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________________ नाट्योत्पत्ति सम्बन्धी जैन परम्परा अभिनय करने का अनुरोध किया। भरतपुत्र तैयार नही प्रो. रिजवे का मत है कि नाटकों का उद्भव हये, काफी विचार-विमर्श के बाद भरत ने अपने पुत्रों को मृतात्मा के प्रति श्रद्धा प्रकट करने की परम्परा से हुमा समझाया कि ऐसा करने से ऋषि का शाप भी छूट जायेगा मतास्मामों के प्रति श्रद्धा प्रकट करने की परम्परा सभी तब भरत पुत्र पृथ्वी पर पाये । और नहुष के अन्तःपुर में संस्कृतियों में हैं भाज भी ऐसे विभिन्न अभिनयात्मक नाटय-प्रयोग किया तथा गृहस्थ होकर कुछ समय पृथ्वी प्रायोजन (श्राद्ध) प्रचलित है। पर बिताया। पौर स्वर्गलोक लोट गये, किन्तु वे अपनी डा० पिशेल का कथन है कि नाटकों की उत्पत्ति में मन्तति को नाट्य प्रयोग की शिक्षा दे गये थे। जिससे पुसलिका नत्य का महत्वपूर्ण योगदान है प्रतः उसे ही पृथ्वी पर नाट्य प्राया। नाट्योत्पत्ति का मूल माना जाना चाहिये । उनका कहना पाश्चात्य विद्वानो जिनमे, श्री मैक्स मूलर, प्रो० है कि पुलिका नत्य सर्वप्रथम भारत में ही प्रारम्भ हुमा मिल्वा लेवी, मोल्डेन वर्ग, डा. हर्टल प्रादि प्रमुख है- महाभारत तथा, कथा सरित्सागर में पुत्तलिकामों का का मत है कि ऋग्वेद के सवादात्मक सूक्तों से नाट्योत्पत्ति वर्णन है। इस नत्य में एक सूत्रधार होता है जो पीछे से हुई है ऋग्वेद में यम यमी सवाद, सरमापणि सवाद, इन्द्र वृत्तालिकामो को नचाता है उनका कथन है कि नाटक के महत सवाद, अगस्त्य लोपा मुद्रा सवाद, विश्वामित्र नदी उपस्थापक के लिये इसी कारण प्राज भी सूत्रधार शब्द सवाद प्रादि अनेकों ऐसे सवादमूक्त हैं जिनमे नाटको का का प्रयोग होता है। बीज विद्यमान है। मैक्समूलर का कथन है कि ऋत्विकगण कुछ पाश्चात्य विद्वानों ने यूरोप में होने वाले मेपोल इन सुक्तो का अभिनयात्मक पाठ करते थे यही नाट्य का पर्व को नाट्योत्पत्ति का मूल माना है। यह पर्व मई मास बीज है डा० दिडिश, प्राल्डेन वर्ग तथा पिशेल का अनुमान में होना है। है कि ये सक्त पहले गद्यपद्यात्मक थे अधिक रोचक एवं प्रो. हिनबाण्ड का कथन है कि लोकप्रिय स्वांगो से कंठस्थ करने में सरल होने के कारण इनका पद्य भाग नाटका की उत्पत्ति हुई स्वागो के साथ रामायण और बच गया तथा गद्य भाग नष्ट हो गया। इसके अतिरिक्त महाभारत की कथानों ने मिलकर नाटकों को जन्म दिया ये पाख्यात्मक भी थे तथा इन्हो के अनुसरण पर पद्य पद्य । इसी प्रकार प्रो० त्यूहसं का कथन है कि छाया नाटकों में के संवादात्मक तत्व का नाट्य मे मिश्रण प्रा। ऐतरेय- जो छाया चित्रों का प्रदर्शन किया जाता है उससे नाटको ब्राह्मण का शुनःशेष पाख्यान तथा शतपथब्राह्मा का को उत्पत्ति हुई" प्रो० वेधर भारतीय नाटकों का जन्म पुरुरबा-उर्वशी पाख्यान इस प्रकार के ग्रंश के प्रमाणभूत युनानी प्रभाव से मानते है । अविष्ट रूप है । मतः इन्ही से नाट्य का उदभुव हुप्रा है डा. कोर के अनुसार नाटक का उद्भव प्राकृतिक भारतीय विद्वान् डा. दास गुप्ता भी इस मत से सहमत परिवर्तनो को प्रस्तुत करने की इच्छा की देन है। महाभाष्य है कि वेद मन्त्रो में नाटकीय तत्व प्रचुर मात्रा में विद्यमान में निर्दिष्ट क्सबध नामक नाटक का अभिनय कीथ के है और तत्कालीन जीवन के धार्मिक अवसरो, मगीत मतानुसार इस मत की पुष्टि करता है। समारोहों तथा नृत्योत्सवो से नाटकों का घनिष्ट जैन परम्मानुसार नाटकों की उत्पत्ति दैविक है किन्तु सम्बन्ध था। बाद मे चलकर तीर्थंकरो के पंचकल्याणको के अभिनय से ६. दे०-हिन्दी नाट्यशास्त्र, व्या० बाबूलाल शुक्ल दे०-मस्कृत साहित्य का समीक्षात्मक इतिहास: शास्त्री चौखम्बा वाराणमी १९१२ मिका डा. कपिलदेव द्विवेदी पृ० २६६ पृष्ठ ४६ ७. वही पृष्ठ ४७ १०. वही ८. डा० एस० एन० दास गुप्ता ऐण्ड एस० के० डे० : १. दे० सं० सा. की रूपरेखा : व्यास तथा पाण्डेय हिस्ट्री घाफ संस्कृत लिटरेचर वाल्यूम ६ पृष्ट ४४ १६७० पृ० १४
SR No.538033
Book TitleAnekant 1980 Book 33 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulprasad Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1980
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size14 MB
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