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________________ १८ वर्ष ३३, कि०२ अनेकाने मिलते हैं। सिन्धुवेलावलयितम् ।" यहाँ समद्र का अर्थ वस्तुतः जेल पट्टन अथवा महापट्टन वह कहलाता है जहां सभी बाहुल्य प्रदेश लेना चाहिए। तात्पर्य यह है कि जल बाहल्य दिशामों से लोग जल एवं स्थल मार्गों से पाकर एकत्रित प्रदेश से घिरा हुमा स्थल द्रोण या द्रोणमुख कहलाता था। होते हों तथा जहाँ के पाश्र्ववर्ती प्रदेशों में रहनादि खनिज यह पाश्ववर्ती ४०० ग्रामो के मध्य में रहता था।" और पदार्थ प्राप्त होते हो।" प्राचार्य मलय गिरि के अनुसार उनके जीवन की प्रावश्यक वस्तुपों की पूर्ति करता था। गाड़ी, षोड़े भादि के द्वारा व्यापारिक सामग्रियो के मायात इस दृष्टि से वर्तमान विन्ध्य प्रदेश में द्रोणनामधारी वाले स्थान को पत्तन तथा नौका भादि के द्वारा व्यापारिक द्रोणगिरि का नाम द्रोणमुख के रूप में विशेषरूप से लिया सामग्रियों के प्रायात वाले स्थान को पट्टन माना जाता था। जा सकता है। अन्य द्रोणमुखों में रीवा, सतना, विजावर, ___ उक्त सन्दर्भ के अध्ययन करने से यद्यपि यह स्पष्ट केवटो, शहडोल केनाम लिए जा सकते है। ज्ञात नहीं होता कि तिलोयपण्णत्ती काल मे विन्ध्य प्रदेश कल्पसूत्र के अनुसार सवाह वह कहलाता है जहाँ में कौन-कौन से पट्टन अथवा पनन थे। फिर भी बिन्ध्य समतल भूमि में कृषि कार्य कर के कृषक लोग दुगंभमियो प्रदेश मे प्रवाहमान नदियों के किनारे पर बसे हए विशेषत. में रक्षा हेतु धान्य को सुरक्षित रखते थे । यथा-समभमो वर्तमान पन्ना, विजावर एव शहडोल के प्रक्षेत्रों की नदियों कृषि कुन्वा येष दुर्गभूमिषु धान्यानि कृषिवला. संवहन्ति के किनारे पर बसे हुए कुछ नगर पटन अथवा पत्तन के रक्षार्थम् । अवश्य प्रति रहे होंगे। बतमान में पटन वर्तमान विन्ध्य प्रदेश में सवाह नामान्त नगरो के नाम नामधारी अमरपाटन (सतना) एव पटनाफला (शहडोल) नहीं मिलते । फिर भी उसमे ऐसे नगर उक्त श्रेणी में मान ही ऐसे नगर हैं, जो प्राचीन युग को अपनी व्यापारिक जा सकते है, जो गढ गढ़ो या वाड़ी नामन्त मिलते है। समृद्धि की स्मृति दिलाते है। यथा-निवाडी, दिगोड़ा, (दिग्वाड़ा) अजयगढ मादि । कर्वट अथवा खवंट वह स्थान कहलाता है जो चारों उत्तराध्ययन मुत्र की टीका के अनुसार मडम्ब उस मोर पर्वतों से घिरा रहता है।" यह स्थान अधिक विस्तृत कहत है, जिसकी मभी दिशाचो मे ३. योजन की दूरी नहीं होता। चारों पोर पर्वतों से घिरे रहने के कारण वह तक कोई भी ग्राम न हो ।“ तात्पर्य यह है कि मडम्ब दुर्ग का कार्य करता है इसी लिए कोटिल्य " ने इस दुर्ग एक ऐसा ग्राम अथवा नगर था जिसके पास-पास ३३ के समान सुरक्षित कहा है। अनेक ग्रामो के व्यापार केन्द्र योजन अर्थात १७-१८ मील के पाम पास कोई भी ग्राम त के रूप में इसकी स्थापना की जाती थी। हो। विन्ध्य प्रदेश मे ऐसे मडम्बो की कमी नही है। वर्तमान नागरिक सभ्यता के विकास-क्रम में वर्तमान विध्यप्रदेश विकासकालोन युग में यद्यपि यह स्थिति लगभग बदल में कर्बट या खवंट नगरी में परिवर्तन होता गया, फिरभी चुकी है, फिर भी खोज करने पर पन्ना, सीधी एवं शहडोल प्रवस्थितियों के प्राधार पर प्रतीत होता है कि मानिक के जिलों में ऐसे अनेक स्थान मिल सकते है। अमरकटक (शहडोल), ककरेहटी (पन्ना), खडबडा तिलोयपण्णता के अनुसार विजयार्घ अथवा वैताढ्य (सीधी), सिरमौर (रीवा). चचाई, वरद्वार (उमरिया) पर्वत के भमिताल पर दोनो पाश्र्वभागो में दो गम्यूति प्रमाण प्रजयगढ़ प्रादि के नाम लिए जा गकते है। विस्तीर्ण प्रौर पर्वत के बराबर लम्बे लम्बे वनखण्ड है।" ___ द्रोण अथवा द्रोणमुख वह कहलाता है, जो स्थल उक्त तथ्य का समर्थन प्रयाग-प्रशस्ति के 'परिचायिकी समद्री किनारों से घिरा होता है। यथा-द्रोणारण्य (शेष पृ० २४ पर) १३. दे० व्यवहार सूत्र ३।१२७. १७. मादिपुराण १६६१७५. १४.३० बृहत्कथाकोष ६४।१७. १८.दे० Jinist Studies P. 17. १५. दे० कौटिल्य अर्थशास्त्र २७।१।३. १६. P. 8. १६. Jainist Studies P. 11 २०. तिलोयपण्णत्ती ४११७१.
SR No.538033
Book TitleAnekant 1980 Book 33 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulprasad Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1980
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size14 MB
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