________________
पाटण के.श्वेताम्बर ज्ञान भण्डारों में दिगम्बर ग्रन्थों को
प्राचीनतम ताडपत्रीय प्रतियां
श्री अगरचन्द नाहटा, बीकानेर यद्यपि भारत के कोने-कोने मे जैन निवास करते हैं हो चुके हैं। जिनसे स्पष्ट है कि दिगम्बर शास्त्र भण्डारों पौर साधू-साध्वी भी धर्म प्रचार प्रादि के निमित्त से अनेक में कई ऐसे श्वेताम्बर ग्रन्थ हैं, जिनकी प्रति श्वेताम्बर स्थानों में पहुंचते हैं। पर उनका ध्यान जैन मन्दिरों को शास्त्र-भण्डारों में नहीं मिलती। इसी तरह श्वेताम्बरपोर जितना जाता है. हस्तलिखित ग्रन्थभण्डारों की पोर भण्डारों में भी कई ऐसे दिगम्बर प्रस्थ एवं उनकी पानी प्रायः नही चाता, जबकि दोनों का समान महत्व है। प्रतियाँ हैं जिनको जानकारी दिगम्बर विद्वानों को भी नही मूर्तियां जितनी उपयोगी हैं जिन वाणी के संग्रह या भण्डार है। कुछ वर्ष पहले पूज्य पुण्यविजयजी को सुप्रसिद्ध दिगम्बर
स्तलिखित प्रतियां भी उतनी ही उपयोगी हैं। प्राचार्य अमृतचन्द्र के एक प्रज्ञात एवं महत्वपूर्ण अन्य
वहत-से ज्ञान-भण्डारों की प्रभी सूची भी नहीं बन पायी की एकमात्र प्रति अहमदाबाद के श्वेताम्बर भण्डार में तथा कई तो सर्वथा प्रज्ञात अवस्था में पड़े हैं। मुसलमानी मिली थी, जिसे प्रब प्रकाशित भी किया जा चका है। शासन और सरक्षण के प्रति हमारी उपेक्षा के कारण इससे पहले भी और कई दिगम्बर ग्रन्थ श्वेताम्बर भण्डारों अनेकों महत्वपूर्ण प्रश्य नष्ट व लुप्त हो चुके हैं। जिनका में ही मिले। लिनमें कई प्रस्थ तो अलभ्य व लुप्त मान उल्लेख अन्य ग्रन्थों में पाया जाता है। जिन ग्रन्थों लिए गये थे, वे भी मिल गये। को अधिक प्रतिलिपियां नहीं हुयी उनकी प्रतियां अभी-अभी मैं पाटण के श्वेताम्बर ताडपत्रीय अन्ध
सात और बिना सूची वाले ग्रन्थ भण्डारी में मिलनी भण्डार की सूची जो कि बड़ौदा से सन ३६ में प्रकाशित है, संभव है। दक्षिण के अनेक स्थानों मे ताडपत्रीय उस सूची को देख रहा था तो उसमें चार दिगम्बर अम्पों प्रतियो मन्दिरों में व व्यक्तिगत संग्रह मे है। उनमे भी की प्राचीनतम ताडपत्रीय प्रतियां पटण के श्वेताम्बर बहुत से प्रज्ञात एवं महत्वपूर्ण प्रश्य मिलने सम्भव है। भण्डार मे है। उन अन्यों के पुन सम्पादन में वे बहुत प्रत: कोई भी संस्था ऐसी स्थापित हो जिसके भेजे हुए उपयोगी सिद्ध हो सकती है। साथ ही 'प्राध्यात्मतरंगिनी' व्यक्ति जन हस्तलिखित प्रतियो को खोज करें पौर जिन- नामक दिगम्बर ग्रन्थ की टीका जो मेरी जानकारी के शास्त्र भण्डारों की सूची नही बनी है, उनकी बना कर अनुसार दिगम्बर भण्डारों में कहीं भी नहीं मिली है, प्रकाश में लावें।
उसको तारपत्रीय प्रति पाटण के सबवीरगंडे के श्वेताम्बर साह शान्तिप्रसाद जी जैन ने अपने वक्तव्य में कहा था। ज्ञान भण्डार में प्राप्त है ११७ पत्रों की इस प्रति का कुछ कि इसके लिए पैसे की कमी नहीं रहेगी। काम जोरो से प्रश वण्डित लगता है। यह प्रारम्भ के उद्धत इलोकों से होना चाहिये। तो उन्ही की सस्था भारतीय ज्ञानपीठ भी विदित होता है तथा प्रत के श्लोक से भी। अभी तक यह सर्वाधिक साधन सम्पन्न है, उसे इस कार्य की पोर शीघ्र टोका अन्यत्र कही भी ज्ञात नहीं है, इसलिए इसकी जानध्यान देना चाहिये।
कारी दिगम्बर समाज व विद्वानों को इस लेख बारावी दिगम्बर श्वेताम्बर दोनों के अलग-अलग प्रन्यभण्डार, जा रही है। अलग प्रग स्थानों मे हैं पर एक-दूसरे को उनको समुचित मूल माध्यात्मिक तरंगिनी अन्य माणिक-बमप्रथमाला जानकारी नहीं है। कई भण्डारो के सूचीपत्र भी प्रकाशित के प्रन्या. न. १३ मे सवत् १९७५ मे प्रकाशित हो चुका