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श्री गोम्मटेश संस्तवन
श्री नाथूराम डोंगरीय जैन, न्यायतीर्य 'अवनीन्द्र', इन्दौर पिरमपूज्य आचार्य श्रीमन्नेमिचन्द्र सिद्धातचक्रवर्ती विरचित प्राकृत गोम्मटेस थुदि के आचार्य श्री विद्यानद जी महाराज कृत हिदो गद्यानुवाद पर आधारित पद्यानुवाद]
शत-शत बार विनम्र प्रणाम ! विकसित नील कमल दल सम है जिनके सुन्दर नेत्र विशाल । शरदचन्द्र शरमाता जिनकी निरख शात छवि, उन्नत भाल। चम्पक पूष्प लजाता लख कर ललित नासिका सुषमा धाम । विश्ववंद्य उन गोम्मटेश प्रति शत-शत बार विनम्र प्रणाम ॥१॥
पय सम विमल कपोल, झूलते कर्ण कध पर्यत नितान्त । सौम्य, सातिशय, सहज शांतिप्रद वीतराग मुद्राति प्रशांत । हस्तिशुड सम सबल भुजाएँ बन कृतकृत्य करें विश्राम ।
विश्वप्रेम उन गोम्मटेश प्रति शत-शत बार विनम्र प्रणाम ।।२।। दिव्य संख सौदर्य विजयिनी ग्रीवा जिनकी भव्य विशाल । दढ़ स्कध लख हआ पराजित हिमगिरि का भी उन्नत भाल । जग जन मन आकर्षित करती कटि सुपुष्ट जिनकी अभिराम । विश्ववंद्य उन गोम्मटेश प्रति शत-शत बार विनम्र प्रणाम ॥३॥
विध्याचल के उच्च शिखर पर हीरक ज्यों दमके जिन भाव । तपःपूत सर्वाग मुखद है आत्मलीन जो देव विशाल । वर विराग प्रसाद शिखामणि, भुवन शातिप्रद चन्द्र ललाम ।
विश्ववंद्य उन गोम्मटेश प्रति शत-शत बार विनम्र प्रणाम ॥४॥ निर्भय बन बल्लरियाँ लिपटी पाकर जिनकी शरण उदार । भव्य जनो को सहज सुखद है कल्पवृक्ष सम सुख दातार । देवेन्द्रों द्वारा अचित है जिन पादारविद अभिराम । विश्ववद्य उन गोम्मटेश प्रति शत-शत बार विनम्र प्रणाम ।।।।
निप्कलंक निर्गथ दिगम्बर भय भ्रमादि परिमूक्त नितांत । अम्बरादि-आसक्ति विजित निविकार योगीन्द्र प्रशांत । सिंह-स्याल-शडाल-व्यालकृत उपसर्गों में अटल अकाम ।
विश्ववंद्य उन गोम्मटेश प्रति शत-शत बार विनम्र प्रणाम ॥६॥ जिनकी सम्यग्दृष्टि विमल है आशा-अभिलाषा परिहीन । संसृति-मुख बाँछा से विरहित, दोष मूल अरि मोह विहीन बन संपुष्ट विरागभाव से लिया भरत प्रति पूर्ण विराम । विश्ववंद्य उन गोम्मटेश प्रति शत-शत बार विनम्र प्रणाम ॥७॥
अंतरंग-बहिरंग-संग धन धाम बिवजित विभु संभ्रांत । समभावी, मदमोह-रागजित कामक्रोधउन्मूक्त नितांत । किया वर्ष उपवास मौन रह बाहबलो चरितार्थ सुनाम । विश्ववंद्य उन गोम्मटेश प्रति शत-शत बार विनम्र प्रणाम ।।
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