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________________ -१८ वर्ष ३३, हिरण ४ अनेका अनमोल ग्रंथ रत्नों का दर्शन कर पुनीत हो जाते हैं। अनेक प्रतियों का समुद्धार, पुनर्लेखन, संशोधन, संग्रह, प्रकाशन आदि कार्य प० पू० भट्टारकजी के नेतृत्व में संपन्न हो रहा है। देश-विदेश के जैन-जनेतर विद्वानों के लिए तो यह संग्रहालय मानों ज्ञान का प्रजस्र स्रोत है और है सरस्वती का वरद बोर पुनीत प्रक्षुण्ण भंडार । मूवी की अन्य संस्थाएँ और सामाजिक स्थिति : अब तक ऐतिहासिक मूडबिद्री का अवलोकन हुमा । We wiधुनिक मूडबिद्री का अवलोकन करेंगे । मूडबिद्री मे तीन हायस्कूल है - १) जैन हायस्कूल, २) बाबू राजेन्द्र प्रसाद हायस्कूल, ३) कान्वेन्ट गर्ल्स हायस्कूल जैन हायस्कूल रजत जयति मना कर भव जैन ज्यूनियर कालेज के रूप में परिवर्तित हो गया है । सन् १६६५ मे 'समाज मंदिर सभा' नामक सांस्कृतिक संस्था द्वारा यहाँ पर "महावीर पाटस, सायन्स एण्ड कमर्स कालेज" खोला गया है । सन् १९७९ में दक्षिण क्रशर जिला जैन समाज के सत्प्रयत्न से "श्री घवला कालेज" मूडबिद्री में प्रारंभ हुआ है। कैवल्य मिला, देवता मिल पूजने आए। नर नारियों ने खूब ही आनन्द मनाए ॥ चको भी अन्तरंग में फूले न समाए । भाई की आत्म-जय पे अश्रु आँख में आए | है वंदनोय, जिसने गुलामी समाप्त की । मिलनी जो चाहिए, वही आजादी प्राप्त की ॥ X X X X उन गोम्मटेश प्रभु के सौम्य रूप की झांकी । वर्षों हुए कि विज्ञ शिल्पकार ने आंकी ॥ कितनी है कलापूर्ण, विशद, पुण्य की झांकी। दिल सोचने लगता है, चूमू हाथ या टांकी ? है श्रवणबेलगोल मे वह आज भी सुस्थित । जिसको विदेशी देख के होते हैं चकितचित ॥ 'भरतेश वैभव' 'रस्माकर शतक' प्रादि श्रेष्ट कृतियों के रचयिता महाकवि रत्नाकर वर्णी की जन्मभूमि भी यही मूडबिग्री है। इसी कवि के नाम से मूडबिद्री का एक भाग 'रश्नाकर वर्णी नगर' के रूप में नामकरण पाकर सुधोमित है । मूडबिद्री की जनसंख्या लगभग १०-१२ हजार है। लोगों की प्रार्थिक स्थिति सामान्य है। जैन भाइयों के लगभग ६० घर हैं । जैनों की प्रार्थिक स्थिति ( २-४ घर को छोड़ कर ) सामान्य है। प्रायः सब लोगों का जीवनधार कृषि पर ही निर्भर है। नारियल, सुपारी, धान, काजू, प्रादि ही यहाँ की प्रमुख कृषि या उपज है । परंतु इस समय 'भू सुधारणा कानून' पास होकर लागू होने से सब खेतिहर जंनों के ऊपर और जैन मंदिरों के ऊपर भीषण संकट प्राया है । (१० ३४ का शेषांश गोया ये तपस्या का ही सामर्थ्य दिखायापुजना जो चाहता था वही पूजने आया | फिर क्या था, मन का द्वन्द्व सभी दूर हो गया । अपनी ही दिव्य ज्योति से भरपूर हो गया । 000 कहते हैं उसे विश्व का वे आठवां अचरज । खिल उठता जिसे देख अन्तरग का पंकज ॥ झुकते हैं और लेते है श्रद्धा का चरणरज । ले जाते हैं विदेश उनके अक्स का कागज ॥ वह धन्य, जिसने दर्शनों का लाभ उठाया । बेशक सफल हुई है उसी भक्त की काया || उस मूर्ति से है शान कि शोभा है। हमारी । गौरव है हमें, हम कि हैं उस प्रभु के पुजारी ॥ जिसने कि गुलामी की बला सिर से उतारी । स्वाधीनता के युद्ध की था जो कि चिंगारी ॥ आजादी सिखाती है गोम्मटेश की गाथा | झुकता है अनायास भक्तिभाव से माथा ।। X X X X 'भगवत्' उन्ही-सा शौर्य हो, साहस हो, मुबल हो । जिससे कि मुक्ति-लाभ ले, मर जम्म सफल हो । 000
SR No.538033
Book TitleAnekant 1980 Book 33 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulprasad Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1980
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size14 MB
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