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ऋषभदेष : सिन्धु-सभ्यताकेधाराध्य ?
इस पासन के नीचे दो हिरनों को मामने-सामने खडे हुए केवल दो ही हैं । संकरक्षण बलराम पौर ऋषभ । संकरक्षण पोछे की तरफ मुड़कर देखते हुए दिखाया गया है। इस बलराम का चिह्न हल है और ऋषभ का मतलब बैल है मूर्ति के एक तरफ गंण्डा और भैसा बने हुए है मोर दूसरी व इनका चिह्न बल है, प्रतः यह निश्चित करना होगा कि तरफ एक हाथी और शेर और मानव का भी प्रतीकात्मक इन दोनो मे स यह व्यक्ति कौन हो सकता है। दोनों ही चित्रण किया हुमा है। इस व्यक्ति को सर जोन मार्शल ने प्राचीन पौराणिक व्यक्ति है। अगर हम इस मुद्रा को देखें पशुपति नाथ शिव बताया है जबकि केदारनाथ शास्त्री के इस व्यक्ति के नीचे दो हिरनो की जोड़ी पायी जाती है। अगर अनुसार यह शिव न होकर वेदो मे वणित रुद्र का रूप गौतम बद्ध की मूर्तियों को देखा जाय तो उसमे भी उनके प्रासन होना चाहिये।
के नीचे दो हिरनो की जोड़ी पायी जाती है। जैन तीर्थंकर इस मूर्ति को, जो इस सभ्यता की प्राण है, जानने के
२४ हुये है और सबकी मूर्तियों के नीचे हिरनों की जोड़ी लिये एक बार पुन: प्रकाश में लाना उचित रहेगा। सबसे
एक विशिष्ट प्रतीक है। दिगम्बर रहना और ससार के पहले इस मूर्ति के सिंगाकार मकुट को देखा जाय व
__ समस्त जीवो से दया और मित्रता का व्यवहार रखना उसका अध्ययन किया जावे । प्रगर हम इसक मुकूट को
जैन धर्म का मूल विचार है । अतः यह मूर्ति ऋषभ देव जो मद्रा नम्बर ४२० मे बना है, देखें और अन्य मुद्रामो
जो विष्णु के पाठवें अवतार व जैनियो के प्रथम तीर्थकर को भी देखे तब हम पायेंगे इसमे बना हुमा यह मुकुट
है, की हो सकती है। दूसरी तरफ इस मुद्रा में बैठा अधुरा है । मोहनजोदडो से उत्सवनित मुद्रा नम्बर ४३०
व्यक्ति एक ऊपरी भाग में एक ऐसा वस्त्र पहने हुए है जो (फरदर एक्स के वेशन एट मोहनजोदड़ो-मके) को देखें तो
ताड़ के पत्ते की तरह से नजर पाता है। ताड़ का पता उसके अन्दर इस मुकुट का पूर्ण रूप पाया है जिससे इस
बलराम का प्रतीक है, जिसे तालध्वज भी कहा जाता त्रिशलाकार मुकुट के नीचे एक पूछ लटक रही है जो
है । इसके अतिरिक्त मोहनजोदड़ो से प्राप्त एक सील में मूर्ति के बायो तरफ प्रौर देखने वाले के दायी तरफ झकी इसी तरह का एक व्यक्ति बैठा हुमा दिखाया गया है हुई है। अगर इस मुकुट को पूरे को ही निकाल कर अलग जिसके प्रासन के नीचे दो हिरन है और मोम का मकूट रख लिया जाय तो यह एक अनूठा दृश्य दिखाता है है और उसके दोनो तरफ दोनो घुटनो के बल बैठे हुए क्योकि बाहर निकालकर प्रगर इसे १० डिग्री के कोण पर व्यक्ति उमे दो प्रतीक भेट कर रह है। उनके पीछे एक-एक बांयी तरफ मोड दिया जाय तो यह हिन्दूषो के सबसे बड़े मर्प फन फैलाये हुये खड़े है। बलराम को शेषावतार पवित्र चित्र ॐ [प्रोम् का प्राकार ले लेता है, क्योकि माना जाता है और अगर यह दोनो व्यक्ति जो उसे हिन्दुप्रो व अन्य धर्मावलम्बियों के समस्त धार्मिक चिह नमस्कार कर रहे है, वाम्बव में सपं है, तब यह व्यक्ति सिन्धु घाटी सभ्यतामों की मुद्रानो पर पाये जाते है इमलिए बलराम हो सकता है। भारतीय पौराणिक गाथा के इसे पोम् मानने में हमे झिझक नही होनी चाहिए । मोम्
चाहिए। माम् अनुसार, प्रगर साप किसी व्यक्ति के ऊपर छत्री की तरह रूपी चिह्न को मुकुट रूप मे पहनने के कारण यह व्यक्ति से फन फैलाता है तो वह राजा माना जाता है। प्रतः दवा माना जाना चाहिये । इस पूणरूप से समझने के लिये अगर यह दोनो व्यक्ति राजा हैं तब यह प्रतीत होता है हमे पौराणिक कथाम्रो का अध्ययन कर उनकी सहायता कि यह उन स्थानो के राजा होगे जो माज के दिन हड़प्पा से इस व्यक्ति की जानकारी लेना उचित रहेगा। हमारी प्रौर मोहनजोदड़ो के नाम से जाने जाते हैं और वह एक पौराणिक गाथाम्रो मे प्रोम् सदा ही विष्णु से सम्बन्धित धार्मिक अध्यक्ष को नमस्कार कर रहे है। अगर हम रहा है शिव और रुद्र से नही, प्रतः यह व्यक्ति वह होना मोहनजोदडो से प्राप्त मद्रा का अध्ययन करें, तो इसके अन्दर चाहिए जो कालान्तर मे विष्णु का अवतार माना।
एक तरफ एक विचित्र प्रतीक बना हुप्रा है और दूसरी तरफ गया हो।
एक घटनों के बल बैठा हमा व्यक्ति एक वृक्ष को प्रतीक भेंट विष्णु के अवतारो मे सोलह मानवावतार है जिनमे कर रहा है । यह विचित्र प्रतीक इस प्रकार का चिह्न है ऐसे व्यक्ति जो ऋषि हों और जिनका बल से सम्बन्ध रहा हो जिस प्रकार का प्रतीक समम्त उत्तरी भारत मे लोम
पाहा।