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बाहुबली बोले
7 श्री लक्ष्मीचन्द्र 'सरोज', एम० ए० आदिनाथ का तनय बाहुबलि तुम सबको प्रेरित करता हूँ। यत्न करो, नीचे से ऊपर उठो नित्य यह कहता हूँ। सदियो से यद्यपि मौन खड़ा, देखा करता नित नील गगन । तथापि मेरे मानस पर शत अंकित जीवन के परिवर्तन ।। अगणित वर्षो से छत्र किये मेरे ऊपर नभ के बादल । श्रम-यूक्त हआ विहगों का दल मंडराता होकर कुछ चञ्चल।। रवि-शशि निशि-दिन प्रतिवेला, उपहार मुझ देते आला। पद-पूजा नित करती आकर, मन्ध्या-ऊपा रूपी बाला ।। सत्य अमावास्या में पाता, निम्तब्ध सरोवर शान्त हआ। देखा करता ज्योत्स्ना में, भूतल चांदी का कान्त हुआ ।। मेरी मुख मुद्रा पर अकित, शत मत्य त्याग क भाव सबल । मेरे चिर परिचित है जितने, उनके श्रद्धामय भाव प्रबल ।। मैने महलो की माया मे, मुख-दुख के देखे वातायन । जहाँ दिखा था गायन-नर्तन, मना वहाँ पर क्रन्दन-रोदन ।। मैंने देखे अपनी ऑखा व राजाओ के सेनानी। जो नगरो के रत्न लूटते, जिनके हमले थे तूफानी ।। देखी राज्यों में उलट-पुलट, सम्राटो को मिटते देखा। मानव के जीवन को मैने, दुख-भोगी में लूटते देखा ।। पर मै युग-युग से मौन खड़ा, हूँ आत्मध्यान मे सतत मगन । इससे ही मुझको प्राप्त हुआ अनन्त सुख वह जीवन दर्शन ।। मानव तू मुझसे पूछ नहीं किसने मरा निर्माण किया ? मैं कहता बिषयों में फंस कर तने जीवन निष्प्राण जिया। सीध मानव हो सावधान तू जड़ शरीर से ऊँचा । उतनी ऊंची तेरी आत्मा धरती से जितना नभ ऊँचा ।। यदि सचमुच ही यत्न करे तो नर से बन जावे नारायण । लग जावे आत्म साधना में हो सफल मन्त्र का पारायण । आदिनाथ का तनय बाहुबलि उद्धार तुम्हारा करता हूँ। यत्न करो नीचे से ऊपर उठो नित्य यह कहता हूँ।
२२, बजाजखाना, जावरा (रतलाम) म०प्र०