________________
तीर्थकर महावीर को निर्वाण-भूमि ‘पावा'
→ श्री गणेशप्रसाद जैन, वाराणसी
तीर्थकर महावीर का निर्वाण ७२ वर्ष की प्रायु मे का उपदेश सुनने के लिए विभिन्न देशों से राजा एवं प्रजा ई. सन से ५२७ वर्षांपूर्व पावा में हुआ था। दिगम्बर- जन 'पावा'पधारे थे। ती० महावीर-उपस्थित जन-समूह शास्त्रो के अनुसार उन्तीस वर्ष पाच मास और बीस दिन को छह दिनों तक उपदेश करते रहे। सातवें दिन रात्रितक केवली भगवान महावीर चार प्रकार के अनागारो भर उपदेश देते रहे । जब रात्रि के पिछले प्रहर में तथा बारह प्रकार के गणों (सभानों) के साथ विहार करते सब श्रोता नीद मे थे, भगवान महावीर पयंकासन से हुए अन्त मे 'पावा' में पधारे, और दो दिनो तक योग शुक्ल ध्यान में स्थित हो गये । जैसे ही दिन निकलने का निरोध करके अन्तिम गुण स्थान को प्राप्त कर लिया। समय हुमा । तीर्थकर महावीर प्रभु ने निर्वाण लाभ कर इनके चारो प्रघातिया कर्म नष्ट हो गये। कार्तिक मास लिया। जब उपस्थित जन समूह की तन्द्रा भंग हुई तो की कृष्ण चतुर्दशी को रात्रि पूर्णकर प्रात: की उषा वेला उन्हे दिखा कि वीर प्रभु निर्वाण लाभ कर चके है। उस मे स्वाति नक्षत्र के रहते हुए निर्वाण प्राप्त कर मोक्ष चले समय ती. केवली भगवान के प्रधान गणधर इन्द्रभूति गये। यह कार्तिक कृष्णा अमावस्या का प्रात:काल था। गौतम को केवल ज्ञान भी प्राप्त हुप्रा । 'हस्तिपाल' राजा,
श्वेताम्बर परम्परा में कार्तिक कृष्णा अमावस्या मल्लगण राज्य केनायक तथा १८ गण नायकों ने उस पौर शक्ला एकम के प्रभात में स्वाति नक्षत्र के रहते उषा दिन प्रोषध रखा था। यह निर्वाण मध्यमा-पक्षिा वेला में मोक्ष प्राप्त किया है। दोनों सम्प्रदाय में महावीर में गणतन्त्री मल्ल राजा हस्तिपाल के शल्कशाला में के मोक्ष-काल में २४ घण्टे (एक दिन एक रात्रि) का हुआ। अन्तर है । परन्तु निर्वाण-स्थल दोनो का 'पावा' ही है। प्राज २५०७ वर्षों से समस्त भारत तथा कुछ विदेशों
कि ARMI की प्रथवा १५ की रात्रि को में भी प्रतिवर्ष कार्तिक कृष्ण प्रमावस्या को ती. महावीर महान अन्धकार की रात्रि कहा जाता है। इन्द्र निर्वाण. के निर्वाण दिवस की स्मृति में दीपावली का महापर्व महोत्सव मनाने के लिये अपने देव परिषद के साथ 'पावा' मनाया जा रहा है । इसे सभी सम्प्रदाय भिन्न प में
मनाने लगे हैं किन्तु सभी दीपोत्सव करके ही मनाते पाया था, और वहा उसने असंख्य दीपो की दीप मालिका संजोकर महान प्रकाश किया था। प्रागन्तुक देवो के उच्च मधर स्वर के जयकार के बारम्बर के घोष से 'पावा' भारत और विदेशो में मिला कर लगभग एक सौ का प्राकाश गजित हो गया था। पावा नगर के नर-नारी सवत्सरों का प्रचलन है सम्भवत उनमे सर्व प्राचीन संबत उस घोष को सुनकर जाग गए और ती० महावीर का ती० महावीर का निर्वाण सवत ही है। विक्रम संवत निर्वाण जान समस्त परिवारों के लोग हाथों में दीपक महावीर-निर्वाण सवत से ४७० वर्षों बाद का है, शालि. लिए निर्वाण स्थल पर पाये थे, इसी प्रकार से वहा वाहन शकसवत ६०५ वर्ष ५ माह बाद का है, और प्रसस्य दीप एकत्रित हो गये। इन्द्र, देव-परिषद पावा के ई० सन् ५२७ वर्षों पश्चात प्रचलित हुभा है। तथागत नागरिको ने बड़े ही धूमधाम से ती. महावीर का निर्वाण बूद्ध ती० महावीर के समकालीन थे, और उनके जीवन महोत्सव मनाया।
काल में ती० महावीर निर्वाण प्राप्त कर चुके थे। श्वेताम्बर परम्परा में ती. केबली भगवान महावीर प्राज जिस 'पावा' का तीर्थकर महावीर की निर्वाण
द