SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 126
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सस्तीपुपारी सामाजिक क्षेत्र में बहप्रशंसित कार्य प्रगतिमान हैं। वैशाली सरलता थी कि अपरिचित व्यक्ति भी प्रथम मिलन में ही प्राकृत जैन धर्म एवं पहिसा शोध संस्थान भी मापके प्रचुर मुग्ध हुये बिना न रहते थे। अनुदान से अभिभूत हुये हैं। माज के कतिपय विद्वानों के कारण समाज में जो साहजी ऊर्जस्वी विचारवान् व्यक्ति थे। उनकी विघटन चल रहा है, उससे वे अत्यंत व्यथित थे। अन्तिम भारतीय संस्कृति में भी अद्वितीय अभिरुचि थी। जैन धर्म समय तक खाई को पाटने में लगे रहे। नैनवा काण्ड ने तो के उपासक होने के नाते जैन तीर्थों के प्रति उनकी अगाध उनके मन-मस्तिष्क को झिंझोड़ कर रख दिया। जिनवाणी भक्ति थी। उस मौघड़ दानी ने नवीन मंदिरो का निर्माण का अपमान एक जैन और वह भी पंडित सज्ञाधारी व्यक्ति न कराकर, भारत के अधिकांश तीर्थों का जीर्णोद्धार कर के द्वारा हो तो वह और भी अधिक शोचनीय हो जाता उन दानियों के समक्ष प्रादर्श उपस्थित किया, जो यश- है। यह ऐसी घटना थी, जिसने जैन जगत् में क्षोभ उत्पन्न प्राप्ति हेतु यथेष्ट पात्रता पर ध्यान नहीं देते। बहुमुखी कर हलचल मचा दी। उन्हें भी पसह्य होना स्वाभाविक प्रतिभा के धनी साहजी ने जो भी कदम उठाया, सोच ही था। भाव विह्वल हो उन्होने प्रश्रुपूर्ण नयनो से कडे समझकर विवेकपूर्वक उठाया। इसीलिये सभी कार्य ठोस शब्दो मे भत्र्सना की थी। मां जिनवाणी का विसर्जन, हथे, सतही नही। उनकी कार्यक्षमता एवं सूझबूझ मठी दहन करने जैसे घृणित कुकर्म सुनकर किस धर्मप्रेमी थी। कल्याणेच्छुक का हृदय न रो पड़ेगा? जिनवाणी का प्रनाभगवान महावीर के पच्चीससौवें निर्वाण महोत्सव के दर पंच परमेष्ठी का, किंवा स्वयं प्रात्मप्रभु का ही अनादर कार्यक्रमों को गफल बनाने के लिये प्रापने भारत भर की कई बार यात्रा कर समाज में जागरण का मंत्र फूंक इस समय उनकी नितान्त प्रावश्यकता थी। उनकी अनोखी चेतना जगाई। प्रापके व्यक्तित्व से प्रभावित हो उपस्थिति कदाचित् समाज को एक सूत्र में बांधने में समर्थ जैन समाज के चारो सम्प्रदायों की पोर में गठित भगवान हो सकती थी। उनसे समाज को बहुत बहुत पाशाएं थी, महावीर पच्चीससौवा निर्वाण महोत्सव समिति ने प्रापको पर क्रूर काल की गति अवरुद्ध करने की क्षमता किसमें कार्याध्यक्ष मनोनीत किया। प्रापका सर्वोत्तम गुण यह था है ? उसने प्रत्यंत निर्ममता से असमय में ही समाज का कि पाप वृद्धो जैसा अनुभवपूर्ण गाम्भीर्य था तो तरुणों कल्पवृक्ष, चिन्तामणिरत्न-सा पुरुष-पारस हमसे छीन जैसा कार्य करने मे अदम्य उत्साह भी था । परिणामस्वरूप लिया। उन्होने अध्यक्ष पद की गरिमा महिमा का मूल्यांकन कर वे अपने जीवन में ही यशस्वी हुये। देश के कोने-कोने अपने उत्तरदायित्व का समुचित निर्वाह किया। में उनकी यशपताका फहरा रही है। साहू शाति प्रसाद जी समाज ने जहाँ भी प्रापको प्रामंत्रित किया, वहाँ का जीवन समाज को प्रादर्शस्वरूप है। इसलिये नही कि जाकर प्रापने अपनी बहुमूल्य सेवाएं अर्पित की। किसी वे समृद्धिशाली थे, प्रत्युत वे कर्तव्यनिष्ठ सरल हृदय लगन भी प्रात या नगर का जैन समाज उनका सौहार्द्रपा परम शील समाज के विनम्र सेवक थे। समाज सेवा का व्रत प्राह्लादिन हो अपना महोभाग्य मानता था। प्रापकी उप- उन्होंने प्राजीवन निबाहा। स्थिति में समाज के वर्षों से प्रवरुद्ध कार्य अप्रत्याशित यह दुखद सत्य है कि समाज एक महान शुभचिंतक गति से अग्रसर होने लगते थे। यह अतिशयोक्ति न होगी के नेतृत्व से सदैव के लिये वंचित हो गया। यद्यपि उनका कि प्राप वर्तमान युग मे समाज के प्रमुख कर्णधार थे। पार्थिव शरीर हमारे बीच नही है, तथापि उनके महत्वपूर्ण अनेक विवादग्रस्त विषय मापने निपटाये । कार्य उनके जीवंत स्मारक के रूप में सदैव रहेगे एवं पदप्राप पूजीपतियों में अपने हंसमुख मिलनसार और क्षीर. पद पर युगो-युगों तक वे उनका स्मरण कराते रहेगे। नीर विवकी स्वभाव के कारण प्रपवाद स्वरूप थे । प्रापने साहूजी के प्रति अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करते हुये इस उक्ति को चरितार्थ कर दिया था कि जैसे पत्र-पुष्प- साह परिवार के प्रति हार्दिक सवेदना व्यक्त करती हूँ। फलों से समृद्ध वृक्ष सहज ही झुक जाते हैं, उसी प्रकार जैन जगत को उनके उत्तराधिकारियों से भी प्राशा ही भौतिक विभूति के साथ गुणसम्पन्नता से युक्त प्राप नहीं वरन पूर्ण विश्वास है कि वे उनके द्वारा प्रारंभ किये प्रकृततः विशेष नम्रीभूत थे। पापमे कुछ ऐसी विलक्षण गये रचनात्मक कार्यों को भविष्य में भी अविरत रखेंगे।
SR No.538031
Book TitleAnekant 1978 Book 31 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulprasad Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1978
Total Pages223
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy