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________________ प्रतिमा की पृष्ठभूमि ॥ श्री लक्ष्मीचन्द्र सरोज, एम० ए० प्रतिमा की सहलाम्बी : हो। बाहवली का जीवन और चरित्र यथानाम नयोगुण; जिस पावन प्रतिमा ने एक सहस्र बसन्त, एक सहस्र का केन्द्रबिन्दु है। हेमन्त, एक सहस्र प्रीष्म, एक सहस्र शरद और एक सहस्र बाहुबली की प्रतिमा के विषय में सुप्रसिद्ध मूर्तिकार शिशिर काल देखे तथा मध्यग मे महस्र जीवन-मंघर्ष मूलचन्द्र रामचन्द्र नाठा ने अभिमत दिया-एक सहस्र उत्थान पतन, सुख-दुख मूलक परिसर-परिवेश देखे, उस वर्ष से भी अधिक प्राचीन प्रतिमायें सहस्रों को संख्या मे पुनीत प्रतिमा को प्राचार्य ने भीचन्द्र सिद्धान्त चक्रवर्ती के प्राजाल उपलब्ध है जिनके दर्शन पोर पूजन करने के सान्निध्य मे सेनापति पौर अमात्य चामुण्डराय ने सन् लिए हम तीर्थ क्षेत्रो पर जाते हैं परन्तु उनमे वह सौन्दर्य, १८१ मे स्थापित किया था और इस पावन प्रतिमा का वह कला नहीं है, जो श्रवणबेलगोला के बाहुबली की सहस्राब्दी महोत्सव २२ फरवरी ८१ को अन्तर्राष्ट्रीय प्रतिमा में है। शिल्पकला की दृष्टि में यह प्रतिमा स्तर पर मनाया जा रहा है। मद्वितीय और अप्रतिम प्रतिद्वन्दी पौर प्रजातशत्र है। संघर्ष-प्राक्रमण-विग्रह, संस्कृति-जन्म-जीवन-मरण प्रतिमा की रूपरेखा : देखते और लेखते हुए महामानव भगवान बाहबली को मंसूर संस्थान के चीफ कमिश्नर मि० बोरिंग ने स्वयं जीवन्त प्रतिमा अदम्य उत्साहपूर्वक पाज भी गौरव से माप कर प्रतिमा की ऊँचाई ५७ फीट बतलाई। प्रतिमा मस्तक उन्नत किए खडी है, अपनी ऐतिहासिकता और के अवयवों का सक्षिप्त विवरण सप्रमाण निम्नलिखित :पावनता तप पोर त्याग, वीतरागता पोर विराटता की प्रमाण प्रतीक बनी है। चरण से कर्ण के अधोभाग तक कर्ण के प्रधोभाग से मस्तक तक जिस प्रकार बाहबली की प्रतिमा वस्तु कला मे चरण की लम्बाई पप्रतिम है उसी प्रकार बाहुबली अपने मानवीय जीवन में चरण के प्रयभाग की चौड़ाई भी प्रतिम थे। उनका बल, उनका भोग, उनका ध्यान, चरण का अंगठा उनका योग उनकी स्वतन्त्रता, उनका स्वाभिमान, उनका पाद पृष्ठ के ऊपर को गोलाई केवल ज्ञान, उनका मोक्ष-प्रस्थान उनका सारा जीवन हा जाप को आरी प्राधी गोलाई एक अप्रतिम था। वे जैसे पहले कामदेव थे वैसे सर्वप्रथम नितम्ब से कान तक मोक्षगामी भी थे। विस्मय की बात तो यह है कि तीर्थंकर रोहको मस्थि अधोभाग से कणं तक नही होकर भी वे तीर्थकर से पहले मोक्ष गये। वे अपने नाभि के नीचे उदर की चौडाई पिता श्री ऋषमदेव या महाप्रभु प्रादिनाथ, जो इस युग कटि भोर टेहुनी से कान तक के सर्वप्रथम तीर्थकर थे, उनसे भी पहले मोक्ष चले गए। बहुमूल से कान तक बाहुबलि मे क्या गुण थे? प्रस्तुत प्रश्न के उत्तर मे तर्जनी उंगली को लम्बाई मध्यमा उँगली को लम्बाई यह प्रश्न पूछना ही समुचित समाधान कारक होगा कि अनामिका की लम्बाई बाहुबली में क्या-क्या गुण नही थे ? पर्यात् वे सभी कनिष्ठका की लम्बाई पुरुषोचित सदगुणों से सम्पन्न व्यक्ति थे। उनके विषय में तो यह भी जनश्रुति है कि प्रवज्या के उपरान्त पोर मूति की कुल ऊंचाई मोम के प्रस्थान तक उन्होंने एक प्रास पाहार भी ग्रहण गोमटेश्वर द्वार की बायी पोर जो शिला लेख है, नहीं किया। उनकी अद्वितीय क्षमता को देख कर लगता वह सन् १०६० का है, उसमें कन्नड़काव प० वोप्पण ने है कि जैसे उनमे सभी मानवों का साहस पुंजीभूत हो गया मूर्ति की महिमा का प्रतिपादक एक काव्य लिखा है, Gwal !! | - am- I -
SR No.538033
Book TitleAnekant 1980 Book 33 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulprasad Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1980
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size14 MB
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