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________________ ५कि.२ प्रवेकान्त 1. अमवन प्रम्यालय नाम से हस्तलिखित पम्पों के इसमें प्राचीन चित्र, मूर्तियाँ, सिक्के मादि छोटी-बड़ी कलाविशाल भंडार की स्थापना कृतियों तथा अन्यान्य संग्रहणीय वस्तुणों का अच्छा संग्रह अपने स्वर्गीय बई माता अभयराजजी नाहटा को किया गया है। व्यक्तिगत संग्राहलयों में यह बहुत ही म्मति में प्रमयजन ग्रंथालय पौर अभय जैन ग्रंथमाला की महत्वपूर्ण एवं उल्लेखनीय है। स्थापना की गई। ७. विविध विषयों पर ४००० से ऊपर शोधपरक एवं अपने साहित्यिक जीवन के प्रारंभ से ही नाहटा जी अन्यान्य निबंधों का लेखन और प्रकाशनमे हस्तलिखित प्रतियों की खोज पोर संग्रह के काम का इन निबंधों की क्षेत्र-सीमा बहुत विस्तृत है। उनमे बीगणेश कर दिया था। धीरे-धीरे उन के ग्रंथालय में विभिन्न भाषामों के विभिन्न ग्रन्थकारो और उनके ग्रन्थों, लगभग पैसठ हजार हस्तप्रतियों का संग्रह हो गया। ग्रंथ तथा पुरातत्व, कला, इतिहास साहित्य, लोक साहित्य, संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश, हिन्दी, राजस्थानी गुजराती, लोक-संस्कृति आदि विविध विषयो के विभिन्न पक्षों पर पंजाबी, कश्मीरी, कन्नड़, तमिल, अरबी, फारसी, बंगला, नयी-से-ययी जानकारी दी गयी है। इन निबंधों को अंग्रेजी, उडिया मादि विविध भाषामों के पोर विविध मुख्यतया चार विभागो मे बाँटा जा सकता हैविषयों के हैं। अनेक ग्रन्थ ऐसे हैं जो अत्यन्त महत्वपूर्ण होने १. पुरातत्व, कला इतिहास । के साथ-साथ दुर्लभ भी हैं। पनेक ग्रंथ तो अन्यत्र प्रलम्य २. साहित्य- संस्कृतसाहित्य, अपभ्रश साहित्य, । इनके अतिरिक्त मध्यकालीन पोर उत्तरकालीन प्राचीन राजस्थानी, गुजराती एवं हिन्दी साहित्य, ग्रंथकार पुरालेखों (विविध प्रकार के दस्तावेज, पत्र, व्यापारिक पत्र, और उनके ग्रंथ । पट्ट-परवाने, बहियाँ मादि कागजपत्रों) का बड़ा भारी इन निवन्धों की सूची शीघ्र ही प्रकाशित की जायेगी। संग्रह भी पंथालय में एकत्रित है। ३. लोकजीवन, लोक-संस्कृति, लोक-साहित्य । ४. प्रभय जन प्रग्यालय के अन्तर्गत मुद्रित पुस्तकों का संग्रह ४. धर्म, दर्शन, अध्यात्म, प्राचार-विचार, लोक इसमें शोधकार्य के लिए भावश्यक सन्दर्म-ग्रन्थों, मोर व्यवहार । शोषोपयोगी प्राचीन इतिहास, पुरातत्त्व, कला, साहित्य ये निबंध देश के विभिन्न स्थानो से प्रकाशित होने पादि विविध विषयों की पुस्तकों का बृहत् सग्रह है । ग्रन्थों वाली ४०० से ऊपर पत्र-पत्रिकामो में प्रकाशित हए है। की संख्या ४५ हजार से ऊपर है। इतने अधिक एवं विविध विषयक शोध-निबंध विश्व मे उक्त दोनों ही लक्षादिक ग्रन्थों के संग्रहो से शोष शायद ही किसी दूसरे विद्वान ने लिखे हो। विद्वान् भोर शोष-छात्र भरपूर लाभ उठाते हैं । ८. बीकानेर राज्य भर के जैन अभिलेखो (शिलालेखो, ५. पत्र-पत्रिकामों की पुरानी फाइलों का संग्रह मूर्तिलेखों, घातुलेखो) का विशाल सग्रह और प्रकाशन । घभय जैन-ग्रन्यालय में विविध विषयो को पत्र. ६. अनेक महत्त्वपूष ग्रन्थो का विस्तृत प्रस्तावनामों के पत्रिकामों की विशेषतः शोधपत्रिकामों की, पुरानो माइलें साथ संपादन ! बड़े परिश्रम के साथ प्राप्त करके संग्रहीत की गयी है। ये १०. शोधाथियों का तीर्थस्थान फारसे शोष-विद्वानों के बडे काम की हैं क्योंकि नाहटा जी का स्थान शोधविद्वानो और शोधछात्रो के साधारणतया पत्रिकामों के पुराने अक सहज ही प्राप्त नही लिए मानो कल्पवृक्ष ही है । यही कारण है कि उनके यहाँ होते। शोधार्थी लोग बराबर माते रहते हैं। शोधापियो को जो १.शंकरवान नाहटा कलाभवन की स्थापना सहायक सामग्री, ग्रथ प्रादि चाहिए वह अधिकतर उनके नाहटा जी पद्धितीय संग्राहक हैं, उन्होने अपने पिताजी पुस्तकालय में उपलब्ध हो जाती है। यदि नही होती है की स्मृति में एक महत्वपूर्ण कलाभवन की स्थापना की। तो ज्ञान के विश्वकोश-रूप नाहटाजी से सहज ही पता लग १. इन निबन्धों की सूची शीघ्र ही प्रकाशित की जायेगी।
SR No.538033
Book TitleAnekant 1980 Book 33 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulprasad Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1980
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size14 MB
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