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________________ पुण्यश्लोक प्रेरणाप्रद व्यक्तित्व डा. रमेशचन्द जैन, बिजनौर पुण्यलोक श्रद्धय गाह शानि प्रसाद जी के दर्शन का एवं विशेष रूप मे कनिष्ठ छत्रों के प्रति जो स्नेह और प्रयम मुप्रवसा वागणपी में प्राच्यविद्या पम्मेलन के पाशीर्वाद की अभिनी , यह मेरे लिए तथा अन्य शुभानसर पर जैन साहित्य सगोष्ठी के शुभ प्रायोजन के छात्रों के लिए अविस्मरणीय है। इतने बड़े व्यक्ति का मध्ध हुमा। इससे पहले माज पौरम.हित्य के क्षेत्र में समाज के छोटे छोटे बच्चों से मिलना तथा इस प्रकार उनके द्वारा की गयी मेवानो की चर्चा अनेक श्रीमानो, आत्मीयता प्रदर्शित करना अन्यत्र दुर्लभ है। धीमानों और ममाजसेवियो के मूह से सुनी थी, किन्तु भारतवर्षीय दि. जैन परिषद के स्वर्ण जयन्ती अधि. माक्षात्कार का सुअनमर प्राप्त नहीं हुआ था। प्रथम दर्शन वेशन पर श्रद्धेय रतनलाल जी बिजनौर के साथ कोटा के समय उनकी सादगी, विनम्रता मोर समाज तथा धर्म. जाने तथा अधिवेशन में भाग लेने का सुअवसर प्राप्त गंव की उत्कट अभिलाषा को देखकर मेरा मन उनके हया । उक्त प्रधिवेशन के प्रमुख नायक स्वर्गीय साहू सा. प्रति द्वा में अभिभूत हो गया। उस दिन के अपने होथे। परिषद के सभी गमागन कार्यकर्तापो का जब परिभगण ग म्हाने पहा था कि माग कुछ वर्षों में भगवान जय दिया गया और मेरे परिवय का जब श्रम प्राया तो के निर्माण की २५००वी पुण्यतिथि भा रही या बीन में ही उठकर धय बार रतनलाल जी ने स्नहा. इस यिपर ममाज को वृहद् प्रायोजन करना चाहिए तथा तिरेक के कारण उपग्थिन जनपमदाय के मध्य मेरा परेवग्यान-स्थान पर बड़े समारोह क साथ उत्सव विटोप परिचा दिया. इमे सनकर साह सा ने अपना किा जाना चाहिए। वह समय एमा था, जब समाज ग्नेह प्रदशित किया और मेरे गोष प्रबन्ध, पचवरित प्रार कविमा व्यक्तियो की दृष्टि भगवान महावीर के उमगे प्रतिपादित भारतीय सम्कृति' के विषय में अनेक ५५००वे निर्वाण दिवम को पार नहीं थी, माहू सा. के जिज्ञामायें की तथा उनका समाधान प्राप्त कर अपना उक्त वक्तव्य के बाद सबसे पहन समाज का ध्यान इस सतोष प्रगट किया एवं उक्त अथ भारतीय ज्ञानपीठ स पर गया और बाद में ममाज ने जिम उत्साह और प्रकाशित कराने के लिए प्रेरित किया। परिषद् के सभा म्फति के माघ २५सौवा भगवान महावीर निर्वाण महोत्सव कार्यक्रमों में उन्होने भाग लिया तथा निरन्तर अपना मार्गमनाया वह किसी भी अन्य समाज के लिए स्मृहा की वस्तु दर्शन देते रहे। हो सकता है। इसके मूल में श्रद्धय माहू सा. की प्रेरणा अपने से बडे व्यक्तियो के प्रति साहू सा. के मन में और धर्मकार्य के प्रति श्रद्धा और तत्परता ही थी। प्रमीम थदा थी। परिषद् ने जब अपने कार्यकर्तामा का एक बार साहू सा. भारतीय ज्ञानपीठ के मंत्री श्री ताम्रपत्र प्रदान कर हादिक स्वागत किया, उस अवसर पर लक्ष्मी चन्द्र जी के साथ स्यावाद महाविद्यालय के भदैनी- ताम्रात्र प्रदान करने का कार्य सर्वप्रथम साहू जी ने घाट स्थित वाराणसी के जैन मदिर के दर्शनार्थ यात हुए मम्पन्न किया। सबसे पहले उन्होने परिषद् के सस्थापक थे। पाकर उन्होने श्रदेय पंडित कैलाशचद जी के विषय मामिद्ध स्वतंत्रता मैनानी बाबू रतनलाल जी के कर. मे पूछा । किसी विद्यार्थी से ज्ञात हुमा कि साह सा पाए कमलो मे ताम्रपत्र भेंट किया, तत्पश्चात् अन्य व्यक्तियों की हए है। यकायक माह सा. के भागमन की बात सुनकर ताम्रपत्र भेंट करने हेतु बाब जनताल जी से निवेदन कानो को विश्वास नही हुमा । तत्काल ही उनके दर्शनार्थ किया । बाब जी ने उनके निवेदन को पार किया, गया। अन्य विद्यार्थी के साथ उनमे बातचीत करने का तत्पश्चात् सारे ताम्रपत्र बाबू रतनलाल जी क करकमलो मुअवसर प्राप्त हुप्रा । अनौपचारिक रूप से पूज्य माहू जी द्वारा ही परिषद के अन्य कार्यकर्नाप्रो को भंट किए यए । ने प्रत्येक छात्र का जिम प्रकार परिषर प्राप्त किया तथा साहित्य और सस्कृति ममन्नय हेतु महू जी सनन छात्रों की समस्यानो के निराकरण हेतु अनेक सुझाव दिए प्रयत्नशील रहे। भारतीय ज्ञानपीठ, स्याद्वाद महाविद्यालय,
SR No.538031
Book TitleAnekant 1978 Book 31 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulprasad Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1978
Total Pages223
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size12 MB
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