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________________ ३२, ३३,०२ अनेकान्त परिवार को मोह विघटित होता है। समाधान :-महाराज शुद्धोधन का जीव (उस समय) भरतकुमार रामपंडित से वाराणसी लोट पाने और राजा दशरथ बुद्ध की माता माया देवी का जीव रामपंडित राज्यदण्ड सम्हालने का प्राग्रह करते हैं। तब रामपंडित की माता, यशोधरा का जीव (बद्ध-पत्नी) 'सीता देवी' भरतकुमार को बतलाते हैं कि पिता ने १२ वर्षों तक और प्रानन्द का जीव भरतकुमार और स्वयं बुद्ध का जीव वाराणसी में उन्हें प्रवेश के लिये निषेध किया था। अभी रामपंडित था। तीन वर्ष अवधि मे बाकी है। तीन वर्षों के बाद ही मैं तथागत बद्ध यह राम-कथा (जातक) जोतवन मे पाऊंगा। भरतकुमार रामपंडित की तृण-पादुका लेकर किसी गहस्थ को "जव उसका पिता मर गया था पौर मक्ष्मण पौर सीता देवी सहित वाराणसी वापस लौट पाते शोक के वशीभत हो उसने सम्पूर्ण कार्य करना बन्द कर दिया था तो उसे उपदेश देने के लिये ही उपरोक्त जातक सिंहासन पर पादुका प्रतिष्ठित कर के मत्री के रूप कहा कि प्राचीनकाल मे जब पिता के मरण पर किञ्चित. में भरतकुमार शासन की बागडोर सम्हाल कर शासन की मात्र भी शोक नही करते थे । वाराणसी के राजा दशरथ व्यवस्था करते है। मनुचित कार्य या न्याय पर पदुकाये के मरने पर राम ने धंय्यं धारण किया था। उपरोक्त पापस मे पात-प्रतिघात करने लगती। तीन वर्षों के प्रकार से बहलता से मीता जन्प के विविध कथानक प्राप्त पश्चात् भवधि पूर्ण होने पर रामपंडित वाराणसी लोट होते है । यहाँ उदाहरण रूप में प्रस्तुत किये गये है । माते हैं, पोर शासन सम्हालते है। सीतादेवी (बहिन) से उनका विवाह होता है, भोर १६००० सोलह हजार वर्षों ठठेरी बाजार (वसन्ती कटरा) तक शासन कर अन्त में स्वर्ग को प्रस्थान करते है। वाराणसी-१ (पृष्ठ २६ का शेषाश) हैं, उनमें कई तो काफी सम्पन्न भी हैं, उन्हे जातीय यद्यपि प्रमाणिक इतिहास की सामग्री कम ही मिलती इतिहास तैयार कराने में प्रयत्नशील होना चाहिये । प्रत्येक है फिर भी खोज करने पर बहत-सी ज्ञातव्य बातें प्रकाश व्यक्ति को अपने जातीय- गौरव को सुरक्षित रखने एव में पायेंगी ही। उपेक्षा करने पर जो कुछ सामग्री अभी प्रकाश में लाने में सचेत होना चाहिये । डूगरपुर के हृवड प्राप्त है, वह भी नष्ट हो जायगी। प्रत्येक जाति वालों के जैनमन्दिर व वहाँ के हुंवडों सम्बन्धी मेरे लेख प्रकाशित हो वही बंचे कुलगुरु भी रहे हैं उनके पास भी ऐतिहासिक सामग्री मिल सकती है। जिन खोजा तिन पाइयाँ ।" 00 (मावरण पृष्ठ ३ का शेषांश) University of BE Sushma Mishra Evalution of the Concept Lucknow of No-violence in India up to 2nd Century B.C. भोपाल विश्ववि. भोपाल ३० मार० सी० जन जैनदर्शन के निश्चय और व्यवहार University of ३१ Rajni Rani A Comparatiue study of Lucknow Godd eses with similar Characteristics in Hindu Buddhist and Jain pantb-Snoe Jabalpur university Dr. P.C. Jain ३२ Prup Dr. C. D. Jaln sristividya evam १९७१ में Deptt. of Sharma Pauranik sristividya Ka 391fa Philosophy vikasa veda Ke sandarbh प्राप्त men Tulsatmak adhyayana 000
SR No.538033
Book TitleAnekant 1980 Book 33 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulprasad Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1980
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size14 MB
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