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सीता-जन्म के विविध-कथानक
श्री गणेणप्रसार जंग, वाराणसी
भारतीय वाङमय में 'सीता' का प्रमख-स्थान है, है। इनके कार्य-क्षेत्रों के अनुसार ये तीन वगो में विभाजित किन्तु उसकी उत्पत्ति के सम्बन्ध में प्रतिप्राचीन काल से हैं १.धुलोक के, २. अन्तरिक्ष के और ३ पृथ्वी के इनके बहुत अधिक विवाद है।
पतिरिक्त अन्य प्रकार के देवतामों की कल्पना भी की वैदिक-साहित्य में हमें दो भिन्न 'सोतानों' का गयी है, जिनका कार्यक्षेत्र बहुत सीमित माना गया है। विवरण प्राप्त होता है, जिनका उल्लेख ऋग्वेद से लेकर इनमे क्षेत्रपति, वास्तोपति (घर का देवता), सीता, और सम्पूर्ण वैदिक साहित्य में बिखरा हुप्रा है। 'लागल-पद्धति उर्वरा (उपजाऊ भूमि) प्रधान है। ऋग्वेद के सबसे की चर्चा तो अनेक स्थानों पर है ही; किन्तु उनमे सीता प्राचीन अश (२.७ मण्डल) मे केवल एक ही सूक्त में कृषि का मनुष्य रूप में चित्रण नहीं किया गया है। 'ऋग्वेद' से सम्बन्धी शब्दो का प्रयोग है और वह सूक्त दसवें मणल लेकर 'गृह्यसूत्रो' तक 'सीता' सम्बन्धी सामग्री का अध्ययन के समय का माना जाता है (४.५७) यही "ऋग्वेद" का कर हम निःसंकोच कह सकते है कि 'सीता' का व्यक्तित्व
एक मात्र स्थल है जहाँ सोता मे व्यक्तित्व और देवत्व का शताब्दियों तक कृषि करनेवाले प्रायों की धार्मिक चेतना मारोप किया गया है। में जीता रहा।
दूसरी 'सीता' का परिचय हमे केवल तत्तिरीय-ब्राह्मण 'ऋग्वेद' का सूक्त प्राय: एक ही देवता से सम्बन्ध । से प्राप्त होता है, जहाँ सीता सावित्री, 'सूर्य-युत्री" और रखता है, किन्तु जिस सूक्त मे 'सीता' का उल्लेख है, उसमे 'सोम' राजा का प्रारूयान विस्तार पूर्वक दिया गया है। कृषि सम्बन्धी अनेक देवतापो से प्रार्थना की जाती है। कृष्णयजुर्वेद' में भी यह कथा-प्राप्त होती है। बहुत सम्भव है कि प्रार्थनायें अनेक स्वतन्त्र-मन्त्री का 'कृषि' की अधिष्ठात्री देवी सीता' और सावित्री का अवशेष हों जो किसी एक सूत्र मे सकलित हो जाने के अन्तर यह है कि एक तो उसमे देवत्व का प्रारोप है और पश्चात् चोथे मण्डल के अन्तर्गत रख गयी हो। उक्त ठे दूसग उसका उल्लेख धागे चलकर बराबर होता रहा है। मण्डल के सातवें छन्द मे देवी सीता की प्रार्थना की कोपकारी ने 'सीता' शब्द का प्रथं किया है :-(क) गयी है:
वह रेखा जो जमीन जोतते समय हल की फाल से पड़ती 'हे सौभाग्यवती (कृपादृष्टि में) हमागे पोर उन्मुख जाती है (कूड) । (ख) हल के नीचे जो लाहे का फल हो। हे सीते । तेगे हम बन्दना करते है, जिसम तू हमारे लगा रहता है, उसे 'मोना' कहा जाता है। (ग) मिथिला लिये सुन्दर फल और धन देनेवाली होवे ।(६)
क. राजा 'सीरध्वज' जनक की कन्या, जो रामचन्द्र की _ 'इन्द्र' सीता को ग्रहण करे, पूषा (सूर्य) उसका पत्नी थी। (ग) दही, जानकी। संचालन करे। वह पानी से भरी (सीता) प्रत्येक वर्ष हमे वैदिक-ग्रन्थो के अनुमार "सीता' वस्तुतः 'जनक'(धान्य) प्रदान करती रहे ।। (७)।
पुत्री नही थी उन्हे वह चाहे जिस रूप में भी प्राप्त हुई ऋग्वेदीय (तीनों) सूक्तों में भी 'कृषि कर्मारिप' हो मंयोग बगही प्रान हुई थी। जैन-कयाकार उन्हें परिच्छेद के अन्तर्गत उक्त सूतो का उल्लेख हुश्रा है। 'जनय' को मोरम-पुत्री मानत है। बोद्ध जातक में वह 'सीता' के नाम जो दूमरी प्रार्थना वैदिक माहित्य में दशा-पुणे और मम' की मगो बहिन और पत्नी मानी मिलती है वह 'सोता पुजति' मत्र का अंश है। यह मत्र गयी। यजर्वेदीय सहितामों में भी है और अथर्ववेद मे भी।
'डा. रेवरेंफादर कामिल बल्के' ने अपने शोध वैदिक साहित्य में जिन देवतामों का उल्लेख है. वे न्ध राम कथा' में 'सीता' की जन्मकथाप्रो को चार अधिकतर प्रकृति देवता हैं अर्थात् प्रभावशाली प्राकृतिक- भागों में विभकन किया 2-१. जनकात्मजा २ भूमित्रा, शक्तियों में देवतामों के स्वरूप को कल्पना कर ली गयो ३. गवणात्मजा पोर ४. दशरथात्मजा। ये मभी विभाजन