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१२, वर्ष ३३, कि० ४,
अनेकान्त
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बाद बवाना में सीमधर स्वामी की प्रतिमा प्राप्त हो गई समय के बड़े प्रतिष्ठित विद्वान और प्राचार्य थे इन्होंने है। ऐसी जनश्रुति है कि सीमधर स्वामी के समोशरण मे अनेकों मूर्तियों की प्रतिष्ठा कराई थी तथा आश्विन कृष्णा कुम्बकुन्दाचार्य जी को कोई देव ले गया था जो वहा बहुत ५ स. १६७१ मे हरिया पुगण की रचना की थी विशेष ही छोटे से जीव प्रतीत हुए थे।
जानकारी के लिए भट्टारक संप्रदाय के पृ. २०३-२०४ पर
देखें। अब उन 'अनागत चौबीसी' का विवरण करता है। पहली चौबीसी धातु पीतल की निर्मित है और अत्यधिक पंच मेरु प्रतिमा -तीसरी कलाकृति पीतल की चौकोर कमापूर्ण ढंग से ढाली गई है चित्र संलग्न है । यह लगभग मेरु प्रतिमा है जो लगभग एक फूट ऊँचा गोल गुम्मदकार एक फट लम्बी, ऊंची होगी और लगभग ८३ इन्च चौड़ी है प्रत्येक और पाच-पाच प्रतिमाएँ विगज है इस तरह कुल होगी । प्रायः चौबीस में पद्मासन प्रतिमाएं होती है पर इसमें कुछ खड्गामन भी है । मूलनायक प्रतिमा कुछ बड़ी है बाकी २३ प्रतिमाएँ छोटी-छोटी है यहाँ तक को नाक नक्श भी स्पष्ट दिखाई नहीं देते पर शिल्पी ने जिस पालात्मक ढंग से इसे सजाया है । वह सर्वथा दर्शनीय है। • इसमें जो पृष्ठ भाग में उत्कीर्ण है वह निम्न प्रकार है.---
'संवत् १२८३ वर्षे मूलसंधे वैसाख सुदी ६ साधुलाल गज • सिंह सल्लेखना नमति' यद्यपि इस प्रतिमा मे 'अनागत । चौबीसो' का उल्लेख नही है पर इसकी आकृति तथा कला
एवं रचना पद्धति दूसरी चौबीसी जो स. १६७४ की है और जिसमें 'मनागत चौबीसी' उत्कीर्ण है उससे बिल्कूल मिलती जुलती है और ऐसी प्रतीत होती है कि उसी साच की ढली हो यद्यपि प्राकार में कुछ बड़ी है।
दूसरा चौबीसी का लेख-यह पहली चौबीसी की भांति पीतल की बनी है इसकी मूल नायक प्रतिमा
मिनाथ की है जिसमे शख का चिन्ह अंकित है इसके साथ । २३ प्रतिमाएँ पद्मासन और खड्गासन की है। इसमें जो लेख पृष्ठ भाग मे अकित है वह इस प्रकार है :----
संवत १६७४ जेठ सुदी नौमी सोमे मूलसंघे सरस्वती गन्छे भट्टारक श्रीयश कीति भट्टारक तत्पष्टुं भ. ललितकीति सन्पट्टे म. धर्मकीर्ति उपदेशत जैसवाल जातौ कोटिया गं,बी. गोपालदास भार्या कपूर के पुत्र दो ज्येष्ठ संघपति।
(संवत् १२८३) । श्री चितामणि भार्या बसाइकदे पूत्र त्रयाः धनराज भार्या
बीस प्रतिमाएँ इस मेरु मंदिर में विराजमान हैं। इसमें
जो लेख उत्कीर्ण है वह निम्न प्रकार हैं----'संवत् : मपराबती, सागरचन्द भार्या किसुनावती भूपति भायो १७२५ वर्षे पौष सूदो १५ गरुवासरे श्रीमूलसंघ वलात्कार :दशम, दितीय संघपति किसुनदास भार्या परभावती पुत्र गणे सरस्वती गच्छे कुन्दकुन्दान्वये सकलकीति उपदेशात् त्रयाः सराय भार्या पन्हपदे धर्मदास महिमा एते नमति । स वसते कुजमणी नित्य प्रणमति सकुटम्बः यह भट्रारक
नागत चौबीसी' उपर्युक्त भट्टारक बलात्कार गण की सकलकोति भी उपर्युक्त वलात्कार गण की गेरहट शाखा जोर शास्त्र के अन्तर्गत पाते हैं। भ.धर्मकीति अपने के ही भट्टारक प्रतीत होते हैं।
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