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________________ अनेकान्त मोम्मटेश्वर नाम क्यों पड़ा? फुट इंच अब प्रश्न हो सकता है कि बाहुबली की मूर्ति का नाम चरण से कणं के प्रषोभाग तक गोम्मट क्यों पड़ा? संस्कृत मे गोम्मट शब्द मन्मथ कर्ण के अधोभाग से मस्तक तक (कामदेव) का ही रूपान्तर है। इसलिए बाहुबली की चरण की लम्बाई चरण के प्रग्रभाग की चौड़ाई मूर्तियां गोम्मट नाम से प्रख्यात हुई। इतना ही नहीं, चरण का अंगुष्ठ बल्कि मूर्ति स्थापना के पश्चात इस पुण्य कार्य की स्मृति । हात पाद पृष्ठ को ऊपर को गोलाई को जीवित रखने के लिए सिद्धान्त चक्रवर्ती प्राचार्यप्रवर जंघा की पर्ष गोलाई श्री नेमचन्द्र जी ने चामण्डराय का उल्लेख 'गोम्मटराय'के नितम्ब से कणं तक नाम से ही किया और अपने शिष्य चामुण्डराय के लिए 2 पृष्ठ-अस्थि के प्रधोभाग से कर्ण तक रचे हए 'पंच संग्रह प्रथ का नाम उन्होंने गोम्मटसार नाभि के नीचे उदर को चौड़ाई कटि की चौड़ाई रखा । चामुण्डराय का घरू नाम भी गोम्मट था। इसलिए कटि और टेहुनी से कर्ण तक भी कहा जाता है कि मति का नाम गोम्मटेश्वर पहा ।। बाहमल से कणं तक मति का प्राकार वक्षःस्थल की चौड़ाई भगवान बाहुबली की इतनी उन्नत मूर्ति का नाप लेना ग्रोवा के प्रधोभाग से कर्ण तक तर्जनी की लम्बाई कोई सरल वार्य नहीं है। सन् १८६५ में मैसूर के चीफ मध्यमा की लम्बाई कमिश्नर श्री वोरिंग ने मति का ठीक-ठीक माप करा कर पनामिका को लम्बाई उसकी ऊंचाई ५७ फूट दर्ज की थी। सन १८७१ ईस्वी में कनिष्ठका को लम्बाई महमस्तकाभिषेक के समय मैसूर के सरकारी अफसरों ने [स्व. श्री राजकृष्ण जैन कृत पुस्तक 'श्रवणबेल्गोल और मति के निम्न माप लिये दक्षिण के अन्य जैन तीर्थ' से उद्घत] 000 सम्यक्त्व-मति चामुण्डराय [मोमसार को कन्नरो टोका श्री केशव वर्णी ने शक सं० १२८१ में की थी उसको प्रशस्ति में चामुण्डराय के विषय में निम्न उल्लेख दृष्टव्य है (इसे पृष्ठ ५६ के लेख के शेषांश के रूप में भी पढ़ा जाए) -सम्पादक भी माप्रतिहतप्रभाव स्थानावशासनगृहाम्यंतरनिवासि सिंहायमान सिंहनंदी मुनीमाभिनवित गंगवंश ललाम राजमायनेक गणनाममभागधेय श्रीमनाचमल्ल देव महीबल्लभ महामात्य पर विराजमान रणरग. मल्ल सहाय पराकम गणरत्नभषण सम्यक्त्वरत्न मिलायारिविषिषगणनामसमासाक्ति कोतिकान्त श्रीमच्चामपराय प्रानावतीणक चत्वारिंशत्पदनाम सत्वप्ररूपणाद्वारेणाशेवधिमेयखन निकुरवातबोषना नेमिचन्द्र सिद्धान्तमावर्ती शास्त्रमारोत। काटिकी वृत्तिगि केशवः कृतम्।" -"स्याबाव-शासनरूपी गुफा के मध्य निवास करने वाले स्याहाद के अनुगामी मोर (वादियों में) सिंह के समान माचरण करने वाले प्रतिहत प्रभावी सिंहनंदी नामक मुनि से अभिनंदित, सर्वज्ञ (?) मादि ममेक गुण माम के पारक, भाग्यशाली गंगवंश के अवतंस रामा राचमस्ल के महामात्यपर पर पासीन, रणभूमि में मल्ल, पराकमरूपी, गुणरस्म के भूषण, सम्पपस्वरूपी रनके निवास मावि विविधगणों से यस्तोर कीति से दीप्यमान भीमद चामुगरायके प्रश्नों के कारणले-समस्तशिष्य समहमान के लिए सिवान्तवावर्ती भी नेमिचन्दबी द्वारा इकतालीस पदों वाली सत्-प्ररूपणा का प्रवतरण हुमा-शास्त्र (गोम्मटसार) बनाया गया। जिसकी कर्नाटकी वृत्ति (टीका) केशवपर्णी बारा बनाई गई।"
SR No.538033
Book TitleAnekant 1980 Book 33 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulprasad Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1980
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size14 MB
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