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२६, वर्ष ३ कि. २
अनेकान्त
मां लिया । चैत्य वास खुलो थयो। पाछल थी धनेश्वर भक्तामरस्य सद्वत्ती, रलचन्द्रेण हरिणा ॥ संमात मांज स्थीर वास रहया ।
कथा रूपीकृतं चेदं, भक्तामर प्ररूपणम । हंबड जाति प्राजिवी कार्ये भिन्न भिन्न जगहाए गया। श्लोका सहस्त्रमिद, रत्नचन्द्रेण जल्पितम || मेवाड़. बागड़, गुजरात प्रादि अनेक राज्यो मा ३ भक्तामर की यही टीका ब्र. रायमलकृत भी मानी दीवीयो ने भोम देता, तेनमेल्यो देवी कोपी, घणा नष्ट जाती है। इस टीका का सार 'भक्तामरकथा' के नाम की पया, शेष होना चारी थया। नाथग प्रमुख थी भ्रष्ट श्री उदयलाल जैन ने हिन्दी साहित्य कार्यालय बम्बई से थया ।
सन् १९१४ मे प्रकाशिन करवाया था। उसमे इस टीका ए समए ११२१ जिनवल्लभ गणि ना सर्द्ध शिष्य को प्रशस्ति का हिन्दी में सार इस प्रकार दिया है :पाछा प्रतिबोधि जैन धर्म स्थिरकरिया तथा घनेश्वर मूरि जैसे कि प्रेमवश हो, मैंने यह श्रेष्ठ और संक्षिप्त ना पापला चार्यों ए संभाल लीधी। ५ हजार स्व श्रावक भक्तामर की कथा लिखी है। कर्या । से मांधी पण बाकी दिगम्बरी ए स्व धर्म दाखिल श्री हुंबड वशतिलक मह्यनाम के एक अच्छे धनी हुए कर्या, जे यी थोड़ा श्वे० छ।
है। उनको विदुषी भार्या का नाम चम्पा बाई था। वे दशा बीसा यया वस्तुपाल तेजपाल न संगे । इति बड़ी धर्मात्मा और श्रावक व्रत को धारक यों। उनके पुत्र लेखन प्रकाशित वो २००३ प्रताबगढ़े लि० हुंबड पुराण जिनचरण कमल के भ्रमरपूर्ण जिन भक्त, मुझ रायमल्ल ने पी जैन रत्न सूरिणा।
वादिचन्द्र मुनि को नमस्कार कर उनकी कृपा से, यह भक्ता"पत्र एक अभय जैन ग्रंथालय प्रति नम्बर ७७७०” मर की छोटी सी पर मरल पोर सुबोध कथा लिखी है।
धनेश्वर सूरि नाम के तो कई प्राचार्य हो गये है। ग्रीवापुर मे एक मही नाम की नदी है। उसके किनारे मत: सं०८२० वाले किम गच्छ के किसके शिष्य थ ? पर चन्द्रप्रभ भगवान वा बहुत विशाल मन्दिर है। उसमें नहीं कहा जा सकता पर १९२१ वाले जिनवल्लभ गणि एक ब्रह्मचारी रहत है। उनका नाम है कर्मसी। उन्होंने तो नवाग वत्तिकार "अभय देव मूरि" के पट्टघर थे और मुझे भक्तामर की कथा लिख देने को कहा, उनके अनुरोध खरतरगच्छ परम्परा के प्रसिद्ध विद्वानहरा है। हबड से मैने यह कथा लिखी है। जाति सम्बन्धी और किसी को जो भी विवरण ज्ञात हो, यह कथा के पूर्ण करने का सं० १६६७ पौर दिन प्रकाश मे लायें।
मासाढ़ सुदी ५ बुधवार था। हुंबड जाति वाले दिग० भाई गुजरात प्रादि मे काफी बड जाति के मबसे वडे कवि ब्र० जिनदास है भोर बसते है । डूंगरपुर प्रादि मे कुछ हुंबड के घर श्वे० प्रादि उनके भ्राता सकलकीति भट्टारक भी अच्छे विद्वान थे। के भी हैं। हरड जाति के कुछ ग्रंथकार भी हुए हैं। जनगणना-सन १९१४ में प्रकाशित भारतवर्षीय जिनमे से भक्तामर वत्ति को प्रशस्ति रतनचन्द्र या राय- दिग० जन डायरेक्टरी' के पृष्ठ १४२० के अनुसार दशा मल की नीचे एक दी जा रही है :
हंबड मध्यप्रदेश मे ४५, राजपूताना मालवा में १०६४५, "सालन्दोगुरो भ्रातुः, जस्ये तिवणिनः मतः । बंगाल बिहार में ३, गुजरात महाराष्ट्र में ७३९२ कुल पादस्नेहन सिद्ध य, वृतिसारसमुच्चया ।।३।। जनगणना १८०७६ और बीसा हुंबड राजस्थान मालवा चक्र तिमिमां स्तवम्य नितरा नत्वाऽप वादीन्दुकम ॥५ ८४६, गुजरात महाराष्ट्र में १७०६ कुल २५५५ जन सत्तवृष्णयदि ते वर्ष, षोडशारुये हि सवते ।
सख्या थी। अर्थात कुल २०६३४ जनसंख्या थी। इस प्राषाढ श्वेतपक्षस्य पञ्च मया बुधवार के ॥६॥ जाति के विशिष्ट व्यक्तियों पोर महत्व का इतिहास ग्रीवापुरे महासिंहो-सत्ष (१) भागं समाश्रिते । प्रकाश में माना चाहिए। प्रोतुङ्गा दुगं सयुक्ते, श्री चन्द्रप्रभसनि ।।७।।
जैन जातियों में एक-एकजाति के हजारों-लाखों व्यक्ति वणिनः कर्मसीनाम्नो, वचनाम्मय काऽरचि ।
(शेष पृ० ३२ पर)