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जयपुर पोथीखाने का संस्कृत जैन साहित्य
0 डा. प्रेमचन्द राषका, मनोहरपुर
विद्वानो मे इस विषय पर मतभेद है कि भारत मे से लेकर अन्तिम महाराजा मानसिंह द्वितीय (वि० सं० सस्कृत गजकाज को अथवा बोलचाल की भाषा थी। १९७९-२०२७) तक के समय में रचित साहित्य परन्तु यह निर्विवाद मत्य है कि इसकी दोनो ही वर्गों में सुरक्षित है। सम्मानित स्थिति रही है। वेद-वेदाग, श्रुति-स्मति, अपने पूर्वजों द्वारा निर्मित महत्वपूर्ण ग्रन्थ संग्रह को पुराणादि विविध विषयक ग्रन्थो की प्रतिया लिपिबद्ध सुव्यवस्थित एवं पृथक् विभाग का रूप देने का श्रेय महाकराकर मगृहीत और सुरक्षित करने मे मध्ययुगीन और राजा सवाई जयसिंह (मन् १७०० से १६४३ ई०) को है। मध्यान्तर कालीन नरेशों का बहुत बड़ा योगदान रहा है। प्रपनी नवीन राजधानी मवाई जयनगर की स्थापना साथ ही उन्होंने नवीन माहित्य के सजन में भी विद्वानो, के पश्चात विद्या, कला पौर राजकीय उपकरणों पण्डितो कवियो भोर लेखको को प्रश्रय एव प्रोत्माहन देने के सग्रह, सुरक्षा एवं वृद्धि के लिये ही उन्होंने ३६ कारखाने की परम्परा निभाई है। उन्ही के अनुकरण मे मामन्त वर्ग स्थापित किये थे । उनमें पोथीवाना अनन्यतम एव गणनीय तथा अन्य सम्पन्न लोगो ने भी इस प्रवनि को अपनाया है। इसके तुरन्त बाद ही महाराजा ने देश-विदेश से हस्तहै। फलत: हमारे देश का बहुत-मा साहित्य इस घरानों मे लिग्वित एवं मद्रित दुर्लभ ग्रंथ उपलब्ध किये एवं प्राचीन किसी प्रकार बचा रहा। जबकि अन्यान्य मामान्य ग्रहो मे जीर्ण एव उपयोजी ग्रन्थो की प्रतिलिपियाँ करवाने, उन्हे उपेक्षा एव प्रज्ञान के कारण इसमे भी अधिक सामग्री नाश मुरक्षित रखे जाने तथा कुछ को चित्रित करने के लिये को प्राप्त हुई। इस ग्रथ-सूरक्षा दष्टि से जैन मन्दिरो के प्रावश्यक पंण्डितों, मुलेखकी और चतुर चित्रकारो की शास्त्र-भण्डागे का योगदान स्तुत्य एव भविस्मरणीय है। नियुक्तियां की। तब से यह प्रवृति जयपुर राज घराने मे
जयपुर नगर की स्थापना से बहन पूर्व प्रामेर किमी न किसी रूप मे मक्रिय है। राजधानी मे ही यहा के राजवश मे विद्वानुगग और विद्वत पोथीग्वाने मे सस्कृत भाषा में लिखे ग्रन्थ सर्वाधिक हैं। समादर की भावना विद्यमान थी। जयपूर गजवश का जो प्राय: मभी विषयों से सम्बद्ध हैं । यह विपुल अन्य राशि पोथीखाना इस तथ्य का माक्षी है। यह पोथीवाना' जयपूर संस्कृत-क्षेत्र मे एक उज्ज्वल कीर्तिमान के रूप में विद्यमान राजघराने के शामको द्वारा अपने गज्य की प्रान्तरिक है। महाराजा मवाई जयसिंह, रामसिंह, प्रतापमिह प्रादि शासन व्यवस्था के मम्यक मचालन को दष्टि मे विभिन्न स्वयं संस्कृत के अच्छे विद्वान मोर स्वथ सवाई प्रतापसिंह ने विभागो के रूप में स्थापित ३६ कारखानों में से एक है। जो बनिधि के नाम से विख्यात है, भतृहरि के शतकत्रय इसमे भामेर एवं जयपुर गज्य के तत्कालीन शासकों द्वारा का ने हिन्दी पद्य अनुवाद किया है । समय-समय पर सगहीत भिन्न-भिन्न भाषामो मे लिखित पोथीवाने की सामग्री निम्न तीन सग्रहो मे विभक्त भिन्न-भिन्न विषयो को पाण्डुलिपिया मुरक्षित है। है:-(१) खास मोहर सग्रह, (२) पोषोखाना सग्रह, पोर
जयपुर राजवश का पोथीवाना विगत मान मो वर्षों (३) पुण्डरीक सग्रह । एक और अन्य संग्रह प्राचीन मुद्रित मे सृजित एव लिपिवद्ध अमूल्य माहित्य को अपने मे समा. ग्रन्थो का है। खास मोहर सग्रह मे ७५०० ग्रन्थ है। यह विष्ट करता है, जो उक्त शासकों के साहित्यानाराग का संग्रह मामेर के शासको का निजी संग्रह है। इस मग्रह मे प्रतीक है। इसमें प्रामेर एव जयपुर राज्य के भू. पू. महत्वपूर्ण प्रतिप्राचीन पाडुलिपिया है। यह राजाम्रो के शाशको मे मिर्जा राजा जयमिह (वि.म. १६७८.१७२४) निजी अधिकार में रहता था। पोथीखाना संग्रह के ग्रन्थों