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अगरचन्द नाहटा और उनकी साहित्य साधना
पाता है कि कहां-कहाँ उपलब्ध हो सकती है। वे स्वयं भी ही प्राप्त होती है। अनेक बार प्रन्यान्य स्थानों से शोषार्थी के लिए व्यवस्था १३. जन-जन के प्रेरणास्त्रोत कर देते हैं। कोई मुद्रित पुस्तक प्राप्त नही होती है तो श्री नाहटाजी ने स्वयं तो अपनी कर्मठता और पुस्तक को अपने पुस्तकालय में मंगवाकर उसे सुलभ कर मध्यवसाय से प्रतुलनीय उपलब्धि की ही है पर साथ ही देते हैं। अनेक बार नाहटा जी अपनी निजी प्रतियां भी सम्पर्क में प्राने वाले सभी व्यक्तियों को नानाविषि प्रेरणा उपयोग के लिए शोधार्थियों को भेज देते हैं। शोधार्थी देकर चिन्तन, अध्ययन, लेखन, शोष प्रादि किसी न किस विद्वानों और छात्रों को उनके यहाँ शोध-सामग्री ही नही विशिष्ट कार्य की पोर प्रवृत्त किया है। प्राप्त होती किन्तु निवास और भोजन की व्यवस्था भी व १४ सरस्वती एवं लक्ष्मी बोनों के लाख सपूत प्रायः स्वयं ही अपने यहाँ कर देते है ।
प्राय यही देख पाया जाता है कि सरस्वती के शोध-छात्रों के साए नाहटा का व्यवहार अतीव प्राराधको पर लक्ष्मी की कृपा कम ही रहती है एवं लक्ष्मी उदारतापूर्ण भौर सहानुभूति पूर्ण होता है। वे उनकी सब के उपासको पर सरस्वती का वरद हस्त मूक ही रहता है प्रकार की सहायता करने को सदा तत्पर रहते हैं। नाहटा पर नाहटा जो इसके विरल प्रवादी है, माप दोनों देवियो जी से उन्हें शोध-सामग्री और आवश्यक पुस्तकें ही प्राप्त के समान रूप से लाडले सपूत हे । साहित्य तपस्वी के साथनहीं होती किन्तु विषय-निर्वाचन से लेकर अन्त तक साथ कुशल व्यापारी भी हैं। निर्देशन भी मिलता है। छात्रों के घर चले जाने के बाद १५. इधर माहित्य सेवियों मे पाध्यात्मिक साधक भी अनेक बार पत्र द्वारा उनकी प्रगति का हाल पूछते हैं विरल होते है पर नाहडाजी दोनों क्षेत्रों मे समान हचि, पौर यदि नयी जानकारी ज्ञात होती है तो उसकी सूचना गति एवं प्रधिकार रखते हैं। धर्म और दर्शन भी भी तरम्त देते है। शोधविद्वान पोर शोधछात्र नाहटा के उनके जीवन-प्राण हैं। प्रात: २-३ बजे से सामायिक पुस्तकालय को इच्छाफल-दाता तीर्थस्थान मानते हैं । ऋषि
ग्वाध्याय, भजन-पूजन, व्रत-नियम की धाराषना-साधना तुल्य डा. वासुदेवशरण अग्रवाल और श्री हजारीप्रमादजी
का प्रवाह चाल होता है। साथ ही साहित्य सेवा भी द्विवेदी ने उन्हे प्रौढरदानी बतलाया है।
चलती रहती है। नाहटा जी लेखक के साथ-साथ गंभीर ११. मद्भुत स्मृति कोष
चिन्तक एव मनीषी है । निरन्तर स्वाध्यायशील, अन्वेषक अदभत म्मरण शक्ति के धनी थी नाहटाजी जिस ग्रथ एवं माधक है। का भी एक बार अवलोकन कर लते है उगके वाक्याशों तक १६. नाहटा जी को विद्यावारिधि, सिद्धान्ताचार्य का सदर्भ उनके मानस पलट पर स्थायी रूप से अकित हो माहित्य वाचसपति जैसी सर्वोच्च उपाधियां सस्थानों की जाता है। फलस्वरूप शो नाहटा जी ने जहाँ अलम्य ग्रथों पोर में स्वयं प्रदान है। पर प्राप प्रपने नाम के साथ का संग्रहालय स्थापित किया है। वहाँ वे स्वयं भी एक किसी भी उपाधि का उपयोग नही करते। यह बहत ही चलते-फिरते ज्ञान भंडार, ज्ञान काष बने हुए है। यह उल्लेखनीय एव महत्त्वपूर्ण विशेषता है। इस प्रकार १६ प्रकृति की ग्रापको अनुपम देन है ।
कलायो वाले पूर्णचन्द्र प्रकाशित हो रहे हैं। १२. महान प्रात्मसाधक
ऐमा विरल एवं विलक्षणव्यक्तित्व, बहमुखी प्रतिमा, साहित्य शोध के साथ-साथ श्री नाहटाजी बात्मानुभूति अनेकानेक विशेषतामों का सृभग मंयोग बहुत ही कम पाया के क्षेत्र में भी सतवत् ऋषितुल्य महान् साधक है। प्रतिदिन
जाता है।
ऐसे साहित्य तपस्वी, प्रात्मनदी साधक का अभिनवन प्रात: २-३ बजे से पापका स्वाध्याय, ध्यान, मनन, चिन्तन
एक गुणपुज विभूति का अभिनन्दन है। का साधनापरक कम प्रारम्भ होता है जो दिनचर्या की
पिता सेठ शकर दास जी नाहटा। माता-चुन्नी देवी मन्य गतिविधियों के साथ निर्बाध रूप से रात्रि शयन नक
जन्मति० मं० १९६७ चैत्रबदी ४ बीकानेर (सन् १९११) चाल रहता है। अनुभतिको यह स्थिति विरल साधको को
(शेष पृ० ६ पन)