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________________ इन्द्रगिरि के गोम्मटेश्वर 0 श्री राजकृष्ण जैन इन्द्रगिरि यह पर्वत बड़ी पहाड़ी के नाम से प्रसिद्ध है। भारत के मूर्तिकारों का मस्तक सदैव गर्व से ऊंचा रहेगा। इसे दोडवेट और विध्यगिरि भी कहते हैं । यह समा तट बाहबली (गोम्मटेश्वर) की मूर्ति यद्यपि जैन है से ३३४७ फट और नीचे के मैदान से ४७० फुट ऊंचा है। तथापि न केवल भारत, अपितु सारे संसार का प्रलोकिक ऊपर चढ़ने के लिए कोई ६०० सीढ़ी है। इसी पहाड़ पर धन है। शिल्पकला का बेजोड़ रस्न है, प्रशेष मानव जाति विश्वविख्यात ५७ फुट ऊंची खड्गार्सन गोमटेश्वर की की यह प्रमूख्य घरोहर है। इतने सुन्दर प्रकृतिप्रदत्त सौम्य मूति है। यह मूति १४-१५ मील से यात्रियों को पाषाण से इस मूर्ति का निर्माण हुमा है कि १००० वर्ष से प्रथम तो एक ध्वजा के स्तम्भ के माकार में दिखाई देती। अधिक बीतने पर भी यह प्रतिमा सूर्य, मेष, वायु प्रादि .. किन्त पास पाने पर उसे एक विस्मय मे डालने वाली, प्रकृति देवी की प्रमोघ शक्तियों से बात कर रही है। उसमे अपूर्व और पलौकिक प्रतिमा के दर्शन होते हैं। यात्री पगाघ किसी प्रकार की भी क्षति नही हुई और ऐसा प्रतीत होता शान्ति का अनुभव करता है और अपने जीव का सफल है कि शिल्पी ने इसे अभी टांकी से उत्कीर्ण किया हो। मानता है। गोम्मटेश्वर को मूर्ति माज के अन्ध ससार को देशना गोम्मटेश्वर की भूति दे रही है कि परिग्रह भोर भौतिक पदार्थों की ममता पाप यह दिगंवर, उत्तराभिमुखी, खड्गासन ध्यानस्थ का मूल है। जिस राज्य के लिए भरतेश्वर ने मुझसे संग्राम प्रतिमा समस्त संसार की पाश्चर्यकारी.वस्तुमों में से एक है किया, मैंने जीतने पर भी उम राज्य को जीर्णतृणवत समझ सिर पर केशों के छोटे-छोटे कंतल, कान बड़े और लम्बे, कर एक क्षण में छोड़ दिया । यदि तुम शांति चाहते हो वक्षःस्थल चौदा, नीचे लटकती हुई विशाल भुजाएं और तो मेरे समान निर्द्वन्द्व होकर प्रात्मरत हो। कटि किञ्चित क्षीण है। घुटनों से नीचे की घोर टांगें एक बार स्वर्गीय ड्यूक चाफ वैलिंगटन जब वे सर्वाकार हैं। मूर्ति को प्रखें, इसके पोष्ट, इसकी ठण्डी, सरिंगापाटन का घेरा डालने के लिए अपनी फौजों की पांखों की मौहें सभी अनुपम पोर लावण्यपूर्ण हैं। मुख पर कमाण्ड कर रहे थे, मार्ग में इस मूर्ति को देख कर अपूर्व कान्ति पौर अगाध शान्ति है। घुटनों से ऊपर तक प्रश्चर्यान्वित हो गए मोर ठीक हिसाब न लगा सके कि बांवियां दिखाई गई है, जिनसे कुक्कुट सर्प निकल रहे हैं, इस मूर्ति के निर्माण में कितना रुपया तथा समय व्यय दोनों पैरों और भूजाधों है माधवी लता लिपट रही है। हआ है। मुख पर प्रचल ध्यान-मुद्रा पङ्कित है। मूर्ति क्या है मानों गोम्मटेश्वर कौन थे और उनकी मूर्ति यहां किसके स्याग, तपस्या पौर शान्ति का प्रतीक है। दृश्य बड़ा ही द्वारा किस प्रकार भोर कब प्रतिष्ठित की गई, इसका कुछ भव्य पोर प्रमावोत्पादक है। पादपीठ एक विकसित कमल उल्लेख शिलालेख नं० २३४ (८५) में पाया जाता है। के पाकार का बनाया गया है। निःसंदेह मूर्तिकार ने यह लेख एक छोटा-सा सुन्दर कन्नड काव्य है जो सन् अपने इस अपूर्व प्रयास में सफलता प्राप्त की है। समस्त ११८० ई. के लगभग बोप्पनकवि के द्वारा रचा गया था, संसार में गोम्मटेश्वर की तुलना करने वाली मूर्ति कहीं भी वह इस प्रकार है। नहीं है। इतने भारी पौर विशाल पाषाण पर सिद्ध हस्त "गोम्मट, पुरुदेव अपर नाम ऋषभदेव प्रथम तीर्थकर कलाकार ने जिस कौशल से अपनी छनो चलाई है उससे के पुत्र थे। इनका नाम बाहबली या भुजबली भी था।
SR No.538033
Book TitleAnekant 1980 Book 33 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulprasad Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1980
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size14 MB
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