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________________ दानवीर श्रावक शिरोमणि - श्रीमहेन्द्र कुमार जैन, दिल्ली सरल स्वभावो, धर्मनिष्ठ, समाजसेवी, निरभिमानी, में प्रवेश किया। वहां से फिर प्रागरा विश्वविद्यालय में प्रा राष्ट्रसेवो, अन्तर्राष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त उद्योगपति, दानवीर, गये । प्रागरा विश्वविद्यालय से वी०० प्रथम श्रेणी में पास श्रावक शिरोमणि, साह शान्ति प्रसाद जैन का भारत की किया । बस्ततः प्राप साद जन का भारत को किया । वस्तुतः प्रापका समूचा विद्यार्थी जीवन प्रथम श्रेणी राजधानी दिल्ली मे गत वर्ष बृहस्पतिवार, दिनांक 27 का रहा और यह वेवन अध्ययन और ज्ञानोपार्जन की दष्टि अक्टबर, 1977 को प्रात: 11 बजे देहावसान हुआ था। से ही नही वरन अन्य दप्टियो स भी उल्लेखनीय था। उनमें समाज सेवा, राष्ट्र सेवा, साहित्य व संस्कृति के क्षेत्र और वे सभी सदगुण और सदतिया विकसित हुई जो सफलता होक्षणिक, प्रौद्योगिक एवं पत्रकारिता जगत् शोकाकुल हो के शिखर तक पहुंचने के लिए प्रावश्यक है । उठा । सुहास्य, सौम्य मुद्रा में विकसित, सादगी, मिलन- उद्योग के क्षेत्र मे ग्रापने तीसरे दशक में पदार्पण किया सारिता, सरलता, सौजन्य, प्रातिथ्यशीलता, गुम्भक्ति, था और प्रारम्भ से ही अपनी दष्टि इस प्रोर केद्रित की लोकप्रियता, धर्मनिष्ठा एवं एकता के प्रतीक साहू शान्ति कि न केवल देश के उद्योग-व्यवसाय का विकाम पौर प्रसाद जैन के निधन से प्राधार-स्तम्भ टूट गया। इससे अभिवर्द्धन हो, बल्कि संचालन प्रणालियों मे भी नये से समाज को ही नही अपित राष्ट्र को बड़ी क्षति पहुंची नये प्राविधिक रूपों का क्रियान्वयन हो। इसके लिये प्रापने जिसकी पूर्ति होना सम्भव नही है। शुक्रवार, दिनांक 27 स्वयं विभिन्न प्राधुनिक पद्धतियों का गम्भीर अध्ययन अक्टूबर, 1978 का दिवम उनकी प्रथम पुण्य तिथि का किया तथा विविध विषय-क्षेत्रों में निरन्तर गवेषणाएं अवसर है । हम सबका कर्तव्य है कि हम उनका स्मरण कराई। प्रर्थ शास्त्र और वित्तीय सिद्धान्तों पौर पद्धतियो करे, उनके द्वारा पालोकित मार्ग का अनुकरण करें, तथा का पापका बड़ा व्यापक और विशेष अध्ययन था। प्रत्येक पुण्य तिथि को उपकृत भाव से मनायें। विषय से सम्बद्ध प्रांकड़ो एव विवरण की जानकारी इस श्री शान्ति प्रसाद जी की प्रेरणा व मार्ग दर्शन से प्रकार हृदयंगम थी कि वह देश-विदेश के प्राधिक मामलों भगवान महावीर का 2500 वां निर्वाण महोत्सव राष्ट्र व के तथ्यों को पूरे परिप्रेक्ष्य मे देख कर सही निष्कर्ष निकालते अन्तराष्ट्रीय स्तर पर व्यापक सफलता से सम्पन्न हुमा। थे और अपनी प्रतिभा से सबको चकित कर देते थे। उनके सक्रिय प्रयत्न के कारण समग्र समाज में इस महो- विशेष रूप से, भारतीय उद्यम और भारतीय क्षमता के त्सव वर्ष में एकता स्थापित हुई। प्रति प्राप अपने प्रौद्योगिक जीवन के प्रारम्भ से ही अत्यन्त उतर प्रदेश के अन्तर्गत नजीबाबाद के पुराने घरानो प्रास्थावान् रहे। में साहू जैन घराना बहुत प्रतिष्ठित रहा है। शान्ति साहू साहब ने अपने इन उद्देश्यों की पूर्ति को लक्ष्य में प्रसाद जी का जन्म इसी नगर पोर घराने मे सन् 1911 रखते हुए आवश्यकता के अनुरूप अन्यान्य देशों का भ्रमणमे हुमा था। उनके पितामह साहू सलेखचन्द जैन, पिता पर्यटन भी किया। सर्व प्रथम 1935 में वे डच ईस्ट इण्डीज श्री दीवानचन्द जी और माता मूर्तिदेवी जन-जन मे गए. फिर 1945 में मास्ट्रलिया और 1954 में सोवियत श्रद्धेय थे। रूस । ये तीनों यात्राएं उन्होंने भारतीय प्रौद्योगिक प्रतिआपकी प्रारम्भिक शिक्षा नजीबाबाद शिक्षा केन्द्रों में निधि के रूप में की थीं और परिणामों की दृष्टि से वह हई। हाई स्कूल करने के बाद मापने काशी विश्वविद्यालय अत्यन्त उल्लेखनीय मानी जाती हैं। विटेम, अमरीका
SR No.538031
Book TitleAnekant 1978 Book 31 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulprasad Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1978
Total Pages223
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size12 MB
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