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जैन काशी : मूडबिद्री
- श्री गोकुल प्रसाद जैन, नई दिल्ली मूडविद्रो यह क्षेत्र 'जैन काशी' के नाम से प्रसिद्ध है। बी. (क्षयरोगी का हास्पिटल खोला है। यह स्थान मंगलूर से उत्सर को मोर कार्कल तालूक ई० पूर्व ततोय शताब्दी में श्रुतकेपली भद्रबाहुं के
कन्नड जिले) में प्रवस्थित है। मूडबिद्री जैनों को उत्तर भारत से श्रवणबेलगोला पदार्पण से पूर्व ही मूडबिद्री मगर धामिक दृष्टि से पवित्र है तो प्रम्य लोगों को यहाँ के चारों मोर के प्रदेशों मेजनों का अस्तित्व था। ऐतिहासिक दृष्टि से महत्वपूर्ण स्थान है। इसका पपर यद्यपि कि. २०७वीं शती से पूर्व का ऐतिहासिक पाचार नाम संस्कृत में 'बंशपुर' प्रथवा वेषपूर' भी है। यहां का प्राप्त नहीं होता, फिर भी दक्षिण कन्नड जिले के बहमाग प्राचीन मन्दिर 'गुरुवसदि' (गुरुमन्दिर) या सिद्धांतबसदि' में प्राप्त जनस्व के अवशेषो से यह बात सिद्ध होती है। एक समय उन्नत स्थिति में था। एक समय इस गांव का इतिहास का प्रमाण है कि ई० पूर्व चौथी शताजी में तथा इस मन्दिर का अधिकांश भाग जैनों के प्रभाव से श्रुतकेवली श्री भद्रबाहुजी ने मौर्य सम्राट पनगुप्त एवं पौर भन्य बाधामो से बरण्यमय होकर पेड़ों पर बसों १२००० शिष्यों के साथ दक्षिण मे भाकर श्रवणबेलगोला (वंशवक्ष) से व्याप्त हो गया था। इन्ही बातों के कारण में निवास किया। उनके इन शिष्यों मे छ ने तमिल, इसका नाम 'बिदिरे' या 'वेणपुर' पड़ा। कन्नड भाषा में तेलुगु कर्नाटक एवं तौलव देशों में जाकर धर्म का प्रचार बांस को बिदिह' कहते है। इस विदिर' शब्द से ही पोर यत्र तत्र निवास किया तब से मूहविद्रो में भी जैन बिदिरे' बना है। विद्र' या 'विद्रो' इसका अपभ्रंश है। लोगों ने पाकर वाणिज्य-व्यवसाय करते हए अनेक जैन चुकि यह स्थान मूलकि, मगलूर मादि समीपस्थ बन्दरगाह मन्दिर बनवाये, ये द्वीपांतर में व्यापार करते पिल या व्यापार स्थलों से 'मर' (पूर्व) दिशा मे स्थित है। पनार्जन कर प्रसिद्ध थे। प्रतः 'मुडविदिरे' 'मबिडी' माम से पुकारा जाने लगा। परन्तु कालदोष से धन-जन-संपन्न इस मूडबिद्री में भी
परन्त कालदोष से धन-जन-संपन्न जो भाजतक प्रसिद्ध व मान्य बन गया है। इसके पलावा जैनों का प्रभाव हो गया भोर यहाँ का जिममन्दिर चारों यहाँ भनेक जन प्रतिक (साधु, गुरु, श्रमण) रहने के कारण, मोर पेड़ों और वशवक्षों से घिर गया। लगभग ७वीं इसे शिला शासन में 'व्रतपुर' भी कहा गया है। शताब्दी मे श्रवणबेलगोला मे इधर पाये हुए एक मुनि.
यपि मूडवित्री 'तुलुनाई (यहां तुल बोली बोलो महाराज ने एक जगह अन्योन्य स्नेह से खेलते हर एक जाती है, अत: इस प्रदेश को 'तुलुनाह' कहते हैं, बाष
वाष भोर गाय को देखा। इस पूर्व दृश्य को देखकर नाह-प्रदेश) या दक्षिण कन्नर जिले का एक छोटा-सा मुनि जान यह निश्चय किया कि इस स्पान मकुछ-न-कुछ नगर है तथापि चारों बोर के प्राकृतिक दृश्यों से यह पातशय म
र अतिशय अवश्य है। जब घिरे हुए पेड़ो को कटवाया तब मतीव सुन्दर है। यहां बेशुमार फल-मरित हरे-भरे खेत श्री भगवान पाश्र्वनाथ प्रभु को विशालकाय, भतीव सुन्दर हैं, बाग-बगीचे है। यत्र तत्र तालाब। यहां पर बमनोश मूर्ति दृष्टिगोचर हुई। पाषाणमयी यह मति नारियल, सुपारी, काज, पान, कालीमिर्च प्रादि विशेष रूप हजारों वर्ष प्राचीन है। उस मूर्ति की प्रतिष्ठा करायो से पैदा होता है। यहां का राज महल, जनमंदिर शिल्प गयी। कला की दृष्टि से विशेषाकर्षक है । इस क्षेत्र की बमवायु मूविद्रो की प्रसिद्धि यहाँ ‘गुरुवसदि' या सियाप्त समोनोग्ण है इसी कारण यहां पर सरकार ने भी टी. मन्दिर' में सुरक्षित मूमागम व परमागम पबलादि अपर