SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 48
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ वर्ष ३३, कि० २ का 0000 शक्ति है और जहाँ अपना ध्यान नही है वहां मू है।। ऐसी अन्तर्मुखता का नाम ही जागरण है । जो पूरी तरह वीर सेवा मंदिर जग गया वह साधु है जो सो रहा है वह प्रसाधु है जागरण इतना गहन हो जाए कि न केवल बाहर की पावाज २१, दरियागंज, नई दिल्ली-२ सुनाई पड़े, बल्कि अपना श्वास और हृदय की धड़कन भी वोर सेवा मन्दिर उत्तर भारत का अग्रणी जैन सुनाई पड़ने लगे और अपनी प्रांख की पलक का हिलना संस्कृति, साहित्य, इतिहास, पुरातत्त्व एवं दर्शन शोध संस्थान है जो १९२६ से अनवरत प्रपने पुनीत उद्देश्यों की भी पता चलने लगे। भीतर के विचार भी पता चलने सम्पूति में संलग्न रहा है। इसके पावन उद्देश्य इस लगें, जो भी हो रहा है वह सब चेतना में प्रतिफलित होने प्रकार हैं :लगे। 0 जैन-जनेतर पुरातत्त्व सामग्री का संग्रह, संकलन मोर प्रकाशन । 0 प्राचीन जैन-जनेतर ग्रन्थों का उदार । (पृ० ५ का शेषांश) 9 लाक हितार्थ नव साहित्य का सृजन, प्रकटीकरण पोर नाहटाजी के प्रेरणा-स्रोत जीवनसत्र प्रचार । 9 भनेकान्त' पत्रादि द्वारा जनता के प्राचार-विचार को १. करत-करत अम्पास के जड़मति होत सुजान । ऊँचा उठाने का प्रयत्न । रसरी पावत-जात ते, सिल पर परत निसान । " जैन साहित्य, इतिहास और तत्त्वज्ञान विषयक अनु२. काल कर सो भाज कर, पाज कर सो प्रम्ब । सघानादि कार्यों का प्रसाधन और उनके प्रोत्तेजनार्थ __ पल में परल होयगी, बहुरि करंगो कम्य ॥ वत्तियों का विधान तथा पुरस्कारादि कामायोजन । ३. एक साधे सब सघ, सब साधे सब जाय । विविध उपयोगी सस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश, हिन्दी एवं अंग्रेजी प्रकाशन ; जैन साहित्य, इतिहास और तत्त्वज्ञान ४. रे मन । अप्पड खंच करि, चिन्ता-जालि म पाडि । विषयक शोध अनुसंधान, सुविशाल और निरन्तर प्रवर्षफल तित्तउ हिज मामिसह, जित्तउ लिहिउ लिलाडि ।। मान ग्रन्यागार; जैन संस्कृति, साहित्य, इतिहास एवं पुरा (श्रीपाल चरित्र) | तत्त्व के समर्थ अग्रदूत 'अनेकान्त' के निरन्तर प्रकाशन नरोत्तमदास स्वामी एव अभ्य भनेकानेक विविध साहित्य और सास्कृतिक गति विधियो द्वारा बीर सेवा मन्दिर गत ४६ वर्ष स निरन्तर डा. मनोहर शर्मा सेवारत रहा है एवं उत्तरोत्तर विकासमान है। 'प्रनेकान्त के स्वामित्व सम्बन्धी विवरण यह सस्था अपने विविध क्रिया-कलापो में हर प्रकार से प्रापसे महत्त्वपूर्ण प्रोत्साहन एव पूर्ण सहयोग पाने की प्रकाशन स्थान-वीरसेवामन्दिर, २१ दरियागंज, नई दिल्ली | नई दिल्ला अधिकारिणी है । अतः प्राप से सानुरोध निवेदन है कि:मुद्रक-प्रकाशन वीरसेवामन्दिर के निमित्त १. बीर सेवा मन्दिर के सदस्य बनकर धर्म प्रभावनात्मक प्रकाशन प्रवधि-मासिक श्री मोमप्रकाश जैन | कार्यक्रमों में सक्रिय योगदान करें। राष्ट्रिकता--भारतीय पता-२३, दरियागज, दिल्ली-२ | २. वीर सेवा मन्दिर के प्रकाशनों को स्वयं अपने उपयोग मम्पादक-श्री गोकुलप्रसाद जैन के लिए तथा विविध मांगलिक अवसरों पर अपने राष्ट्रिकता-भारतीय पता-वीर सेवा मन्दिर २१, | प्रियजनों को मेंट में देने के लिए खरीदें। दरियागज, नई दिल्ली-२ " | ३. मामिक शोध पत्रिका 'अनेकान्त के ग्राहक बनकर । ३. जन सस्कृति, साहित्य, इतिहास एव पुरातत्त्व के शोषास्वामित्व-वीर सेवा मन्दिर, २१ दरियागंज, नई दिल्ली-२ नुसंधान मे योग दें। 'मैं, प्रोमप्रकाश जैन, एतद्द्वारा घोषित करता हूं कि . विविध धार्मिक, सांस्कृतिक पो एव दानादि के मरी पूर्ण जानकारी एवं विश्वास के अनुसार उपर्युक्त अवसरो पर महत् उद्देश्यों की पूर्ति मे वीर सेवा विवरण सत्य है। -मोमप्रकाश जैन, प्रकाशक मन्दिर की प्राधिक सहायता करें। -गोकुल प्रसाद जैन (महासचिव)
SR No.538033
Book TitleAnekant 1980 Book 33 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulprasad Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1980
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy