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अनेकान्त
भबकि 'भुजबल शतक' में भी चामुण्डराय का उल्लेख का ही अपर नाम 'गोम्मट' 'गुम्मट' था। वह ही मागे चल 'गोम्मट' नाम से नही है; अतः यह नहीं कहा जा सकता कर गोम्मटेश्वर हो गया। जिसके लिए निम्न तव्य प्रस्तुत कि श्रवणबेलगोल की मूर्ति का नाम उनके संस्थापक की किये जाते हैंअपेक्षा से गोम्मटेश्वर पड़ा था।
गोम्मट शब की मृत्पत्ति-५० के० बी० शास्त्री ने (३) बाहुबलि की मूर्ति के संस्थापक स्वय चामुण्डराय अपने एक लेख में गोम्मट शब्द की व्युत्पत्ति करते हुए ने जो गोम्मट-मति के पाद-मूल मे तीन लेख अंकित बताया है कि प्राकृत भाषा के त्रिविक्रम व्याकरण के कराये हैं, उनमे भी उन्होंने अपने को 'गाम्मट' अथवा “गुम्म गुम्मडौ मुहेः" ३-४.१३१) इस सूत्रानसार 'मोहक' 'गोम्मटेश्वर' नही लिखा है। वे ये है
अर्थ मे णिजन्तार्थ में 'मह' धातु को गुम्मड' प्रादेश होता लेव नं०१७५-श्री चामुण्डराय ने निर्मापित है। इस शब्द के उकार के स्थान मे उसी व्याकरण के कराया।" कब और किम यह नहीं लिखा है। यह लेख के गजडदव बढषम कचटतप खछठयफाल (३.२.६५) कन्नड़ भाषा मे है।
सूत्रामसार इकार प्राकर 'गुम्मट' शब्द बनता है। इस मूल २ लेख नं० १७६--"श्री चामुण्डराय ने निर्मापित रूप में हो उच्चारण भेद से गोमट पोर गोम्मट शब्द बन कराया।" पोर किसे यह नही लिखा है। यह लेख गये हैं। समिल भाषा में है।
परन्तु एक अन्य प्रकार से -कात्यायन की प्राकृत ३. लेखनं० १७६-"श्री चामुण्डराय ने निर्मापित मंजरी के मो मः' (३.४२) सूत्र के अनुमार सस्कृत का कराया।" इसमें भी कब पोर किस को इसका उल्लेख नहीं 'मम्मथ' शब्द प्राकृत मे 'गम्मह' हो जाता है। उधर है। यह लेख मराठी भाषा पोर नागरी लिपि में अकित कन्नड़ भाषा में संस्कृत का 'प्रन्थि' शब्द 'गस्टि' और 'प' है। उपर्युक्त तीनों प्राचीन लेखों से भी स्पष्ट है कि स्वय शब्द 'बट्ट प्रादि में परिवर्तित हो जाते है । पतएव सस्कृत चामण्डराय भी गोम्मट नाम से परिचित नही थे। के 'मन्मय' शब्द का 'ह' उच्चारण जो उस प्राकृत रूप में
४. श्रवणबेलगोल के शिलालेखो मे (एपीग्राफिया नसीब होता है, वह कन्नर में नही रहेगा, बल्कि वह 'ट' कर्णाटिका, भाग-२ अनुक्रमणी (Index) पृष्ठ १३ प्रकट में बदल जावेगा। इस प्रकार सस्कृत 'मन्मथ' प्राकृत
कि उनमे से जिन लेखो मे गोम्मट नाम का उल्लेख गम्मका कन्नड तय गम्मट' हो जायगा । और उसी हमा सर्व-प्राचीन रूप मन् १११८ के न० ७३ व 'गम्मट' का 'गोम्मट' रूप हो गया है, क्योकि बोलचाल १२५ के शिलालेख है। इनमे मति को गोम्मटदेव लिखा
की कन्नड में 'म' स्वर का उच्चारण धीमे भो' की ध्वनि है और चामुण्डराय 'राय' कहे गये है। इससे भी स्पष्ट
में होता है, जैसे-'मृगु'='मोगुः'; 'सप्पु'-'सोप्पु' इत्यादि । होता है कि मूर्ति का नाम ही गोम्मटदेव कहा जाने
उधर कोंकणी पौर मराठी भाषाम्रो का उद्गम लगा था।
क्रमशः अर्घमामधी भोर महाराष्ट्रो प्राकृत से हुमा प्रकट है ५. श्रवणबेलगोल स्थित बाहुबली का नाम मूर्ति
और यह भी विदित है कि मराठी, कोकणी एवं कन्नड स्थापक की अपेक्षा से यदि गोम्मटेश्वर पड़ा होता तो भाषामों का शब्द-विनिमय पहले होता रहा है। क्योंकि अन्यत्र विभिन्न स्थानों पर स्थापित बाहुबलि की प्रतिमापों इन भाषा-भाषी देश के लोगो का पारस्परिक विशेष का नाम अन्य स्थापकों (निर्मापकों) की अपेक्षा से भिन्न- सम्बन्ध था । पब कोंकणी भाषा का एक शब्द 'गोमटो' या भिन्न क्यों नही पड़ा? वास्तविकता तो यह है कि श्रवण- या 'गोम्मटो' मिलता है और यह संस्कृत के 'मम्मच' शब्द बेस्गोल के बाहबलि की स्थापना के पूर्व भी बाहुबलि का का ही रूपान्तर है। यह ययपि सुन्दर पर्थ मे व्यवहृत है। गोम्मट प्रर्य में उल्लेख हुमा है जिसका मागे प्रसंगानुसार कोंकणी भाषा का यह शब्द मराठी भाषा मे पहुंच कर वर्णन है।
कन्नर भाषा में प्रवेश कर गया हो-कोई पाश्चर्य नहीं। उपर्युक्त तथ्यों से यह स्पष्ट हो जाता है कि बाहुबलि
(शेष पृष्ठ ४२ पर)