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भगवान् गोम्मटेश्वर की प्रतिमा का माप
D श्री कुन्दनलाल जैन, दिल्ली
भ० गोमद स्वामी को प्रतिमा १३ मार्च सन् १८१ सो मशीनो का सर्वथा प्रभाव था तथा स्थापत्य कला एवं ई० मे मंसूर नरेश राचमल्ल के प्रधान सेनापति श्री मूर्तिकला जैसी माधुनिक शिल्प सुविधापों का सर्वथा प्रभाव चामण्डराय ने अपनी मातु श्री के दर्शनार्थ निमित कराई था उस सक्रातिकाल मे ऐमी विशाल प्रतिमा, सर्वागीण घो। पाज से ठीक हजार वर्ष पूर्व यह अपूर्व कलाकृति कसे सुन्दर एवं समचतुरस्र संस्थान वाली उच्चकोटि को ऐसी मिमित हई होगी, यह अपने प्राप मे एक महान पाश्चर्य महान कलाकृति का निर्माण कर भारतीय शिल्पियों ने की बात है या देवी अनुकम्पा कहना चाहिए। इसके प्रमुख निश्चय ही भारतीय मूर्ति निर्माण एवं शिल्पकला के शिल्पी श्री त्यागद ब्रह्मदेव थे ।
इतिहास में स्वर्णमय पृष्ठ अंकित कर दिए हैं ! धन्य हैं वे संसार मे ताजमहल, ईजिप्ट (मित्र) के पिरामिह शिल्पी मोर घन्य है उनको शिल्प विज्ञता, जिनके सहए मादि सात प्रद्भुत (Seven Wonders) प्रसिद्ध हैं पर सुघड हाथों से एव अपने कलावान् छनी हपौड़ों से ऐसे बडे खेद की बात है कि हमारे प्रचार के प्रभाव में सुन्दर विराट स्वरूप को उत्कीर्ण किया पौर विश्व को ऐसी प्रथवा जाति धर्मगत भेदभाव एव द्वेष के कारण इस पपूर्व अनुपम सर्वोत्कृष्ट कलाकृति भेंट की जो अपने वैशिष्ट्य कलाकृति की विशेषज्ञों ने परवाह ही नही की अन्यथा यह एव सौन्दर्य तथा कलात्मकता के लिए संपूर्ण विश्व मे बहे सात प्रदभनों में अवश्य ही सम्मिलित की जाती। अब anter मा जी aurat जब विदेशी पर्यटक प्राते है और इस अनुपम कलाकृति के उपर्युक्त प्रतिमा को निमित हुए हजार वर्ष हो रहे हैं दर्शन करते हैं तो भाव विभोर हो उठते है पोर भारतीय फरवरी १९८१ मे इस मूति का हजारवां वर्ष बड़े समारोह शिल्पियो की शिल्पकला को प्रशसा एव सराहना करते के साथ मनाया जा रहा है और सदा की भांति महाहुए नहीं प्रघाते है।
मस्तकाभिषेक भी होगा और सुना है प्रथम कला भारत फरवरी १९८१ मे इस कलाकृति का हजारवा वर्ष की प्रधानमत्री श्रीमती इदिरागाधी भर्पित करेंगी (ढोरेगी) बडे समारोह से सम्पन्न किया जा रहा है इस अवसर पर यह महामस्तकाभिषेक इस युग की एक महनीय प्रभत देश-विदेश के प्रनेको दर्शनार्थी पधारेंगे सम्भवत: सयुक्तराष्ट्र घटना सिद्ध होगी जबकि ससार की प्राधुनिक सारी संघ के विशेषज्ञ भी पावें हमारी प्रधानमन्त्री भी पहचेंगी। वज्ञानिक उपलब्धिया इसक पागे सर्वथा तुच्छ और नगण्य मेरा सझाव है तथा जैन समाज से अनुरोध है कि भारत सिद्ध होगी। सरकार के शिक्षा एवं सास्कृतिक मंत्रालय के माध्यम से उपयुक्त प्रतिमा का माप विभिन्न विद्वानों ने विमान मयक्त राष्ट्र संघके शिक्षा सांस्कृतिक विभाग द्वारा प्रकार से दिया है। सर्व प्रथम प्राचीन विदेशी मूर्ति ( UNFSCO) इसे (Seven Wonders) मे सम्मिलित विशेषज्ञ डा. बुबनन ने इसकी ऊचाई ७० फीट ३ इंच कर Richt Wonders (पाठ पदभत) के रूप में इस लिखो है। इसके बाद सर प्रार्थर बेन्जली ने हमकी ऊंचाई कलाकृति को सम्मिलित किया जावे। यह एक महत्वपूर्ण ६० फी० ३० लिखी है। सन् १८६५ में मैसूर राज्य उपलब्धि जैन समाज के लिए होगी!
के तत्कालीन चीफ कमिश्नर श्री वोग्गि ने इस प्रतिमा का उस युग मे जब कि माधुनिक वैज्ञानिक उपलब्धियां ठीक-ठोक माप कगकर केवल ५७ फी० ही लिया है। सन मीथीं यातायात के साधन सीमित और धीमेथेन १८७१ मे महामस्तकाभिषेक के समय मैसूर के सरकारी