________________
इतने में एक बाधा नई सामने आई। 'रे, दूत ! अहंकार में खुद को न जुबा तू। दम-भर के लिए सबको मुसीबत-सी दिखाई॥ स्वामो की विभव देख कर मत गर्व में आ तू॥
वाणी को और बुद्धि को कुछ होश में ला तू। जाने न लगा चक्र नगर-द्वार के भातर। इन्सान के जामे को न हैवान बना तू।। सब कोई खडे रह गए जैसे कि हों पत्थर ।।
सेवक की नही जैसी कि स्वामी की जिन्दगी । सब रुक गई सवारियां, रास्ते को घेर कर । क्या चीज है दुनिया में गुलामी की जिन्दगी॥ गोया थमा हो मत्र को ताकत से समुन्दर ।। चक्रोश लगे सोचने-'ये माजरा क्या है ? है किसकी शरारत कि जो ये विघ्न हआ है ?' स्वामी के इशारे पै जिसे नाचना पड़ता।
ताज्जुब है कि वह शख्स भी, है कैसे अकड़ता? क्यो कर नहीं जाता है चक्र अपने देश को? मुर्दा हुई-सी रूह में है जोश न दृढ़ता। है टाल रहा किसलिये अपने प्रवेश को? ठोकर भी खा के स्वामी के पैरों को पकड़ता। आनन्द मे क्यो घोल रहा है कलेश को ? वह आ के अहंकार की आवाज में बोले । मिटना रहा है, शेष कहाँ के नरेश को ? अचरज की बात है कि लाश पुतलियां खोले ।' वाकी बचा है कौन-सा इन छहों खण्ड में ? जो डूब रहा आज तक अपने घमण्ड में ।।
सुनकर ये, राजदूत का चेहरा बिगड़ गया। जब मंत्रियों ने फिक्र मे चक्रोश को पाया। चुपचाप खड़ा रह गया, लज्जा से गड़ गया । माथा झका के सामने आ भेद बताया ।।
दिल से गरूर मिट गया, परों में पड़ गया। 'बाहुबली का गढ नही अधिकार मे आया।
हैवानियत का डेरा ही गोया उखड़ गया। है उसने नही आके अभी शोश झकाया ।।
पर, बाहूबली राजा का कहना रहा जारी। जबतक न वे आधीनता स्वीकार करेंगे।
वह यों, जवाब देने की उनकी ही थी बारी॥ तवतक प्रवेश देश में हम कर न सकेंगे।
बोले कि-'चक्रवति से कह देना ये जाकर । क्षण-भर तो रहे मोन, फिर ये वन उचरा।- बाइबलो न अपना झकाएँगे कभी सर॥ 'भेजो अभी आदेश उन्हे दूत के द्वारा' ॥ भी तो लाल उनका हो जिनके तम पिसर । आदेश पा भरतेश का तव भृत्य सिधारा। दोनों को दिए थे उन्होंने राज्य बराबर।। लेकर के चक्रवर्ती की आज्ञा का कुठारा ।। सन्तोष नही तुमको ये अफसोस है मुझको । वाचाल था, विद्वान, चतुर था, प्रचण्ड था।
देखो जरा से राज्य पै, क्या तो है मुझको। • चक्री के दूत होने का उसको घमण्ड था ।
बोला कि-'चक्रवति को जा शीश झुकाओ। अब मेरे राज्य पर भी है क्यों दांत तुम्हारा ? या रखते हो कुछ दम तो फिर मैदान में आओ। क्यों अपने बड़प्पन का चलाते हो कुठारा? मैं कह रहा हूँ उसको शीघ्र ध्यान में लाआ। मैं तुच्छ-सा राजा हूँ, अनुज हूँ मैं तुम्हारा। स्वामी का शरण जाओ, या वीरत्व दिखाओ।।' दिखलाइयेगा मुझको न वैभव का नजारा॥ सुनते रहे बाहुबली गभीर हो वानी। नारी की तरह होती है राजा की सल्तनत । फिर कहने लगे दूत से वे आत्म-कहानी ॥ यों, बन्धु की गृहणी पं न बद कीजिए नीयत ॥