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________________ 'मनागत चौबीसो' : दो दुर्लभ कलाकृतियां ताम्र यन्त्र-यह एक चौकोर ताम्बे का यत्र है जो तथा किस कारण से यह अद्भुत परम्पग प्रचलित हुई। किमी प्रतिष्ठा या प्रप्टान्हिका व्रत प्रादि के उद्यापन के यद्यपि खोज शोध करने पर ऐसी कलाकृतियां पोर भी समय तैयार कराया गया होगा । इसमे उल्लिखित लेख से उपलब्ध हो सकेगी पर अावश्यकता है त्याम एवं साधना की। ज्ञात होता है कि सिंघई अमरसिह ने कर्ममल दहन हेतु यद्यपि कलाकृति में भविष्यत काल के २४ तीर्थंकरों इसकी प्रतिष्ठा कराई थी तभी यह यंत्र प्रतिष्ठित के नाम का उल्लेख नहीं है क्योकि प्रतिमाएं इतनी छोटी हना था। पूर्ण लेख निम्न प्रकार है -- प्रारम्भ मगला हैं कि जिन पर नामोत्कीर्ण नही हो सकता था पौर चिह चरणात्मक श्लोक से होता है जो अपूर्ण और अस्पष्ट है या लाछन का प्रश्न ही नही उठता है क्योंकि शास्त्रों में तथा ठीक से पढ़ा नहीं गया, जो कुछ पढ़ा गया वह निम्न भूत भविष्यत् (मतीत अनागत) काल के २४ तीर्थकरों के प्रकार है : श्रद्धालु विज्ञ जन इसमे सशोधन कर लें- चिन्ह या लाहनों का उल्लेख उपलब्ध नहीं होता है प्रतः तत्वं निर्विकल्प सर्ववृत्ति तात्पर्य परिग्रहं प्रतिष्ठाचार्य भट्टारक महोदय ने श्रावक धर्मदास को यही सम्मान निधः विवहार न सधर्म ..... मलाह दी होगी कि पूर्ण चौबीसी का निर्माण काबर पन्त संवत् १५२६ वर्षे वैसाप सुदी सप्तमी दिन बुधवासरे मे इसका मूल शीर्षक 'अनागत चौब.सी' व दिया जाये। और प्राज मदियों बाद हमे ऐसी दुर्लभ कृति उपलब्ध हो मुलसंघे बलात्कार गणे सरस्वती गच्छे पनदोदेवा स्तपट्टे सकी। दोनों चौबीसियों के चित्र प्रस्तुत हैं। इसके लिए शुभचन्द्रदेवास्तत्प? जिनचन्द्रदेवा मिधकीति देवा ।' भाई मवखन लाल जी विशेष धन्यवाद के पात्र है। तम्या - पोरवालवशे स. धनपति स उद्धरण च मद्गणि स चाद स. राव देवा सं विजयसिंह सं कर्मसिंह सं. मही करैरा ग्वालियर राज्य की एक प्रसिद्ध तहसील थी पति स. रतन स. मनसूख स सामन्त या स मन्ना भार एक मजवृत किला था। जो पब ध्वंशावशेष मात्र arth, स. धन्ना पुत्र मन् स. अमरमी पूत्र स होरिल द्वितीय पत्र रह गया है। इसके भीतर इतनी अधिक स. वीरभान श्री स वदेव भार्या जसोवह। तत्पुत्र श्री एक बडा गहरा तालाब है जिसमें जनश्रति के अनुसार विजयसिंह भार्या हमा स भीक भार्या दुणीघा स अमर प्रतिवर्ष किसी न किसी व्यक्ति की मृत्यु होती ही है। जिस काम. विजय मिट यहां के राज्य ने झासी की रानी महारानी लक्ष्मीबाईको स मक्षिम स. अमरसिह कर्मदहन मल इति । अंग्रेजों के विरुद्ध लडाई लड़ने मे बड़ी मदद की थी। . उपर्यक्त प्राचार्य परम्पग वलात्कार गण दिल्ली-जयपुर स्व० डा० वृन्दावन लाल जी वर्मा ने अपने उपन्यासों में शास्त्र की अटेर शाखा से सबधित हैं । भ जिन चन्द्र के करैरा का बडा महत्त्वपूर्ण वर्णन किया है। करंग जाने के दो शिष्य थे रत्नकीति और सिंहकीति जिनमें से इम लिए झासी से बसें चलती है । इतिहास एव पुरातत्व के प्रशस्ति का नामोल्लेख है वहीं इस प्रतिष्ठा के प्रमुख प्ररणा विशषज्ञ एक बार इस गाव क मादर में स्थित 'न बहुमूल्य स्रोत रहे होगे, इसीलिए भ. रत्नकीति का उल्लेख छुट कृतियो को देखें और उनका गभीर अध्ययन कर इस पर गया है क्योकि उन्होंने नागौर शास्त्र की पृथक स्थापना विशेष चर्चा करें। और 'अनागत चौबीसी' र विशेष कर ली थी। विशेष विवरण के लिए भट्रारक सम्प्रदाय के प्रकाश डालें । हो सकता है किसी ने 'प्रतीत चौबीसी' भी पृष्ठ ६७ से १०४ तक विभिन्न उद्धरणो मे उपयुक्त बनवाई हो जो भविष्य में शोध खोज करने पर यत्र तत्र भट्रारकों का उल्लेख है। विस्तारमय के कारण उन सबका कही प्राप्त हो सके । जैसी की सीमंधर स्वामी की प्रतिमा परिचय यहां अभीष्ट नहीं है। बयाना में मिल गई है। इस प्रकार 'अनागत चौबीसी' की दो कलाकृतियों की अन्त में इतना ही उल्लेख करना चाहता है कि शोध सर्वथा नवीन है और विद्वानों को विशेषतया सिद्धांत शिवपुरी जिला जैन पुरातत्व एवं कला की दष्टि से बहत तथा तत्वशास्त्र के वक्तामों को चिन्तन के लिए एक ही महत्वपूर्ण है । इस जिले में कोलारस, मगरीनी, नरवर, प्रमाण उपलब्ध हुअा है कि तेरहवी सदी में 'अनागत करेरा, शिवपुरी स्वयं, प्रमाला, पामोल, सखाया प्रादि चौबीसी' के निर्माण की कल्पना कैसे उद्धत हई और क्यों (शेष पू० ६६ पर)
SR No.538033
Book TitleAnekant 1980 Book 33 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulprasad Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1980
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size14 MB
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