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________________ हिन्दी कवि उदयशंकर भट्ट की काव्य-सृष्टि में बाहुबलि - श्री राजमल जैन, नई दिल्ली जैन शलाका पुरुषों के चरित्र ने न केवल जैन कवियों नहीं पाया है ऐसी मेरी धारणा है। इसके अतिरिक्त बहत को ही प्रपितु जनेतर लेखकों एवं कवियों प्रादि को भी सेविद्वान बौद्ध और जन-ग्रंथों के इन प्रकरणों को इतिहासप्रेरित किया है। इनमें हिन्दी के सुप्रसिद्ध कवि पोर सिद्ध नहीं मानते। उदाहरणार्थ कुणाल-स्तुप के विषय में नाटककार स्वर्गीय उदयशंकर भट की भी गणना की जा ऐतिहासिकों में मतभेद है. उनके विचार से तक्षशिला का सकती है। उन्होने 'तक्षशिला" नामक एक खण्डकाव्य की कुणाल-स्तूप नहीं है। इसी तरह बाहुबली की कथा कोई रचना की है। यद्यपि कवि को इसमें भारत की सुविख्यात ऐतिहासिक प्रमाण नही रखती। परन्तु मैं इनको ऐतिप्राचीन नगरी या विश्वविद्यालयस्थली का गुणगान ही हासिक मानता है। उसका कारण यह है कि जैन-ग्रंथों में अभीष्ट है तदपि इस काव्यके पांच स्तरों (अध्यायों)." त्रिषष्टिशालाकापुरुषचरित्र ग्रंथ जहां धार्मिक प्राधार पर द्वितीय एवं तृतीय मे से दो मे तक्षशिला शासक लिखा गया है वहां उसमे जैन-साहित्यका इतिहास भी बाहवली की यशोगाथा का गान भगवान प्रादिनाथ का सम्मिलित है। इसी के प्राधार पर जैन इतिहास की सृष्टि स्मरण निम्नलिखित शब्दों से प्रारम्भ करते हुए किया हुई है। उन्होंने पुन: इस बात को दोहराया है कि "सारांश यह है कि पुस्तक को उपादेय बनाने की दृष्टि से मैंने पाहतगामी ऋणभस्वामी, जैनधर्म मतहरे । कथाभागों को ऐतिहासिक मानकर ही लिया है।" इस तीर्थकर ये सुष्टिपूज्य, पथ सविवेक मतपूरे ॥ प्रकार कवि ने अपनी काव्यगत प्रावश्यकता के अतिरिक्त भट्ट जी ने "सृष्टिपूज्य" शब्द का प्रयोम कर यह अपनी ऐतिहासिक मान्यता भी स्पष्ट शब्दों में व्यक्त कर मान्यता पुष्ट की है कि किसी समय भगवान ऋषभदेव सारे यह मत प्रकट कर दिया है कि जैन ग्रंथों के कथानकों को भारत में पूज्य थे। इस प्रकार मादिदेव को एक सत्य। भी उसी प्रकार ऐतिहासिक मान्यता दी जा सकती है जिस मानकर उन्होंने भरत और बाहुबलि के शासन पोर युद्ध प्रकार कि अन्य संप्रदायों के ग्रंथों को दी जाती है। मादि का वर्णन किया है। इन दोनों भाइयों के कथानक भागवत पुराण के पांच प्रध्यायों में भगवान ऋषभदेव पौर को भट्टजी ने हेमचंद्राचार्य विरचित त्रिषष्टिशलाकापुरुष- चक्रवर्ती भरत के चरित्र को अथकार की मायन्ता के परित्र से ग्रहण किया है किन्तु उन्होंने यह भी स्पष्ट कर अनुसार स्थान मिला है किन्तु सभवत: "तक्षशिला" एक दिया है कि वे इसे केवल एक जैन पौराणिक आख्यान ही प्रधान रचना है जिसमे भरत-बाहुबलि द्वंद्व युद्ध प्रकरण नहीं मानते अपितु उसे एक ऐतिहासिक घटना मानते हैं। को ऐतिहासिक मान्यता प्रदान की गई है। इस दृष्टि से उक्त काव्य की भूमिका में उन्होंने लिखा है :-यह कहना इस खंडकाव्य का अपना महत्व है । कवि ने अपनी रचना कठिन है कि पुस्तक के सारे ही कथाभाग इतिहाससिद्ध के लिए एक मोर जहां सर जान मार्शल को तक्षशिला हैं। कवियों की दृष्टि से जो मुझे उचित जान पड़ा उमी संबंधी खोजों से सामग्री ली है, वहीं अनेक जैन ग्रंथों यथा के अनुसार कथा को मैंने लिखने का प्रयास किया है। मावश्यक नियुक्ति, प्रभाबक चरित्र, दर्शन रत्नाकर हरिवर्णन-प्रसंगों मे, बातचीत में, विचार-शृखला को मुख्यता सौभाग्य, शत्रुजय महात्म्य मादि जैन ग्रंथों से भी तथ्य दी गई है फिर भी पुस्तक का ऐतिहासिक रूप बिगड़ने संग्रह कर तक्षशिला की ऐतिहासिक गाथा को है। १. इंडियन प्रेस लिमिटेड, प्रयाग से १९३५ में प्रकाशित ।
SR No.538033
Book TitleAnekant 1980 Book 33 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulprasad Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1980
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size14 MB
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