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________________ १००, ३३, किरण उक्त बाहुबलि-वाङ्मय के प्राचार पर बाहुबलि-कथा (क) प्रकरण-साहित्य- (ज्ञान एवं प्रकाशित-प्राकृत, विकास सम्बन्धी निम्न तथ्य सम्मुख पाते हैं संस्कृत, अपभ्रश, कन्नड़ १. प्रारम्भ में अर्थात् दूसरी सदी तक के बाहुबलि. राजस्थानी एवं हिन्दी मे चरित के विषय में सामान्यतया यही बताया मया है कि लिखित ग्रन्थ सस्या)-२१ वे (बाइबलि) महान बलिष्ठ एवं तपस्वी थे। यह चर्चा (ब) स्वतन्त्र-साहित्य-(जात एवं प्रकाशित-प्राकृत, मात्र १-२ गाधामों में ही मिलती है। संस्कृत, अपभ्रश, कन्नड, २. तीसरी सदी से कथा में कुछ विस्तार मिलने राजस्थानी एवं हिन्दी मे लगता है। दृष्टि एवं मुष्टि युद्ध का सर्वप्रथम उल्लेख लिखित ग्रन्थ संख्या)-१४ विमलसूरि कृत पउमचरिय में मिलता है। (ग) स्वतन्त्र-साहित्य-ज्ञात, अप्रकाशित)-३० ३. छठवीं सदी में दृष्टि एवं मष्टि के साथ-साथ (घ) प्रकरण प्रषवा स्वतन्त्र साहित्य--(विविध मल्लयुद्ध की चर्चा मिलने लगती है। फिर भी कथावस्तु भाषात्मक प्रज्ञात प्रकाशित संक्षिप्त ही बनी रही। अथवा अप्रकाशित ग्रन्थ) ४. पाठवीं सदी के प्रारम्भ में बाहुबलि का पाल -प्रनेक कारिक वर्णन मिलने लगता है। इस दिशा मे महाकवि (३) बाहुबलि विषयक समीक्षात्मक शोष-निबन्धरविषेण अग्रगण्य हैं। (विविध भाषात्मक, ज्ञात एव ५. १३वीं सदी से बाहवलि पर स्वतन्त्र रचनाएं प्रकाशित)-३१ लिखी जाने लगी। इसमें शालिभद्रसूरि द्वारा लिखित (छ) बाहुबलिविषयक समीक्षात्मक शोष-निबन्धभरतेश्वर-बाहुबलिरास बाहुबलिचरित की दृष्टि से तो (विविध भाषात्मक अज्ञात महत्वपूर्ण है ही, रासा साहित्य भी यह मायग्रन्थ है। प्रकाशित)- अनेक ६. अपभ्रंश मे पाय स्वतन्त्र बाहुबलिचरित महाकवि . बाहुबलि-वाङ्मय एवं पुरातत्व पर अभी तक कोई घणवाल कृत है जो अपभ्रश के महाकाव्यों मे वीररस भी स्तरीय शोध कार्य नही हुमा हे। बहत सम्भव है कि प्रधान होने के कारण अपनी विधा की दृष्टि विशेष सिन्धुघाटी सभ्यता में कायोत्सर्ग-मुद्रा को बो नग्न महत्वपूर्ण है। मूर्तियां मिली हैं वे भगवान बाहुबलि को हो ? श्रमण ७. अद्यावधि ज्ञान एवं उपलब्ध बाहुबलि-चरितों में संस्कृति, सभ्यता एवं साहित्य को नए मायाम प्रदान करने १५वीं सदी के महाकवि रत्नाकर वर्णी द्वारा कन्नड-भाषा के लिए इस अद्यावधि उपेक्षित एवं सर्वथा चित वाङ्मय में लिखित "भरतेश-वैभव" सर्वाधिक सशक्त, मार्मिक तथा एवं पुरातत्व पर स्तरीय शोध कार्य हेतु शोधाथियो को पाठकों को झमा देने वाली महाकाव्य शैली की रचना प्रोत्साहित करने को तत्काल पावश्यकता है। सर्वश्रेष्ठ सिद्ध हुई है। सुनते हैं कि उनके समकालीन किसी १०. म. बाहुबलि भारतीय भावात्मक एकता के राजा ने उस कृति को सुन कर कवि एव कृति दोनों को प्रतीक हैं । अतः उसका सुन्दर एवं सर्वोपयोगी प्रकाशन तो ही सम्मानित कर हाथी पर उसकी सवारी निकाली थी। होना हो चाहिए साथ ही उसे चित्रात्मक एवं प्रल्पमोली ८. प्रो. डा. विद्यावती जैन (पारा) के एक भी बनाया जाय जिससे वह महलों के साथ-साय झोंपड़ों बाइबलि-साहित्य सर्वेक्षण के अनुसार' अभी तक तविषयक में भी समान रूप से पहुंच सके। भनेक रचनामों (मूल एवं सामान्य समीक्षात्मक) की रीडर एवं विभागाध्यक्ष, संस्कृत-प्राकृत विभाग, जानकारी मिली है। मेरी दृष्टि से उनका वर्गीकरण निम्न दिन कालेज, पारा प्रकार किया जा सकता है: निवास : महाजन टोली नं. २, पारा (बिहार) १.०बारतीय ज्ञानपीठ दिल्ली द्वार प्रकाश्यमान-बाहुबलि स्मारक ग्रन्थ का-"युगों-युगों में बाहुबलि : बाहुबलि चरित विकास, इतिहास, समीक्षा एवं साहित्यिक सर्वेक्षण नामक शोष निवन्ध ।
SR No.538033
Book TitleAnekant 1980 Book 33 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulprasad Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1980
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size14 MB
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