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________________ बाहुबलि-परित-विकास सीवयक बाम सी से उपलम्ब होते हैं किन्तु उस समय वह सर्वथा अम्पकार अन्य काल विकसित था। प्राचार्य कुन्दकुन्द ने मावपाहुड की ४४वीं जिनसेन (वि.) प्रादिपुराण (संस्कृत) वि. सं. १४६ पाथा में कठोर तपश्चर्या के प्रसग में उनका उल्लेख किया पम्प मादिपुराण (कर) वि.सं.१९८ है किन्तु बह विकसनशील अवश्य बना रहा । ७वी सदी पुष्पवत महापुराण (अपभ्रंश) वि. सं. १०२२ तक उसको कथा में पर्याप्त विकास हुमा । उसे पालकारिक जिनेवरसरि कथाकोषप्रकरण (संस्कृत) वि. सं. ११०८ रूप भी प्रदान किया गया, यद्यपि कथा "प्रकरण" के रूप (प्राकृत) में बनी रही । १३वी सदी से वाहुबलि पर स्वतन्त्र काम्पों सोमप्रभसूरि कुमारपालप्रतिबोष (संस्कृत) वि.सं. १२५२' की रचनाएँ लिखी जाने लगी। प्राधुनिक शैली में भी (प्राकृत) उनके ऊपर पर्याप्त लिखा जा रहा है किन्तु प्राश्चर्य यही शालिभद्रसूरि भरतेश्वर बहुबलिरास वि.सं. १२९८ है कि तुलनात्मक एवं समीक्षात्मक शैली से बाहुबलि (राजस्थानी) साहित्य पर स्तरीय शोधकार्य करने की पोर प्रभी किसी हेमपदाचार्य माभेय नेमि विसधामका ध्यान नहीं गया है और इसी कारण बाहुबलि-सम्बन्धी काव्य (संस्कृत) १३वीं सदी हिकमी एक विशाल भारतीय-वाङ्मय एवं तत्सम्बन्धी पुरातत्त्व अमरबन्द्र पपानन्द महाकाव्य १४वीं सदी विक्रमी प्रभी उपेक्षित जैसा हो पड़ा है। साहित्य के शोषाथियों के बनेश्वर शत्रुञ्जय महामास्य १४वीं सदी रिमी लिए तविषयक सन्दर्भो तथा प्रकाशित एवं प्रप्रकाशित कुछ (संस्कृत) अप्रकाषित प्रमुख प्रन्थों की एक सूची यहाँ प्रस्तुत की जा रही है :- राधू तिसट्टिमहापुराण प्रथकार. अन्य काल विशेषज्ञ पुरिसचरिउ(अपभ्रंश) १५वीं सदी विक्रमी प्राचार्य भावपाहुड वि. स. की बाहुबलि का पप्रकाशित कुन्दकुन्द (प्राकृत) प्रथम सदी नामोल्लेख मात्र रलाकर पी भरतेश वैभव (कन्न) १५वीं सदी विक्रमी तथा कठोर तपस्या कुमुदचन्द्र बाहुबलि १५वीं सदी विक्रमी की प्रशंसा भाचार्य उमरिय ईस्वी की सक्षिप्तकथा- दोडय भुजवलि शतक १६ सदी विक्रमी विमलसूरि (प्राकृत) तीसरी मदी विस्तारवया सकलकीति वषमदेव चरित १६वीं सदी विक्रमी दृष्टि एवं मुष्टि कालदगोम्मटेश्वर युद्ध का सर्वप्रथम चरिते (कन्नर) १६वी सदी विक्रमी वर्णन पंचवष्ण बाहमिचरिते १७वीं सदी विक्रमी पतिवृषभ तिलोयपण्णत्ती ईस्वी की नमोल्लेख मात्र (कन्नर) (प्राकृत) ४.५वीं सदी पुण्मकलशगणी भरतबाहुबलिमधमाषी ६वी सदी सामान्य कथा महाकाव्यम् (संस्कृत) १७वीं सदी विक्रमी (प्राकृत) विस्तार एवं पामो भरतभूजवलि परितम् १८वीं सदी विकमी दृष्टि, वाणी एवं मल्ल पुरके अज्ञात भरतराजदिग्विजय उल्लेख (वर्णन भाषा (हिन्द) १८वीं सदी विक्रमी संबदासमणी वसुदेव हिण्डी (गकत) ५वी-छठी सदी लक्ष्मीबन्द्र जैन प्रस्तान्द्रों के पार २०ीपी विक्रमी धर्मदासगणी उपदेशमाला (संस्कृत) . पक्षय कुमार, जयोम्मटेश रविषेण पपपुराण , वि.स ७६१ न बाहुबनि २०ीं सदी विकमी
SR No.538033
Book TitleAnekant 1980 Book 33 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulprasad Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1980
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size14 MB
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