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१२, वर्ष १३, कि०४
सुख न माने अन्यथा मनुष्य जन्म बेकार जायगा । पोदन-पुरस्थ मूर्ति का वर्णन चामुण्डराय की माता कालल
बाइबली को निरपराध स्त्रियों का विलाप भी न रोक देवी को सुनाया। उसे सुन कर मातश्री ने प्रण किया कि सका। उनका रोना उनके कानो तक नहीं पहुंचा। बिना जब तक गोम्मटदेव के दर्शन न कर लूंगी, दुग्ध नही लुंगी। कारण परित्याग करने पर उनको बसन्त ऋतु, चन्द्रमा, मातृभक्त चामुण्डराय ने यह संवाद अपनीपत्नी प्रजितादेवी पुरुप धनुष 'पौर वाण ऐसे प्रतीत होते थे, जैसे नायक के के मुख से सुना और तत्काल गोम्मटेश्वर की यात्रा को बिना नाट्य मंडलो। बाबियां और शरीर पर लिपटी हुई प्रस्थान किया। मार्ग मे उन्होंने श्रवण बेल्गोल की चन्द्रगुत माधवी लता बतला रही है कि पृथ्वी बिना कारण परि. बस्ती मे भगवान पार्श्वनाथ के दर्शन किए और प्रन्तिप त्याग के सिमट गई हो और लतारूप शोकग्रस्त स्त्रियो ने श्रुतके वली भद्रबाहु के चरणों की वन्दना की। रात्रि का उनको प्रालिंगन कर लिया हो।
स्वप्न पाया कि पोदनपुर वाली गोम्मटेश्वर की मूर्ति वा बाहबली को भरतेश्वर की प्रार्थना भी न रोक सकी।
दर्शन केवल देव कर सकते है, वहा वन्दना तुम्हारे लिए
अगम्य है, पर तुम्हारी भक्ति से प्रसन्न होकर गोम्मटेश्वर भरत ने कहा था कि "भाई! मेरे १८ भाइयो ने संसार
तुम्हे यही दर्शन देंगे। तुम मन, वचन, काय की शुद्धि में त्याग करके दीक्षा धारण कर ली है। यदि पाप भी
सामने वाले पर्वत पर एक स्वर्णबाण छोड़ो और भगवान तपश्चरण को जायगे, तो यह राज्य सम्पदा मेरे किम काम
के दर्शन करो। मातश्री को भी ऐसा ही स्वप्न हुमा । प्रायगी ?"
दूसरे दिन प्रातःकाल ही चामुण्डराय ने स्नान पूजन में शुद्ध गोम्मटदेव ! प्रापकी वीरता प्रशंसनीय है। जब
हो चन्द्रगिरि की एक शिला पर अवस्थित होकर, दक्षिण मापके बड़े भाई भरत ने प्रार्थना की, कि पाप यह विचार
दिशा को मुख करके एक स्वर्ण बाण छोडा, जो बड़ी पहाडी छोह दें कि प्रापके दोनों पांव मेरी पृथ्वी मे है। पृथ्वी न
(विध्यगिरि) क मस्तक पर जाकर लगा। बाण लगन मेरी हैन मापकी। भगवान ने बतलाया है कि सम्यग्दर्शन,
ही विन्ध्यगिरि का शिखर कार उठा, पत्थरो की पपड। ज्ञान और चारित्र ही मात्मा के निजी गुण हैं । ऐसा सुनते
टूट पड़ी मोर मंत्री, प्रमोद प्रौर करुणा का ब्रह्मविहार ही मापने सर्व गवं त्याग दिया और आपको कैवल्य की
दिखलाता हुमा गोम्मटेश्वर का मस्तक प्रकट हुप्रा। प्राप्ति हुई।
चामुण्डराय और उसकी माता की प्रांखों से भक्तिवश गोम्मटदेव यह प्राप ही के योग्य था। प्रापके
अविरल अश्रुधारा बहने लगी। तुरंत असंख्य मूर्तिकार तपश्चरण से आपको स्थायी सुख मिला तथा औरों को
वहां मा गए । प्रत्येक के हाथ मे हीरे की एक-एक छनी प्रापने मार्गप्रदर्शक का कार्य किया। प्रारने घातिया कर्मों
थी। बाहबली के मस्तक के दर्शन करते जाते थे और का नाश करके अनन्तदर्शन, अनन्तज्ञान, अनन्तवीर्य और
प्रास-पास के पत्थर उतारते जाते थे। कन्धे प्रकट हुए, मनन्तसुख प्राप्त किया और अधातिया कमो के नाश मे
छाती दिखाई देने लगी, विशाल बाहुमो पर लिपटी हुई अपने सिद्धत्व प्राप्त किया।
माधालता दिखाई दी। वे परों तक प्रा पहुंचे। नीचे हे गोम्मटदेव ! जो लोग इन्द्र के समान सुगन्धित
वामियों मे से कुक्कुट सर्प निकल रहे थे, पर बिल्कुल पुष्पों से पापके चरण कमल पूजते है, प्रसन्नचित्त हो र
अहिंसक। पैरों के नीचे एक विकसित कमल निकला। दर्शन करते हैं, आपकी परिक्रमा करते है और पापका गान
भक्त माता का हृदय-कमल भी खिल गया और उसने करते हैं, उनसे अधिक पुण्यशाली कोन होगा ?"
कृतार्थ और मानन्दित हो 'जय गोम्मटेश्वर' की ध्वनि यह वर्णन थोड़े-बहुत हेर-फेर के साथ 'भुजबलियतक'. की। प्राकाश से पुष्पवृष्टि हुई और सभी घश्य-धन्य कहने 'भजवलिचरित' गोम्मटेश्वर चरित्र', राजाबलिकथा' तथा लगे। फिर चामुण्डराय ने कारोगरों से दक्षिण बाज पर 'स्थलपुराण' में भी पाया जाता है।
ब्रह्मदेव सहित पाताल गम्ब, सन्मुख यक्षगम्ब, ऊपर का 'भजलिचरित' के अनुसार जैनाचार्य जिनसेन ने खण्ड, त्यागदकम्ब, प्रखण्ड वागिल नामक दरवाजा मोर