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'अनागत चौबीसी' : दो दुर्लभ कलाकृतियां
0 श्री कुन्दन लाल जैन, दिल्ली
जैन शास्त्रों में तीन चौबीसी प्रचलित हैं। वर्तमान, जिससे मैं अपनी अल्पज्ञता में कुछ संशोधन कर सक । भूत (प्रतीत) और भविष्यत (अनागत)। वर्तमान
अभी इस दशहरा अवकाश पर लगभग दो हजार चौबीसी में ऋषभदेव, अजितनाथ आदि से लेकर भ०
कि. मी. के प्रवास पर सपरिवार निकला था। दिल्ली महावीर पर्यन्त चौबीस तीर्थकर हैं जिनको पहिचान उनके
लौटते हुए दो दिन को करेग भी चला गया था क्योकि लांच्छन (चिन्ह) बैल, हाथी, घोडा प्रादि से लेकर सिंह
वहा रिश्तेदारी है। यहाँ श्री मक्खनलाल जी वया कपडे पर्यन्त चौबीस चिन्हो से होती है। यद्यपि यह चिन्ह
के व्यापारी है तथा मि. बद्रीप्रसादजी दोनो ही बड़े धार्मिक परम्परा छठी शताब्दी के बाद प्राप्त होने वाली प्रतिमानों
एव श्रद्धालु श्रेष्ठ श्रावक है उन्होंने मुझे यहां के प्राचीन में ही दृष्टि गोचर होती है इससे पूर्व की प्रतिमाएँ बिना
दि० जैन बडे मंदिर में महज भाव से मात्र धार्मिक चर्चा लांछनो (चिन्हो) की ही मिली हैं।
हेतु प्रामत्रित किया । मदिर शिखर बध एव प्राचीन है। भूतकाल (प्रतीत) के २४ तीर्थकरो के नाम पहले भी कई बार दर्शन कर पाया ह । अब की बार जब इस शास्त्रानुसार १ निर्वाण २. सागर ३ महासाधु ४. विमल मंदिर में गया तो अचानक दो प्राचीन कलाकृतियो पर दृष्टि प्रभु ५. शुद्धाय ६ श्रीधर ७ मुदत्त ८. विमल प्रभु: उद्धर गड गई और ऐसा अनभव हमा किये कोई विशिष्ट प्रतिमा १० अगिर ११. सन्मति १२. सिंधु १३ कुसमाजलि हैं। मैंने श्री मवखनलालजी से इनको देखने तथा इनमें १४. शिवगण १५ उत्साह १६. ज्ञानेश्वर १७. परमेश्वर उत्कीर्ण लेख को पढ़ने की उत्कण्ठा प्रकट की। च कि भाई
कीर्ण लेख को पढने की सत्कार कर १८. विमलेश्वर १६. यशोधर २०. कृष्णमति २१. ज्ञान
मक्खनलालजी ने भोजन का प्रायोजन कर रखा था। प्रतः मति २२. शुद्धमति २३. श्रीभद्र २४. श्मतः प्रादि है।
इस शुभ कार्य को भोजनोपरान्त ही सम्पन्न करने की भविष्यत (अनागत) काल के २४ तीर्थकगे के नाम स्वीकृति दी। मै तो गोधार्थी ठहग मुझे भाई मवखन लाल १. महापद्म २ मुरदेव ३. सुपार्श्व ४. स्वयप्रभु ५. सर्वात्म- जी का प्राग्रह स्वीकारना पडा । इस बीच वध जमकर भूत ६. देवपुत्र ७. कुलपुत्र ८. उद६. प्रोप्टिल १०. धार्मिक एवं प्राधुनिक समाज की विकृतियों के सम्बन्ध में जयकीति ११. मुनिसुव्रत १२. पर १३. निरपाप १४. खुलकर चर्चा हुई। निराकाय १५. विपुल १६. निर्मल १७. चित्रगुप्त १८.
भोजनोपरान्त श्री मवखनलालजी ने पुन: स्नान कर समाधिगुप्त १६. स्वयंभू २०. मनिवृत्तक २१. जय २२.
शुद्ध वस्त्र धारण कर मूतियो को बाहर प्रकाश में निकाला विमल २३. देवपाल और २४. अनन्तवीर्य प्रादि है।
और सिं. बद्रीप्रसादजी व श्री मक्खनलालजी के सहयोग से वर्तमान चौबीसी की अनेको मूर्तियां व प्रतिमाएँ उन मतियो का सूक्ष्म निरीक्षण किया और उनसे अंकित पूरातत्त्व एव इतिहास की दृष्टि से उपलब्ध है । चन्देरी लेख नोट किए। यहाँ जो उल्लेखनीय ऐतिहासिक एव की चौबीसी तो प्रसिद्ध हो है पर है वह वर्तमान २४ पूरातत्व की दृष्टि से महत्वपूर्ण दो अनागत चौबीसी, एक तीर्थकरो की । पर प्रतीत और प्रनागत चौबीसी की कोई पंचमेरु तथा एक ताम्रयत्र हैं । ग्वालियर के पुरातत्त्व के प्रतिमा या मूर्ति किसी अनुसंधित्सु विज्ञ पाठक या लेखक विभाग ने उन्हे रजिस्टर्ड कर लिया है नियमानुसार को कहीं प्राप्त हुई हो तो कृपया लेख के संदर्भ में प्रागे रजिस्ट्रेशन पत्र भी दिया है तथा उपयुक्त प्रतिमानों के प्रकाश डालें और मुझे भी सूचित करने की कृपा करें चित्र भी दिए है। पर लगता है पुरातत्त्व विभाग के