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बाहुबली : स्वतन्त्र चेतना का हस्ताक्षर
0 युवाचार्य महाप्रज्ञ
श्रवणबेलगोला मे भगवान बाहुबली की विशाल सेनापति ने विनम्र स्वर मे कहा-'सम्राट, मैं नहीं प्रतिमा एक प्रश्नचिह्न है और एक अनुचरित कहता, वह प्रवरोष पैदा करेगा। यह मैं कह सकता ह प्रश्न का समाधान भी है। क्या मनुष्य शरीर इतना चकमायुधशाला में प्रवेश नहीं कर रहा है? उसका विशाल हो सकता है ? हजारो-हजारों वर्ष पहले कोई कारण बाहुबली का पापके चक्रवतित्व मे विश्वास न होना मौर मण्डल का ऐसा प्रभाव रहा होगा, मनुष्य ने विशाल ही है। शरीर पाया होगा। उसकी पुष्टि में प्रभी कोई तर्क
भरत ने सेनापति से विमर्श कर बाहुबली के पास प्रस्तुत नही करना है। वर्तमान की ममस्या का वर्तमान
अपने दूत को भेजा। दूत तक्षशिला मे पहच बाहुबली के
सामने उपस्थित हो गया। बावली ने भरत का कुशल उपकरण मनुष्य को अन्तरात्मा का प्रतिनिधित्व करते हैं। और
रत है। क्षेम पूछा । दूत बाहुबली के तेज से अभिभूत हो गया।
वह मोन रहा। कहना चाहते हुए भी कुछ न कह पाया। प्रस्तरात्मा की विशालता में खोजा जा सकता है। बाहबली ने उसकी प्राकृति को पढ़ा। स्वय बोले-"भाई स्वाभिमान, सतन्त्रता भोर त्याग की विशालता मे बाहु. भरत में मोर मुझ मे प्राज प्रेम और सोहार्द है पर क्या बली प्रसाधारण है। यह विशाल प्रतिमा उसी विशाल करें? हम दोनो के बीच देशान्तर प्रा गया जिस प्रकार व्यक्तित्व का एक प्राण वान दर्शन है।
प्रेम से भीगी हुई पाखों के बीच नाक पा जाता है दूत ! भरत दिग्विजय कर अपनी राजधानी प्रयोध्या में पहले मैं भाई के बिना महत भर भी नही रहा सकता पहुचा। मेनापति सुषेण न कहा, "चक्र प्रायुधशाला में था। किन्तु प्राज मेरी माखे उसे देखने को प्यासी है। वे प्रवेश नही कर रहा है।" भरत ने जिज्ञासा के स्वर मे उपवास कर रही है। उसे देख नही पा रही है। इसलिए कहा- 'क्या कोई राजा प्रभी बचा है, जो भयोध्या के ये दिन मेरे व्ययं बीत रहे हैं। मैं उस प्रीति को स्वीकार अनुशासन को शिरोधार्य न करे? सेनापति बोला- नहीं करता जिसमे विरह होता है। यदि हम वियक्त "कोई बचा है इसीलिए चक्र आयुषशाला में प्रवेश नही होकर भी जी रहे है तो इसे प्रीति नही रोति ही समझना कर रहा है" कौन बचा है वह ? अपनी स्मति पर दबाव चाहिए"-दूत बाहुबली की बातें मुन पुलकित हो उठा। डालते हुए भरत ने कहा । सेनापति फिर भी मौन रहा। उसने सोचा -मुझे भरत का सन्देश बाहुबली को देना हो भरत को उसका मोन अच्छा नही लगा। उसने झंझलाहट नही पड़ा। यह भरत से प्यार करता है। मुझे पूरा के साथ कहा- लगता है, तुम मुझ से कुछ छिपा रहे विश्वास है कि मुझे अकेला नही लौटना पड़ेगा। मैं हो। तुम सकुचा रहे हो । मौन भग नही कर रहे हो"। बाहुबली के साथ ही भरत के चरणो मे उपस्थित होऊंगा। सेनापति बोला-"क्या कहू ? समस्या पर की है। पराए दूत नहीं जानता था कि प्रेम और स्वतन्त्रता दोनो अलगसब राजे जीत लिए गये हैं। कोई बाकी बचा है तो वह अलग हैं। बाहुबली प्रेम करना जानता है, पर स्वतन्त्रता अपना ही है" 'क्या बाहुबली बचा है" भरत के मुख से को बेचना नहीं। बाहुबली ने दूत के स्वप्न को भग करते अचानक यह नाम निकल गया। "मेरा वह भाई है। फिर हुए कहा "दूत, पिताश्री ने मुझे एक स्वतन्त्र राज्य सौंपा वह कैसे अवरोष पैदा करेगा मेरे चक्रवर्ती होने मे? है, इसलिए मैं मायोध्या जा नहीं सकता। मेरा हृदय यहां