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बनेकान्त
अफसरों ने इस प्रतिमा के प्रत्येक भाग का नाप लिया था
पश्चाद्भुजबलीशस्य तियंग्भागोस्ति कर्णयोः। जो निम्न प्रकार है
प्रष्टहस्तप्रमोछायःप्रमाकृभिः प्रकीर्तित ॥५॥ चरण से कर्ण के प्रधोभाग तक ५० फो। कर्ण
सोनन्देः परितः कष्ठ तिर्यगस्ति मनोहरम् । प्रधोभाग से मस्तक तक लगभग ६ फीट ६ इ०। परण
पादत्रयाधिक दशहस्तप्रमिनदीर्घतर ॥६॥ की लम्बाई फी० । चरण के अग्रभाग की चौडाई ४ फी० सुनन्दातनुजस्यास्ति पुरस्तात्कण्ठ रुच्छयः । ६ इन। चरण का प्रमुष्ठ २ फो.6 इंच। पाद पृष्ठ के पादत्रयाधिक्य युक्त हस्त प्रमिति निश्चयः ॥७॥ ऊपर की गुलाई ६ फो० ४ इच । जघा की मर्घ गुलाई भगवद्गोमटेशस्यासयोरन्तरमस्य वै । १० फो० । नितम्ब से कर्ण तक २० फो० । नाभि के नीचे तिर्यगायतिरस्यैव खलु षोडश हस्तमा ॥६॥ उबर की चौडाई १३ फो० । कटि की चोड़ाई १० फो० । वसश्चचुक सलक्ष्य रेखा द्वितय दीघता। कटि और टेहुनी से कणं तक ७ फो। वक्षस्थल की चौड़ाई नवांगुलाधिक्ययुक्त चतुर्हस्तप्रमेशितुः || २६ फीट । ग्रीवा के प्रधोभाग से कर्ण तक २ फी० ६ इंच। परितोमध्यमेतस्य परोतत्वेन विस्तृतः । तर्जनी की लम्बाई ३ फी० ६ इच। मध्यमा का लम्बाई प्रस्ति विशतिहस्ताना प्रमाण दाबलोशिन.॥१०॥ ५ फी० ३ इ० । मनामिका की लम्बाई ४ की. ७६० । मध्यमांगुलिपर्यन्त स्कन्धाद्दोघत्वमीशितुः। कनिष्ठिका की लबाई २ को ८ इ० ।
बाहयुग्मस्य पादाम्या युताष्टादश हस्त मा॥११॥ पर इससे भी अधिक प्रामाणिक नाप हमे 'सरस जन
मणिबन्धस्यास्य तियंपरीतत्वासमन्तत.। चिन्तामणि' काव्य के कर्ता कवि चक्रवर्ती पंडित शान्तराज
द्विपादाधिक षडहस्त प्रमाण परिगण्यते ॥१२॥ द्वारा निर्मित १६ इलाको स प्राप्त होता है जो निम्न
हस्तागुष्ठोच्छयोस्त्यस्य कागुष्ठात्यद्विहस्त मा। प्रकार है। यह नाप पाडत शान्तराज जी ने पद से लगभग
लक्ष्यते गोम्मटेशस्य जगदाश्चर्यकारिणः ॥१३॥ सौ वर्ष पूर्व सन् १८२५ म तत्कालीन मंसूर नरेश
पादागुष्ठस्यास्य देय द्विपादाधिकता भुजः । कृष्णराज पोडयर तृतीय के पादेश पर किया था यह नाप
चतुष्टयस्य हस्ताना प्रणामिति निश्चिनम् ॥१८॥ हस्त और अंगुलो मे है जो पूर्णतया प्रामाणिक है माज भी
दिव्य श्रीपाद दीर्घत्वं भगवद्गोमटेशिनः । प्रत्येक भाग श्लोक मे वणित हस्त और अगुलो में बिल्कुल
सैकांगुल चतुहंस्त प्रमाणमिति दणितम् ॥१५॥ ठीक-ठीक उतरता है केवल चरण के अंगुष्ठ में कुछ पतर
श्रीमत्कृष्णन साल कारित महाससक पूजोत्सवे, है। विशान्तराज द्वारा निमित २ श्लोक निम्न प्रकार है। शिष्टया तस्य कटाक्षरोचिर मृत स्नातन शान्तेन । जयति बेलुगुल श्री गोमटेशस्य मतिः,
पानीत कवि चक्रवयु कतर श्री शान्त र जेन तद, परिमितिमधुनामहच्मि सर्वत्र हर्षात ।
बोक्ष्यस्थ परिमाण लक्षणमिहाकारीदमेतद्विभोः ॥१६॥ स्व समय जनाना भावनादेशनार्थम्,
उपर्युक्त पं० शान्तराजकृत १६ श्लोको का सारांश पर समय जनानामभृतार्थ च साक्षात् ॥१॥
निम्न प्रकार हैपादान्मस्तकमध्यदेश चरम पादाचं युग्मात्त षट्,
चरण से मस्तक तक ३६ हस्त । चरण से नाभि तक विसहस्तमिताच्छयास्तिहिं यथा श्री दो लिस्वामिनः । २० हस्त । नाभि से मस्तक तक १६. हस्त । चिवक से पावविशतिहस्तसन्निमिति भ्यन्त मस्त्युच्छय,
मस्तक तक ६ हस्त ३ अगुल । कण को लबाई२४ हस्त ! पादान्वित षोरशोच्छय भरो नाभेशिशरोरान्त वा ॥२॥ एक कर्ण से दूसरे कर्ण तक चोड़ाई ८ हस्त। गले की
अबुकन्मूर्षपर्यन्त श्रीमहाबलोशिन; गुलाई १०.३/४ हस्त । गले की लंबाई १-३/४ हस्त/एक प्रस्त्यगुलित्रयो युक्तहस्तषट्कप्रमोचयः ॥३॥ को से दूसरे तक चोड़ाई १६ हाथ। स्तनमुख की पादत्रयाधिक्य युयुक्त दिहस्त प्रमितामयः । मोस रेसा ४ हस्त । कटि को गुलाई २० हस्त । कन्धे से प्रत्येक कर्णयोरस्ति भगवहोलीशिनः ॥४॥ मध्यमा मंगुली तक १८-१/२ हतस्त । कलाई की गुलाई