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२४, बम, कि०३
बनेकान्त
कामता प्रसाद जी ने कम्पिल्य क्षेत्र के संकिशा, प्रगहत अन्ततः सम्मेदाचल से निर्वाण प्राप्त किया। वाराहाछन (अषत), कपित्थक (केषिया), पिप्लग्राम (पिपरगांव), तीर्थकर विमलावाहन के जम्म, लौकिक शासन एवं दिव्यपिटीपरि (पटियाली), कान्यकुब्ज (कन्नौज प्रादि कई ध्वनि की गुजार से कम्पिल्यनगर धन्य हुपा। अन्य मन्य अनुभूतिगम्य स्थलों की भी वर्तमान स्थानों से तीर्थंकरो विशेषकर भगवान पाश्र्वनाथ एवं महावीर के पहिचान की है।
समवसरण भी कम्पिल्य में पाए, पोर पाञ्चाल देश में भाचार्य हेमचन्द्र ने तीर्थकर विमलनाथ के चरित्र
उनका विहार हुमा। के प्रसंग में उनकी गभिणी जननी द्वारा एक प्रमत न्याय
२०वें तीर्थकर मुनिसुव्रतनाथ के तीर्थ मे इमी कम्पिल्य की रोचक कथा दी है, जिसका हेतु गर्भस्थ शिशु की नगर में महाराज सिंहध्वज की धर्मप्राणा महिलारत्न वप्रा विमलबुद्धि बताया है और उसी कारण उनका नाम ,
कार की कुक्षि से मातृभक्त हरिषेण चक्रवर्ती का जन्म हुमा, 'विमल' हपा बताया है। पुराणकारों ने भगवान के जिसने दिग्विजय कर के नगर को पनेक जिनालयो से जन्मोत्सव, बाललीला, विवाह एवं राज्याभिषेक का वर्णन
का वर्णन अलकृन किया।" महाभारत काल मे काम्पिल्य मे करने के उपरान्त बताया है कि चिरकाल पर्यन्त गहस्थ पाञ्चालेश्वर महाराज द्रुपद का राज्य था और यही उनकी सुख एवं राज्य वैभव का उपभोग करके माघ शुक्ला दुहिता महावती द्रोपदी का जन्म एवं प्रसिद्ध स्वयवर हमा चतुर्थी के दिन भगवान ने महाभिनिष्क्रमण किया और था। एक अनुश्रुति के अनुसार मन्तिम चक्रवती ब्रह्मदत्त निकटवर्ती सहेतुक वन मे जिन दीक्षा ली तथा तपश्वरण
तथा तपाचरण की राजधानी भी काम्मिल्य ही थी। ग्यारह कोटि स्वर्ण में लीन हो गये। उसी वन मे उन्होने पौष शक्ला दशमी मद्राप्रो एवं विशाल गोकुल का स्वामी काम्पिल्य का के दिन चार धातिया कर्मों का क्षय करके केवलज्ञान त्मिा श्रेष्ठ कुन्दकोलिय भगवान महावीर के दश प्रमख प्राप्त किया भोर महंत तीर्थकर हो गए।" भगवान की एव प्रादर्श गृहस्थ उपासको मे से एक था।' इस तपोभूमि एवं केवलज्ञान प्राप्ति स्थल की पहचान जैन कथामों मे अन्य अनेक विशिष्ट व्यक्तियों के संकिभाले मषत (अधहत) या अघतिया टोले से की उल्लेख मिलते है, जिनका काम्पिल्य नगरी से सम्बन्ध था। जाती है। इस टोले से १९२७ मे भगवान विमल के काम्पिल्य नगर मे पिण्याकगन्ध नाम का एक सेठ था जो समवसरण की प्रतीक एक प्राचीन सर्वतोभद्र प्रतिमा तथा बत्तीस कोटि द्रव्य का स्वामी था किन्तु अत्यन्त लोभी एव कतिपय पन्य कलाकृतियां प्राप्त हुयो थी, जो राजकीय परिग्रहासक्त था और फलस्वरूप दुर्गति को प्राप्त हुप्रा। संग्रहालय लखननऊ मे सूरक्षित हैं।" चिरकाल पर्यन्त उस समय राजा रत्नप्रभ का यहां शासन था और राज्यलोकहितार्थ धर्मामृत की वर्षा करके भ० विमलनाथ ने श्रेष्ठ जिनदत्त नाम का उदार एवं धर्मात्मा श्रावक था। १८. देखिये-कामताप्रसाद जैन को पूर्वोक्त दोनों पुस्तके। २४ पद्मपुराण २०११८६-१८७, वृहत्कथाकोष कथाक १९.त्रिशष्टि शलाकापुरुष चरित्र के अन्तर्गत विमलनाथ ३३ उत्तरपुराण पृ० २४८, महापुराण भाग २ पृ. चरित्र ।
३६५, हरिवशपुराण ३.३.७,माराधना सत्कथा २०. तिलोयपण्णत्ति, ४१६५६, उत्तरपुराण, महापुराण प्रादि
प्रबध, अराधना कथा कोष मादि।
२५. उत्तरपुराण ७२११६८ पृ० ४२०, त्रिषष्ठिस्मृति२१. ४.६६०, , , .
शास्त्र २२१७०, हरिवंशपुराण ४५३१२०-१२१ पृ० २२. ज्योतिप्रसाद जैन, उत्तर प्रदेश भोर जैनधर्म पृ० ४७
५४६-५४७ तुलनीय महाभारत (१।१२८१७३) (संहिता) कामताप्रसाद जैन, काम्पिल्य कोति ।
२६. पाराधनाकथाप्रबं २०,१० (२८) पृ. ३८, १३५, पृ० २६-३०
पुष्पदन्त महापुराण भाग ३ पृ० १८४ २३. वही पृ. ३० फुटनोट
२७. उवासयदसामो (उपासकदशांग) ६