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बाहुबली : स्वतन्त्रतमाका हस्ताभर
जाने के लिए वैसे ही उत्कंठित है, जैसे रात के समय होने दंगा। मैं उनकी भांति सीधानहीं, पपना पराकम पकवा कवी से मिलने के लिए उत्कठित रहता है। दिखाने के बाद जाऊंगा । दूत | तुम शीघ्र जामो पीर दूत! तुम बोलो, मौन क्यों बैठे हो? भरत ने तुमको भरत से कहो-हम अपनी मर्यादा कालोपन करें। यदि किस लिए यहां भेजा है, उसे स्पष्ट करो" । बाहुबली की तुमने युर लाद दिया तो में पीछे नहीं रहूंगा। जय वाणी से दूत कुछ प्राण-संचार हुप्रा वह साहस बटोर कर पराजय की कथा दुनिया कहेगी। में संघर्ष में नहीं बोला -"महाराज ! पापको पता है प्रापके भाई भरत बड़ाता। मुझे केवल एक ही चिन्ता है कि भगवान दिग्विजय कर अयोध्या लौट चुके हैं। उनकी सभा मे ऋषम ने सारे संसार को मर्यादा, व्यवस्था और अनुशासन संसार के सभी राजे है वे सभी सम्राट के सामने का पाठ पढ़ाया। हम दोनों युद्ध में उतरेंगे तो लोग क्या नतमस्तक है, सम्राट को प्राज्ञा को शिरोधार्य किए हुए कहेंगे। इतिहास लिखा जाएगा, भगवान ने व्यवस्था दी हैं। उनकी उपस्थिति में प्रापकी अनुपस्थिति मम्राट को और उनके पुत्रों ने ही सबसे पहले उस व्यवस्था को बल रही है। वे चाहते है पाप उम महापरिषद में तोड़ा। भाई-भाई को लड़ाई के लिए भरत-बाहबली की उपस्थित हों उनकी प्राज्ञा शिरोधार्य करें"। परामर्श मांगे लहाई उदाहरण बन जाएगी। बिना ही दूत प्रपना परामर्श दे बैठा - "मम्राट ने जो दूत हतप्रभ हो बाहुबली की उदात्त वाणीको सुनता कहलाया है, उसे मैं भी उचित मानता हूं। पापके हित रहा। वह बाहुबली से विदा ले मरत के पास पहुंच गया। की दृष्टि से कहना चाहता हूं कि माप उनकी इच्छा का बाहुबली ने जो कहा, वह भरत को बता दिया। मूल्याकन करे। प्राप यह सोचकर निश्चित है कि भरत क्या भरत बाहुबली से युद्ध करना नहीं चाहता था। मेरा भाई है, किन्तु ऐसा सोचना उचित नहीं है । क्योंकि नहीं क्यों चाहता था, पक्रवर्ती बनने को पाकामा है तो वह राजापो के साथ परिचय करना अन्ततः सुखद नहीं होता। युद्ध चाहता ही। भरत ने विजय यात्रा के लिए यद्यपि प्राप बलवान है, फिर भी कहाँ सावं भौम सम्राट प्रयाण कर दिया। बाइबली भी रणमि में भा गया। भरत पौर कहा एक देश के अधिपति पाप । दीपक दोनों की सेनाएं पामने-सामने हट गई। परस्पर युद्ध कितना भी बड़ा हो, वह एक ही घर को प्रकाशित करता हमा। मानवीय हित के पक्ष में सेना का यह है. सारे जगत को प्रकाशित करने वाला तो सूर्य हो स्थगित हो गया । भरत पोर पाहुबली दोनों
ने परस्पर युट करने का निर्णय लिया। उन्होंने दष्टि दूत की वाचालता ने बाहुबली की शौर्य ज्याला को युद्ध मुष्टि पट, शब्द युद्ध और गष्टि युद्ध-ये पार यस प्रदीप्त कर दिया। वे बोल-ऋषभ के पुत्रों के लिए निश्चित किए । भरत पोर बाहुबली की का वष्टियन राजामो को जीत लेना कौन सी बड़ी बात है? मुझे कुछ प्रहरों तक चला। उनकी अग्निमय पांखें एक सरे जीते बिना ही भरत सार्वभौम चक्रवर्ती बनकर ६६ कर को घूर रही थी। भीगो हुई पलकों के अन्तराल मे रहा है, यह बहुत माश्चर्य की बात है। बाज तक मरे तारा बरही थी। भरत को दोनों पा बात हो गई। लिए प्राईभरत पिता की भांति पूज्य था, किन्तु पाज से बाहुबली से ही एकटक निहारते रहे। भरत पराजित बहमरा विरोषी है। वह अपने छोटे भाइयो के राज्यो हो गया। मुष्टि पुर, सम्म युद्धपोर गष्टि युद्ध में भी का हड़प कर भी सन्तुष्ट नही हुमा । पब मुझ पर अपनी मरत को पराजय मिली। पराजित भरत ने मर्यादा का माझा वोपना चाहता है भोर मेरे राज्य को अपने अधीन पतिकमण कर बाहुबली पर पक अस्त्र का प्रयोग किया। करना चाहता है। पर, में ऐसा नहीं होने दूंगा। मेरे पक्रबाहुबली के पास गया । प्रथिना कर भरत के पास निन्यानवे भाई राज्य को छोड़ पिता के पास चले गए- मोट पाया। पकबह पात्मीय बनों पर प्रहार नहीं मुनि बन गए। वैसे ही मैं भी चला जाऊंगा? उन्होंने करता। संघर्ष को टालने के लिए वंसा किया, किन्तु में ऐसा नहीं
( १.५३ पर)