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८६, वर्ष ३३, कि० ४,
अनेकान्त भमि मानकर वहां निर्वाण महोत्सव प्रति वर्ष दिगम्बर और 'पावा' माग्नेय दिशा में, दूसरी 'पावा' वायव्य-कोण मे श्वेताम्बर धूमधाम से मनाते है, वह इतिहासकारो और स्थित थी, अत: तीसरी पावा मध्यमा के नाम से प्रख्यात शोषको की दष्टि में विवाद की वस्तु बन गई है। उनका ' थी। भगवान महावीर का निर्माण और अन्तिम चातुर्मास कहना है कि यहां के स्थल में एक भी ऐसे चिन्ह प्राप्त इसी पावा में हपा था। (श्रवण भगवान महावीर-प० नहीं होते हैं, जो यह सिद्ध करने में समर्थ हों कि यह ३७५) । तीर्थकर महावीर की निर्वाण भूमि है।
यह प्रचलित 'पावा' जिसे पूरी भी कहा जाता है डा० राजबली पाण्डे का.-"भगवान महावीर की विहार शरीफ स्टेशन से नौ मील दूर है । दिगम्बर और निर्वाण भूमि' शीर्षक एक लेख (निबन्ध) प्रकाशित श्वेताम्बर दोनो सम्प्रदाय इस निर्वाण स्थल को कई हुआ है। आपने उसमे 'कुशीनगर से वैशाली' की पोर सदियों से श्रद्धा पूर्वक पूजते पा रहे है । इस ‘पावापुरी' मे जाती हुई सड़क पर कुशीनगर से ६ मील की दूरी पर निर्वाण-स्थल पर एक जल-मन्दिर निर्मित है। यह मन्दिर पूर्व-दक्षिण दिशा में 'सठियाव गाँव' के 'भग्नावशेष' पूर्ण संगमरमर से बना हुआ है, और एक बडे सरोवर के (फाजिलनगर) को ही निश्चित किया है। मध्य स्थित है। मन्दिर तक पहुचने के लिए ६०० फुट यह भग्नावशेष लगभग डेढ मील विस्तृत है, और लस्वा लाल पत्थरों से निर्मित पुल है । सरोवर कमल पुष्पो योगनगर तथा कुशीनगर के मध्य में स्थित है। यहां पर से सदा माच्छादित रहता है। चांदनी रात्रि में मन्दिर जैन-मतियों के वसावशेष अभी तक पाये जाते है । बौद्धका प्रतिबिम्ब जब सरोवर के स्वच्छ जल मे झिलमिलाता साहित्य में जो पावा की स्थिति बतलायी गयी है कभी दीखता है तब वह शोभा और भी अनुपम बन दर्शको को इसी स्थान पर घटित होती है। मोह लेती है । 'वास्तु-कला' की दृष्टि से भी यह विहार
हा० मेमिचन्द्र जी शास्त्री (पारा) ने लिखा है कि प्रान्त की एक अनुपम निधि है। यहा धर्मशालायें और।
–तीनों पावानों की स्थिति पर विचार करने से ऐसा पन्य मन्दिर भी हैं।
मालूम होता है कि ती. महावीर की निर्वाण-भूमि 'पावा' मुनि कल्याण विजय गणी ने लिखा है कि प्राचीन
डा. राजबली द्वारा निरुपित ही है। इसी स्थल पर भारत में 'पावा' नाम की तीन नगरिया थी। जैन सूत्रो
था। जन सूना काशी-कोशल के नौ, लिच्चवी, तथा नौ मल्ल, एव अठारह के अनुसार एक 'पावा' मंगि देश की राजधानी थी। यह
या । यह गणराजानों ने दीपक प्रज्वलित कर भगवान महावीर का प्रदेश पार्श्वनाथ पर्वत (सम्मेद-शिखर) के प्रासपास के
निर्वाणोत्सव मनाया था। 'नन्दि वर्धन (वर्धमान के अग्रज) भूमि भाग में फैला हुआ था। जिसमे हजारीबाग पौर
द्वारा ती० महावीर की निर्वाण भूमि पर उनकी पुण्यस्मृति मानभूमि जिलों के भाग शामिल थे । बौद्ध-साहित्य के
में जिस मन्दिर का निर्वाण किया था, पाज वही मन्दिर मर्मज्ञ कुछ विद्वान इस 'पावा' को मलय देश की राजधानी
फाजिल नगर का ध्वंसावशेष है । इस मन्दिर का निर्माण बतलाते हैं, परन्तु जैन-सूत्र ग्रन्थों के अनुसार यह मंगि देश
एक मील के घेरे में हुआ था, और यह ध्वंसावशेष लगभग की ही राजधानी सिद्ध होती है। दूसरी 'पावा' कोशल से
एक-डेड़ मील का है। ऐसा अनुमान होता है कि मुसलउत्तर-पूर्व कुशीनारा को मोर मल्ल राज्य की राजधानी
मानी सलतनत की ज्यादतियों के कारण इस प्राचीन थी। जिसे महापडित 'राहुल सांकृत्यादन' गोरख जिले के 'पपडर' प्राम को मान्यता देते है। यह पडरौना के निकट
तीर्थ को छोड़कर 'मध्यम-पावा' को ही तीर्थ मान लिया
गया है। यहा पर क्षेत्र की प्राचीनता का द्योतक कोई भी और कसाया से १२ मील उत्तर-पूर्व मे है। 'मल्ल' लोगों
चिन्ह नहीं है। अधिक से अधिक तीन सौ वर्षों से इस क्षेत्र के गणतन्त्र का सभा भवन भी इसी नगर में था।
को तीर्थ स्वीकार किया है। ती० महावीर के काल में तीसरी 'पावा' मगध जनपद मे थी, जो प्राजकल तीर्थ सोलह जनपद थे। जिसमे काशी, कोशल, मगध, वज्जि ग पने मान्य है। इन तीनों 'पाबाचों' में पहली और मल्ल प्रमुख थे। काशी की राजधानी बाराणसी,