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क्या तिसोमपणती में वर्णित विभवार्थ हो वर्तमान विध्य प्रदेश है ?
काल के प्रभाव से यद्यपि वर्तमान विन्ध्य प्रदेश में नेक प्रकार के भौगोलिक परिवर्तन हो गए हैं। नगरीयविकास, संख्या परिवर्धन एवं नाम-परिवर्तन भी क्रमशः होता रहा फिर भी कुछ नगरों में नाम साम्य भभी भी दृष्टिगोचर होता है। यथा :
ति० प० में उल्लिखित नगर वि० प्र० के वर्तमान नगर अपने जिलों के साथ
मेखला - मंकाल (शहडोल) सूर्यपुर-सुरजपुर ( टीकमगढ़)
पलका कला (पन्ना)
लोहार्गल - लोध या लोघरी (शहडोल) चित्रकूट -- चित्रकूट
अग्निज्वाल - ज्वालामुखी (उमरिया, शहडोल ) प्रक्षोभ - खोह ( शहडोल ) दुर्ग दुगावर (शहडोल) सर्वार्थपुर - सिद्धार्थपुर ( सोधी) जयावह जियावन (सीधी ) श्री सोध - सिरमौर (रीवाँ) तिलोपणसी में वियार्थ भूमि को उत्तम एवं पद्मराग मणियों से समृद्ध बताया गया है। उसमें वज्रागंल, वज्राढ्य, चन्द्राभ सूर्याभ, चूड़ामणि, मणिवा, वस्त्रार्द्धतर, रत्नाकर, रत्नपुर जैसे मणिनामान्त या रहनमणि नाम वाले अनेक नगर उत्पन्न होते हैं। इससे उस भूमि को रत्नगर्भा होने के संकेत मिलते हैं ।
रत्नों
वर्तमान विन्ध्य प्रदेश के पन्ना एवं विजावर प्रक्षेत्रों में निस्सन्देह रूप में विविध प्रकार के रत्न प्राजकल भी उपलब्ध हो रहे हैं। पन्ना, विजावर, हीरापुर एवं मास-पास की अनेक खदानें स्वयं बतला रही हैं कि यह प्रदेश पन्ना ८. द० Dawn of freedom. IV. P. Rewa, Ang. 1953] P.P. 66-68.
६. बहु दिव्यगामसहिदा दिग्बमहापट्टणेहि रमणि कब्दोमुहेहि संवाह मंडव एहि परिणा ॥ रमणाणयायहि विभूसिवा विभूसिया पउमराय पहूदीनं । दिवणारेहिपुष्णा घणघण्णसमिद्धिरम्मेहि ॥
वि० प०४ / १३४०१२४
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हीरा एवं वज्रमणियों का प्रक्षय भण्डार है ।" प्राकृत व्याकरण की दृष्टि से विजावर तो शुद्ध प्राकृत नाम ही है। उसका संस्कृत नामान्तर 'बखपुर' रहा होगा, जिसका तात्पर्य श्रेष्ठ मणि वज्रमणि प्रथवा श्रेष्ठ वज्रमणि उत्पन्न करने वाला नगर रहा होगा। शताब्दियों की वर्ण-परिवर्तन की यात्रा के बाद यह वज्रपुर- वज्जठर-विजाउरविजाउर - विजावर बन गया ।
तिलोषपण्णत्ती में विजयार्थ के नगरों के विषय में बताया गया है कि वे दिव्यग्रामों से युक्त, महापट्टनों से रमणीक तथा कट द्रोणमुख संवाह एवं महम्बों से परिपूर्ण दे
वर्तमान विन्ध्य प्रदेश की नगरीय स्थिति का अध्ययन करने से तिलोयपणती के उक्त कथन का प्रायः समर्थन होता है। उत्तराध्ययन सूत्र की टीका के अनुसार ग्राम वह कहा जाता है, जहाँ काँटों की वाडी से घिरे हुए प्रावासों मे लोग निवास करते हैं। यथा- कण्टकवाटका वृतो जनानां निवासो ग्रामः ।" विन्ध्य प्रदेश में ऐसे नगरों
की कमी नही, जो उक्त परिभाषा वाले ग्रामों से घिरे हुए न हों। प्राचार्य जिनसेन के अनुसार बड़ागांव वह कहलाता हा जिसमें ५०० परिवार रहते हों तथा छोटा गाँव वह कहलाता था, जिसमे १०० कुटुब निवास करते हों ।" ग्रामों का नामकरण वस्तुतः अपनी-अपनी विशेषताओं के प्राधार पर किया जाता था, जैसे निश्चित परिधि से कुछ बड़ा होने अथवा किसी दृष्टि से बड़े लोगों के निवास करने के कारण बड़ा गाँव, नया बसाए जाने के कारण नया गाँव, मणियों अथवा मनको की भूमि वाला गाँव मनग मोर प्रचुर धन, धान्य बाला गाँव घनगव या सतग प्रादि । विन्ध्य प्रदेश में इस प्रकार के प्रनेक ग्राम
१०. Otto Stein - Jinist Studies. Page 4 ११. मादिपुराण २६०१६५
१२. यत्र सर्व दिगम्योजनाः पयागच्छन्तीति पत्तनमथवा
पत्तनं रानरवनिरति लक्षणं तदपि द्विविध जलमध्यवति च Jinist Studiea Page 9.