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________________ हागिरिपोयटेक्चर १ इनके ज्येष्ठ भ्राता भरत थे। ऋषभदेव के दीक्षित होने के है। तीनों लोको के लोगों ने यह माश्चर्यजनक बटमा पश्चात भरत मोर बाहुबली दोनों भाइयों में साम्राज्य के देसी।बकौन है जो इस तेजस्वी मति का ठीक वर्णन लिए युद्ध हुमा, इसमें बाहुबली की विजय हुई, पर ससार कर सकता है? की गति से विरक्त हो उन्होंने राज्य अपने ज्येष्ठ भ्राता नागराजों का प्रख्यात संसार (पाताललोक) जिसकी भरत को सौंप दिया और पाप तपस्या करने वन में चले नींव है, पृथ्वी (मध्यलोक) जिसका माधार है, परिषिषक गए। थोड़े ही काल में तपस्या के द्वारा उन्हे केवलज्ञान जिसकी दीवारें है. स्वर्गलोक (ऊर्वलोक) जिसकी छत, प्राप्त हुमा । भरत ने जो प्रब चक्रवर्ती हो गए थे, पोदन- जिसको भट्रारी पर देवों के रथ है, जिनका ज्ञान तीन पुर में स्मृति रूप उनकी शरीकृति के अनुरूप ५२५ घनुष लोको में व्याप्त है। पत: वही त्रिलोक गोम्मटेश्वर का प्रमाण की एक प्रतिमा स्थापित कराई, समयानुसार मूर्ति निवास है। के पासपास का प्रदेश कुक्कुट सो से व्याप्त हो गया, क्या बाइबली पनुपम सुन्दर है ? हो, वे कामदेव हैं। जिससे उस मति का नाम कुक्कुटेश्वर पड़ गया। घोरे. क्या वे बलवान हैं ? हां, उन्होने सम्राट् भरत को परास्त घोरे-धीरे वह मति लुप्त हो गई और उसके दर्शन केवल कर दिया है। क्या ये उदार है? हा, उन्होने जीता हमा मनियो को ही मत्रशक्ति से प्राप्त होतेथे। गगनरेश साम्राज्य भरत को वापिस दे दिया है। क्या वे मोह रहित रायमल्ल के मंत्री चामुण्ड गय ने इस मूर्ति का वृत्तान्त हैं ? हो. वे ध्यानस्थ हैं और उनको केवल दो पर पृथ्वी सना और उन्हें इसके दर्शन करने की अभिलाषा हुई। पर से सन्तोष है जिस पर देखो क्या केवलज्ञानी है? पोदनपुर की यात्रा प्रशक्य जान उन्होने उसी के समान हो, उन्होंने कमंबधन का नाश कर दिया है। एक सौम्य मूर्ति स्थाति करने का विचार किया और जो मन्मथ से पषिक सुन्दर है, उत्कृष्ट भुजबल को तदनुसार इस मूर्ति का निर्माण कराया ।" पागे कवि ने धारण करने वाले हैं, जिगने मम्राट् के ग को सण्डित अपने भावों को धम्पन्त रसपूर्ण सुन्दर कविता में वर्णन कर दिया, राज्य को त्यागने से जिसका मोहनष्ट हो गया किया है। जिसका भाव इस प्रकार है : जिसने कैवल्य प्राप्त करके सिवत्व पा लिया, समस्त "यदि कोई मूर्ति प्रत्युम्नत (विशाल) हो, तो यह ससार ने जिन पर नमेरु पुष्पों की वर्षा देखी, उन पुष्पों प्रावश्यक नहीं कि वह सुन्दर भी हो। यदि विशालता की चमक मोर दिग्य सुगन्ध परिषिचक से भागे चली पौर सुन्दरता दोनों हो, तो यह प्रावश्यक नहीं, कि उसमें गई। ..गोम्मटेश्वर के मस्तक पर पुष्पवृष्टि देखकर प्रलोकिक वैभव भी हो। गोम्मटेश्वर की मूर्ति मे स्त्री, पुरुष, बालक और पशु समह भी हषित हो उठा। विशालता, सुन्दरता और प्रलोकिक वैभव, तीनों का बेल्गोल के गोम्मटेश्वर के चरणों पर पुष्पवृष्टि ऐसी प्रतीत सम्मिश्रण है । अत: गोम्मटेश्वर की मूति मे बढ कर संसार होती थी, मानो उज्ज्वल तारा समूह उनके परणों की में उपानना के योग्य क्या वस्तु हो सकती है? वन्दना को माया हो । बाहुबली पर ऐसी पुष्पवृष्टि या तो यदि माया (शची) इनके रूप का चित्र न बना सकी, उस समय हुई थी, जब उन्होने द्वन्द्व युद्ध में भारत को १,००० नेत्र वाला इन्द्र भी इनके रूप को देखकर तप्त न परास्त किया या उस समय हुई जब उन्होंने कमंशत्रमों हमा और २००० जिह्वा वाला नागेन्द्र (अधिशेष) भी पर विजय प्राप्त की। इनका गुणगान करने में असमर्थ रहा, तो दक्षिण के अनुपम प्रय प्राणी! तू व्ययं जन्म रूपो बन में भ्रमण कर पौर विशाल गोम्मटेश्वर के रूप का कोन चित्रण कर रहा है। तू मिथ्या देवों मे क्यों प्रदा करता है? तू सर्वसकता है। कौन उनके रूप को देखकर तृप्त हो सकता है श्रेष्ठ गोम्मटेश्वर का निन्तन कर । तू जन्म, बढ़ापा पौर पौर कौन उनका गुणगान कर सकता है। खेद से मुक्त हो जायगा । पक्षी भूलकर भी इस मूर्ति के ऊपर नही रहते। गोम्मटेश्वर की यह विशाल मूर्ति देशना कर रही है बाहुबली की दोनों काखों में से केशर की सुगन्ध निकलती कि कोई प्राणी हिमा झूठ, पोरी, कुशील और परिग्रह में
SR No.538033
Book TitleAnekant 1980 Book 33 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulprasad Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1980
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size14 MB
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