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________________ सम्पादकीय सतत् वन्दनीय भगवान् बाहुबली प्रथम तीर्थधर भादिषुरुष पुरुदेव भगवान ऋषम के सुपुत्र, माता सुनाया के लाडले, भरतक्षेत्र के प्रथम चक्रवर्ती सम्राट भरतेश्वर के पनुज, महासनीय बासी और सुन्दरी के प्रिय माता, वर्तमान भवसविणी के प्रथम कामदेव और प्रथम मोक्षगामी महापुरुष, महाबली बाहबलि अपरनाम भजाल एवं दौबंलि को अपने अप्रतिम रूप, बल, स्वाधीनता प्रेम, स्वाभिमान उच्चतत्व, उदारता, वैराग्य पोर दुदर तपश्चरण तथा सतत् प्रेरक व्यक्तित्व के लिए न पुराण पुरुषों में पद्वितीय एवं अविस्मरणीय स्थान प्राप्त है। जैनेश्वरी दीक्षा लेने के पूर्व मानवोत्तम महाराज ऋषम ने अपना विशाल राज्य अपने सौ पुत्रों में विभाजित कर दिया था। ज्येष्ठपुत्र भरत को प्रधान राजधानी एवं ऋषम तथा ऋषमपुत्रों की जन्मभूमि महानगरी अयोध्या का राज्य मिला। बाहुबलि को पोत्तनपुर का, मतान्तर से तक्षशिला का राज्य मिला। एकमत से श्रावकधर्मप्रवर्तक राजकुमार श्रेस और उनके प्रपन गजपुर (हस्तिनापुर) के मधीश्वर सोमयश बाहुबलि के ही पुत्र थे । महाराजा भरत को प्रायुषशाला में बकरन प्रकट हुमा तो वह अपना पक्रवतित्व सिद्ध करने के लिए दिग्विजय के लिए निकले । तत्कालीन प्राय: सभी नरेशों ने धर्मः धनः उनकी प्रवीनता स्वीकार कर ली। उनके स्वयं के भाइयों ने भी विरोध तो नही किया किन्तु अपने-अपन राज्य का परित्याग करके मनि दीक्षा ले ली। स्वतन्त्रचेता एवं स्वाभिमान-मूति महाबाहु बाहुबली ने चक्रवर्ती की चुनौती स्वीकार करली पोर युद्ध के लिए सन्न हो गये। दोनों की सेनाएँ रणक्षेत्र में सामने सामने प्रा डटी, किन्तु दोनों ही मादिदेव के सुपुत्र थे, चरम शरीरी पोर महिसा की संतति बोहोत मनस्वीही। उन्होंने प्रस्ताव किया कि विवाद उन दोनों के बीच है, सैनिकों को उसके तु हताहत कराना बायोमतएव दोनो के बलाबल का निर्णय दोनों के पारस्परिक द्वना से किया जाय । परिणामस्वरूप, इन दोनों महावीरों का दृष्टियुठ, मुष्टियुद्ध (या मल्लयुड) एवं जलमुख दोनों सेनामों के बीच खुले मैदान में हमारा देव-दानवो मे ईष्र्या उत्पन्न करने वाले युग के इस प्रथम भीषण राममीतिक को दोनों भोर के कोटि-कोटि सैनिकों एवं अपार जनसमूह ने प्राश्चर्याभिभूत होकर देखा। वह राजनीति में हिंसा के प्रयोग का सर्वप्रथम उदाहरण है और प्राचीन भारत में कालान्तर में होने वाले पदों के लिए पादर्श बना। रामायण और महाभारत का भी ध्यान से प्रध्ययन किया नाय तो यही प्रकट होता है कि अधिकामत: उक्त मुद्धों में दोनों पोर प्रमख नेतामों के बीच लड़े गये द्वन्द्वयुद्ध ही बिजय-पराजय के निर्णायक होते थे। भरत-बाहुबलि द्वन्द में बाहुबली विजयी रहे, भोर पराजित भरत ने विवेक भूल कर उन पर बकरन बना दिया। किन्तु यह देवी सुदर्शनचक भी गोत्रपात नहीं करता, मत: बाइबलि को कोई भी क्षति पहुंचाये बिना उनकी प्रदक्षिणा करके वापस भर के हस्तगतहमा । घर तो मरत अपने विवेक. पूर्ण कृत्य की ग्लानि से मूछित प्राय हो रहे थे, और उबर बारबखि राम्यबभबबादि के लिए मानव की असीम लिप्सा तथा ससार-देह-मोगों को निस्सारता की पनुभूति करके संसार से विरक्त हो गये।
SR No.538033
Book TitleAnekant 1980 Book 33 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulprasad Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1980
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size14 MB
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