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२८ वर्ष ३३०२
सीता के जन्म परम्परा सम्बन्धी प्रारम्भिक तथ्यो के प्रभाव के कारण नाना प्रकार की कथाओंों की सर्जना के आधार पर ही किये हैं, जनक, रावण प्रोर टशरथ, तीनों को कथाकारों ने सीता का पिता मान लिया है। डा० साहब ने 'सीता जन्म' के कथा-ग्रन्थों का विभाजन निम्न प्रकार से किया है :
१. जनकात्मजा महाभारत, हरिवश, पउमचरिय, घादिरामायण | २. भूमिना (क) वास्गीकि रामायण तथा अधिकाश राम-कच यें ।
(ख) दशरथ व मेनका की मानसी पुत्री (वाल्मीकि है :केसरीपाठ)
(ग) वेदवती' तथा लक्ष्मी का अवतार ।
३. रावणात्मजा - (क) गुणभद्राचार्य कृत- उत्तर-पुराण (थ्वी ई० शती) महाभागवत पुराण
(ख) कमीरी- रामायण ।
प्रनेकान्त
(4) तिब्बती रामायण ।
(घ) मेरतकण्ड मेरी समपानी पाठ (ड) राम कियेन (रे ग्रामकेर ?)
सोता व लका सम्बन्धित पद्मजा रखना निजा (क) 'पद्मा' दशावतार चरित (११ वी० ई० शती)
गोविन्दराज का वाल्मकि रामायण पाठ |
(ख) रक्ताद्भुतरामायण (१५ बी० ई० हती) । सिंहलद्वीप की रामरुथा, तथा अन्य विवि भारतीयय बुसान्त
(ग) 'प्रग्निजा ' - श्रानन्द- रामायण ( १५ वी० ई० शती) पाश्चात्य वृत्तान्त |
४. दशरथात्मजा दशरथ जातक । जावा के राम कलिंग । मलय के मेरी राम तथा हिकायतराम महाराज
रावण ।
"जनकात्मजा" को चार राम-स्थायें पायी जाती है। किन्तु 'अयोनिजा 'सीता' के अलोकिक जन्म की धार कही भी निर्देश नहीं किया गया है, सर्वत्र ही वह विशुद्ध जनकात्मजा ही है । 'रामोपाख्यान' के प्रारम्भ मे लिखा है कि "विदेहराज जनक: सीता तस्यात्मजा विभो । 'हरिवंश' की राम कथा में भी सीता की अलौकिक
उत्पत्ति का कोई भी उल्लेख नहीं है। पउमचरिय में हो स्पष्ट ही जनक की भोरस पुत्री मानी गयी है। प्राचीनगायाधों तथा चादि रामायण में भी जनक की पुत्री ही भोरस पुत्री मानी गयी है । "जनकस्य कुले जाता देवमायेव निमिता मनसम्पन्ना नारीणामुत्तमा वधू ।
" (बालकाण्ड ) तथा वायु पुराण' मे यज्ञ को तीन नवजात शिशु
'विष्णु पुराण' (४.५-३० ) का क्षेत्र ठीक करते समय जनक दो पुत्र एक पुत्री प्राप्त होने का उल्लेख है । 'पउमचरिय' मे 'मीता' की जन्म कथा इस प्रकार
- यह ग्रन्थ विस० ६० का प्राचार्य विमल सूरि रचित प्राकृत भाषा का है। इस ग्रन्थ के अनुसार महाराज 'जनक' की 'सीता' धोरस पुत्री है महाराज जनक की भार्या 'पृथ्वी देवी' रानी के गर्भ से युगल-सन्तान एक पुशी व एक पुत्र- उत्पन्न होती है । पुत्र को पूर्व जन्म का वंरी सौरगृह से हरण कर ले जाता है । कन्या का लालनपालन पृथ्वी देवी करती है। कन्या के युवती होने पर उसका विवाह दशरथ-पुत्र 'राम' के साथ होता है।
भूमिजाः प्रचलित वाल्मीकि रामायण में भूमिजा सीता के जन्म का वर्णन दो बार मे कुछ विस्तार से मिलता है। एक दिन राजा 'जनक' जब यज्ञ भूमि तैयार करने के लिये 'हम' चला रहे थे तो एक छोटी कन्या मिट्टी से निकली, उसे उन्होने उठा लिया और पुत्री रूप में उसका लालन-पालन हुआ तथा 'सीता का नाम रक्खा ।
'विष्णु पुराण' के अनुसार 'जनक' पुत्रार्थ- पश-भूमि तैयार कर रहे थे । 'पद्म पुराण के उत्तर खण्ड के बंगीय - पाठ में भी 'जनक' द्वारा पुत्र कामेष्टि यज्ञ की भूमि तैयार करने का लेख है । इस पाठ में यह भी है कि उस भूमि से उन्हें एक स्वर्ण धनुष भी मिला था, जिसे खोलने पर 'जनक' को एक शिशु-कन्या मिली जिसका नाम 'सीता'
रक्वा गया।
गौड़ीय और पश्चिमी पाठो मे भूमिजा सीता की जन्मकथा इस प्रकार है कि- "राजा जनक को कोई सन्तान न थी । एक दिन जब वह यज्ञ भूमि के लिये 'हल' चला रहे थे तो उन्होने प्राकाश में लावण्यमयी प्रहरा 'मेनका' को देखा और मन मे सन्तानार्थ उसके साहचार्य की