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________________ बाहुबलि की प्रतिमा गोम्मटेश्वर क्यों कही जाती हैं ? । ___D डा. प्रेमचन्द जैन, जयपुर चामुण्डराय ने मसूर के श्रवणबेल्गोल नामक पाम के फीट ऊंची है। मैमूर राज्य के अन्वेषण विभाग ने हाल सन्निकट छोटी-सी पहाड़ी पर एक विशाल प्राकृति मौर ही में इसका अन्वेषण किया है। एक कारकल में सन् अत्यन्त मनोहर मूर्ति निर्माण कराई थी। यह बाहुबलि जी १४३२ मे १४३ फीट ऊँची और दूसरी बेगूर में सन् की मूर्ति है और गोम्मटेश्वर कहलाती है। १६०४ ईस्वी मे ३५ फीट ऊँची मूर्तियां स्थापित हुई और श्रवण-बेल्गोल के शिलालेख नं० २३४ (८५) मे भवण वे भी गोम्मट' 'गोमट' 'गोमट्ट' 'गुम्मट' पषवा गोम्मटेश्वर बेस्गोल को बाहुबलि प्रतिमा पर प्रतिष्ठा सम्बन्धी एक ___ कहलाती है। प्रतः इस लेख में यह निष्कर्ष निकालने का कहानी दी गई है, जो बहु प्रचलित हो चुकी है। इसके प्रयास है कि ये मूर्तियां गोम्मट क्यों कही जाती है? वर्णनानुसार गोम्मट, पुरुदेव अपरनाम ऋषभदेव (प्रथम कुछ विद्वानों का मत है कि इस मूर्ति के निर्मापक का तीर्थकर) के पुत्र थे। इनका नाम बाहुबलि या भूजबलि पपरनाम 'गोम्मट' या गोम्मट राय था। क्योंकि 'गोम्मटथा। ये भारत के लघु भ्राता थे। इन्होंने भरत को युद्ध सार' नामक ग्रन्थ मे उन का उल्लेख इसी नाम से हमा है, परास्त कर दिया, किन्तु संसार से विरक्त हो राज्य गरत पत: उनके द्वारा स्थापित मनि 'गोम्मटेश्वर' अर्थात् के लिए ही छोड़ उन्होंने जिन-दीक्षा धारण कर ली। (गोम्मटस्य)+ईश्वर: कहलाना उपयुक्त है। साथ ही वे भरत ने पोदनपुर के समीप ५२५ धनुष प्रमाण बाहुबलि यह भी कहते हैं कि जब श्रवणबेलगोल स्थित बाहुबलि की की मूर्ति प्रतिष्ठित कराई। कुछ काल बीतने पर मूति के मति उपर्युक्त कारण से गोम्मटेष्वर के नाम से प्रसिब हो भासपास की भूमि कुक्कुट सर्पो से व्याप्त भौर बीहड़ वन गई इसके पश्चात् में ही अन्यत्र भी तत्साम्य से बाहुबलि से भाच्छादित होकर दुर्गम्य हो गई। की मूर्तियां 'गोम्मट' 'गोमट' गोमट्ट' गोम्मटेश्वर पादि । राचमल्ल नप के मन्त्री पामहरायको बाहुबली के कही जाने लगीं। किन्तु निम्नलिखित कारणों से यह मत दर्शन की अभिलाषा हुई, पर यात्राके हेतु अब वे तैयार हुए । तब उनके गुरु ने उनसे कहा कि वह स्थान बहादुर मोर (१) चामुण्डराय के खास प्राश्रय मे रहे हए कवि रत्न पगम्य है । इस पर चामुण्डराय ने स्वयं वैसा ही मति की नम की ने अपने 'जितपुराण' में उनका उल्लेख इस नाम से कहीं प्रतिष्ठा कराने का विचार किया और उन्होंने उसकी पर भी मही किया है। जितपुगण का समय ६३.है प्रतिष्ठा करायी जो गोम्मटेश्वर के नाम से प्रसिबर्ग। पत: इस दशा में यह मानना उचित ही है कि सन १३ इसके पूर्व भी भोर पश्चात् भी दक्षिण में गोम्मटेश्वर की ई. तक चामुण्डराय का 'गोम्पट' अथवा 'गोम्मटेश्वर' पौर विशालकाय मतियां निर्माण हई। चालुक्यों के समय ऐसा कोई नाम नहीं था। मे ई. सन् ६५० मे निमित योम्मट की एक मूर्ति (२)कवि दोड्य ने अपने संस्कृत प्रग्य 'भुजवलि शतक' बीजापुर के बादामी में है। मैसूर के समीप ही गोम्मटगिरि सन (१५५०) में लिखा है कि श्रवणबेलगोल की छोटी में १४ फीट ऊंची एक मोम्मट मूति है जो १४वी सदी मे पहाड़ी चन्द्रगिरि पर खड़े होकर चामुणराय ने बड़ी निमित है, इसके समीप ही कम्बादी (कृष्णराजसागर) पहाडी इन्द्रागिरि पर तीर मारा था जिससे इस बिन्ध्यके उस पार १२ मील दूरी पर स्विटसर होसकोटे गिरि पर पोदनपुर के गोम्मट प्रकट हो गये थे। मोर इखल्ली मेगाकालीन एक 'गोम्मट' मति है जो १८ सनकी पूजा के लिए चामडारायने कई ग्राम भेंट किये थे।
SR No.538033
Book TitleAnekant 1980 Book 33 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulprasad Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1980
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size14 MB
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