________________
सीता-जन्म के विविध कथानक
afone की तब इस प्रकार प्राकाशवाणी हुई कि "मेनका के द्वारा उन्हें एक पुत्री प्राप्त होगी, जो सौम्यं में अपनी माता मेनका सरीखी होगी। धागे बढ़ने पर भूमि से निकली कन्या को 'जनक' ने देखा । पुनः प्राकाश-वाणी हुई " मेनकायाः समुत्पन्ना कन्येयं मानती तब" प्रर्थात् मेनका से उत्पन्न यह 'कन्या तुम्हारी मानस पुत्री है।
वाल्मीकि उत्तरकाण्ड मे 'सीता' के पूर्व जन्म से सम्बन्ध जोड़ती एक कथा इस प्रकार से है:- ऋषि 'कुशध्वज की पुत्री 'वेदवती' नारायण को पति रूप में प्राप्त करने के लिये हिमालय पर तप कर रही थी। उसके पिता की भी यही अभिलाषा थी कि 'नारायण को वह 'वर' रूप मे प्राप्त करे। किसी राजा ने ऋषि से पत्नी रूप मे कन्या की मांग की। ऋषि के इन्कार करने पर क्रोधित हो राज ने ऋषि की हत्या कर दी। एक दिन 'रावण' तप करती 'वेदवती' को देख कर उस पर मोहित हो गया और उसे अपने साथ ले जाने के लिये उसका फोटा (वेद) पा वेदवती का हाथ कृपाण बन गया और बहू उस कृपाण से अपना झोंटा काट बेती है। और अपने को रावण से मुक्त कर लेती है। वह 'रावण' को शाप देती है कि मैं तुम्ह रे नाश के लिये अयोनिजा के रूप में पुनः जम्म लूंगी। इतना कह यह अग्नि में प्रवेशकर मृत्यु प्राप्त करती है। यही वेदवती जनक की यज्ञ भूमि की जमीन से उत्पन्न होती है । उपर्युक्त कथानक कुछ ही परिवर्तन के साथ श्रीमद्देवी भागवत पुराण (९-१६) तथा ब्रह्मवैवर्त पुराण के प्रकृत खण्ड (प्र० १४ ) में भी हैं। यह कथा इस प्रकार है किकुशध्वज धौर उनकी पत्नी मालवती लक्ष्मी की उपासना कर उन्हें पुत्री रूप में प्राप्त करने का वर प्राप्त कर लेते है। जन्म लेते ही नवजात कन्या (लक्ष्मी) वैदिक मन्त्रों का गान करती है, इसीलिये शिशु कन्या का नाम वेदवती रक्खा जाता है। युवती होने पर नारायण के रूप को 'वर' (पति) रूप में प्राप्त करने के लिये वेदवती तपस्या करती है, रावण द्वारा अपमानित होने पर वह उसे 'शाप' देती है और भूमि से उत्पन्न हो 'सीता के रूप मे वह पापपूर्ण करती है।
'रावणात्मजा' :- 'सोता' जन्म की कथाओं में सर्वाधिक - प्राचीन कथा में सीता को रावण की पुत्री माना गया है।
Re
भारत, तिब्बत, खोतान (पूर्वी तुर्किस्तान) हिन्दएशिया और क्याम में हुये यह कथा मिलती है। भारत में हमें इस कथा का प्राचीनतमरूप गुणभद्राचार्य कृत उत्तरपुरान मे प्राप्त होता है । कथा इस प्रकार है:
1
" मलकापुरी के राजा 'प्रमितवेग की पुत्री मणिमती' विजय पर्व (विषय) पर तपस्या कर रही थी। 'राजन' उसे प्राप्त करने का प्रयास करता है । सिद्धि में विघ्न होने से मणिमती हो निदान सहित (मरण समय की इच्छा) करती है कि मैं रावण की पुत्री उत्पन्न होकर उसका नाश करू ।' मन्दोदरी के गर्भ से उसका जन्म होता है । नका मे भूम्यादि अनेक उपद्रव होते हैं ज्योतिषियों के अनुसार नवजात कन्या भविष्य में रावण की मृत्यु का कारण बनेगी ।" सुन रावण 'मारीच' मंत्री को उसे दूर देश मे पृथ्वी में गाड़ प्राने का प्रादेश देता है । मन्दोदरी परिचयात्मक एक पत्र व कुछ घन तथा कन्या को एक मया मे रस 'मारोच' को सौंप देती है। मारीच वह मञ्जूषा मजुवा मिथिला की भूमि में गाड़ जाता है। कृषकों को मञ्जूषा उसी दिन मिलती है और वह उसे राजा जनक के पास ने जाते है। पृथ्वी से प्राप्त वस्तु सदा से नियमतः राजा की होती पायी है। मञ्जूषा से जनक को कन्या प्राप्त होती है जिसे जनक की रानी वसुधा अपनी कन्या जान उसका लालन-पालन करती है। (उत्तर-पुराण- पर्व ६८ )
महाभागवत - देवीपुराण (१०वीं - ११वीं श० ई०) मे भी इस कथा का उल्लेख इस प्रकार से है :- सीता मन्दोदरीगर्भे सभूता चारुरूपिणी, क्षेत्रजा तनयाप्यस्य रावणस्य रघुतम (०४२०६२ ।)
सोमसेन कृत जैन रामपुराण में सीता को रावण की चौरस पुत्री माना गया है। मिथिला में गाड़ी गयी। जनक की रानी के नव प्रसूत बालक को एक देव जिस दिन हरण करता है उसी दिन कृषकों द्वारा यह मा (जिसमे नवजात रावण पुत्री थी) जनक को प्राप्त होती है।
'सीता' की कुछ अन्य कथायें ऐसी भी प्राप्त होती हैं जिनके धनुसार मन्दोदरी के गर्भ से उत्पन्न होने के बाद हो वह नदी में फेंकी जाती है। कश्मीरी रामायणानुसार रावण की अनुपस्थिति में मंदोदरी को एक पुत्री उत्पन्न होती है । जन्म- पत्रानुसार वह विवाहित होने पर वनवासी