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'मनागत चौबीसी' :पो संभ कलाकृतियां अधिकारियों ने या तो लेख पढें नही या वे 'अनागत पं० श्रकलाश पन्द जी शास्त्री वाराणसी, डॉ. श्री. चौबीसी के महत्व को समझे नही।
ज्योतिप्रसादजी जेन लखनऊ, पं० श्री प्रगरचन्द नाहटा, जैसे ही मैंने स. १६७४ वाली चौबीसी में पूर्ण विवरण दुर्गावती पुरातत्व संग्रहालय जबलपुर के अध्यक्ष श्री बाल के साथ, जो प्रागे उल्लिखित है, 'अनागत चौबीसी' शब्द चन्द जी एम. ए., लखनऊ पुरातत्व संग्रहालय के विद्वान् पढा तो मेरा मन हर्ष से प्रफल्लित हो उठा और मस्तिष्क श्री शैलेन्द्र रस्तोगी, जैन परातत्व के पडित श्री गोपीलाल में खलबली मच गई कि यह तो एक सर्वथा दुर्लभ प्रौर जी अमर, पं. श्री हीरालाल जी साढ़मल, ज्ञानपीठ के डॉ., अप्रकाशित एव अज्ञात कलाकृति है । यद्यपि अब तक मैंने गुलाब चन्द जी, पं. श्री हीरालाल जी कौशल प्रभृति दस पाच या सौ पचास नहीं पितु हजार से अधिक मूति विद्वानों से 'अनागत चौबीसी' के बारे में चर्चा की पर सभी
ने शास्त्रानुसार 'अनागत चौबीसी' का अस्तित्व तो स्वीकार किया पर प्रमाणस्वरूप कोई प्रतिमा या कही किसी शास्त्र में ऐसी प्रतिमा के निर्माण के उल्लेख के बारे में कोई ऐतिहासिक या परातात्विक प्रमाण के विषय में कोई प्राधिकारिक उत्तर नही लिखा । इन सभी विद्वानो का मैं हृदय से प्राभारी है।
यद्यपि श्रद्धालु रूढ़िवादी पाठक इस विषय में शंका कुशंका या तर्क-वितर्क करेंगे कि इस पचमकाल में अनागत बीबीसी का निर्माण कैसे हो सकता है यह तो चौथे काल (आने वाले) की बात होनी चाहिए। पर यह एक ऐतिहासिक सत्य है तथा पुरातत्व की दृष्टि से सिद्ध हो गया है कि लगभग चार सौ वर्ष पूर्व सं० १२८३ में निर्मित ऐसी ही चौबीसी उपलब्ध हैं । 'अनागत चौबीसी' के निर्माण के पीछे प्राचार्यों की तथा विद्वानों की क्या परिकल्पना रही होगी और किस भक्ति-भाव से उन्होने ऐसा किया कुछ नही कहा जा सकता जबकि प्रायः वर्तमान चौबीसी के ही निर्माण की प्रथा प्रचलित रही है। प्रनसंधित्स् विद्वान इस पर विचार विमर्श करें और ऐमी मूर्ति निर्माण के कारण खोजें । पर यह निर्विवाद सत्य है कि यह एक नई खोज है जोपाज तक अन्यत्र उपलब्ध नही हुई है और न कही चर्चा भी है, प्रतः इस पर विस्तार से चर्चा होनी चाहिए।
अभी १५ दिसम्बर, ८० को ज्ञानपीठ पुरस्कार के अवसर (संवत् १६७४)
पर पं. श्री कैलाश चन्द जो से चर्चा हुई थी तो उन्होंने इस लेख, यंत्रलेख, चौबीसी वगैरह देख चुका हूं और उनके
प्रतिमा को अद्भुत बताया साथ ही उन्होने बताया कि लेख संग्रहीत एवं संकलित कर प्रकाशित कराए है पर अब
विदेह क्षेत्र स्थित विद्यमान बीस तीर्थकरों की प्रतिमानों में तक 'अनागत चौबीसी' के नाम से कोई भी प्रतिमा या
से प्रथम तीर्थकर सीमंधर स्वामी की प्रतिमा के विषय में चौबीसी दृष्टि गोचर नही हुई, प्रत: अपनी अल्पज्ञता की
लोग शंकास्पद थे, जब स्व पू कानजी स्वामी ने सोनगढ़ शांति हेतु मैंने अनेकों विद्वानों में पुरातत्वविदों से, तथा जैन इतिहासकारों से पत्रव्यवहार किया जिनमें से कछ समोशरण में सोमंधर स्वामी की प्रतिमा प्रतिष्ठित कराई निम्न प्रकार है:
लोगों ने इसका विरोध किया था पर अब खोज शोध के
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