
घर्ड में भर कर ले जाता है। घड़ा मन्दोदरी को सौंप नामक ऋषि को वह मिलती है और वह उसका लालन
बतला देता है कि घड़े का रस विष से भी तीब है। वह पालन करते हैं।
सावधानी बरते। रावण से किसी कारण प्रसन्तुष्ट होकर 'पना'-'श्याम' देश की 'राम जियेन' कथा इस प्रकार
मन्दोदरी उस घड़े का दूध मिश्रित रक्त पान कर प्राण हैं-दशरथ के यज्ञ के 'पायस' का प्रष्टमांश भाग मदोदरी
देना चाहती है। वह मरती नहीं, बल्कि गर्भवती हो
सी खाकर एक कन्या को जन्म देती है। यह कन्या यथार्थतः
जाती है। पति की अनुपस्थिति में गर्भ धारण हो जाने से लक्ष्मी का अवतार थी। (भानन्द-रामायण अनुसार एक भयभीत हो वह उस गर्भ को कुरुक्षेत्र जाकर पृथ्वी में गाड गिद्ध (गोघ) कैकेयी के हाथ का पायस छीनकर उड़ गया पाती है, जोकि हल जोतते समय जनक को शिशु कन्या था और वह उस पायस को अजनी पर्वत पर फेंक देता रूप में प्राप्त होती है। जनक महिषी कन्या को पालता है है।) ज्योतिषियों की भविष्य वाणी सुन रावण भयभीत और सीता नाम रक्खा जाता है । (सर्ग ८) इस कथा का हो नवजात कन्या को घड़े में रख विभीषण से नदी में भाव भी सिंहलद्वीप राम-कथा के समान ही है। फिकवा देता है। नदी में कमल उत्पन्न हो घड़े का प्राधार एक भारतीय कथानमार-मन्दोदरी केवल जिज्ञासा बनाता है। लक्ष्मी प्रपनी दिव्य शक्ति के योग से उस घड़े वश ही घड़े का रक्त पान कर लेती है । प्रतिफल एक कन्या को जनक के पास, जो उस समय नदी-तट तपस्या-रत
को जन्म देती है । रावण के काम के भय से वह नवजात रहते हैं, पहुंचा देती है। जनक घड़े को वन मे ले जाकर
कन्या को उसी घड़े में रख समुद्र में डलवा देती है । घड़ा एक पेड़ के नीचे रखकर प्रार्थना करते हैं कि यदि यह जनक के राज्य में पहुंचकर कृषकों द्वारा जनक को प्राप्त कल्या नारायण के अवतार की पत्नी बनने वाली हो तो होता है। इस भूमि में एक कमल उत्पन्न हो प्रमाण दे। उसी क्षण अग्निजा:-'प्रानन्द' रामायणानुसार राजा 'पपाम' वहां एक कमल उत्पन्न हो जाता है। जनक कमल पर लक्ष्मी की उपासना कर उन्हें पुत्री रूप में प्राप्त करता है। घड़ा रख मिट्टी से ढककर पुनः तपस्या करने चले प्राते हैं। कन्या का नाम 'पजा' पड़ता है। कन्या के स्वयंवर में तपस्या से सन्तोष न प्राप्त होने पर १६ वषाँ के पश्चात् पिता यद में मारा जाता है। वह अग्नि में प्रवेश कर वह उसी वृक्ष के नीचे जाकर धड़ा खोजते हैं। घड़ा न जाती है । एक दिन वह अग्नि से बाहर निकलती है, उसी मिलने पर सेना बुला घड़े की खोज कराते है, फिर भी समय 'रावण' प्रा जाता है। रावण से साक्षात होते ही पड़ा नहीं मिलता प्रतः वह निराश हो लोट प्राते हैं। 'पद्मजा अविलम्ब मग्नि में प्रवेश कर जाती है। रावण प्र:एक दिन हल चलाते समय जनक को अपने पाप घड़ा तुरन्त पग्नि को बझा देता है। पग्नि की राख में युवती