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________________ महाप्रभावक श्रावक शिरोमणि 1 पण्डित सुमेरचन्द्र जैन, दिल्ली उन्नीसवीं शताब्दी में जैन धर्म और जैन सस्कृति के नहीं । इस पुस्तक में उनके सम्बन्ध में लिखा था। प्रभ्युदय के लिए जिन तेजस्वी . असाधारण प्रतिभासपन्न, चतुर्विध संघ में किमते कितना श्रद्धा का भाग अपने दानवीर महान पात्मामों ने जन्म लेकर लोक कल्याणकारी हृदय के विकसित पुष्पों से भरकर पुष्पांजलि २५०० वर्षों प्राश्चर्यजनक कार्य किए उनमे स्वनामधन्य सेठमाणिकचद्र के पश्चात् वीर भगवान के चरणों में अपित की, इसका जी जहरी पोर जैन समाज के अनभिशिक्त मम्राट तो हम सभी मल्यांकन नही कर सकते । परन्तु यह बात सवराजा सेठ हकमचन्द जी थे । उन के पश्चात सर्वतोमुखी हप अवश्य जानते है कि उसमे उमग से भरकर कृतकारित प्रतिभा को लेकर भ० महावीर के शासन को और अहिंसा- अनुमोदना से और तन, मन, धन से मर्वत्र जागति और स्मक सस्कृति के उत्थान के लिए जिन्होंने अथक परिश्रम प्रेरणा का स्रोत जिसके बारा हमावे हे स्वनामधन्य किया उनका नाम काव्य प्रतिष्ठित महाप्रभावक श्रावक लब्बप्रतिष्ठित जैन समाज के मुकुटमणि साहू शान्ति शिरोमणि साह शांति प्रसाद जी है।। प्रसादजी है । वे समाज के ऐसे ज्योतिर्मान देदीप्यमान रत्न साहूजी की प्रतिभा चतुर्मुखी थी। उन्होंने व्यापार, है जो अस्वस्थ होने पर भी भ० महावीर निर्वाण महोत्सव तीर्थ भक्ति, जिनवाणी भक्ति समाज निर्माण का महान के लिए सतत जागरूक रहे । समाज के मार्गदर्शक जैन कार्य, घोन्नति की तीव्र प्राकांक्षा पौर अध्यात्मज्ञान को समाज के सभी मुनिजनों, त्यागियों, व्रती विद्वानों और पिपासा, इन सभी विषयो मे उन्होन महत्वपूर्ण कार्य किए श्रावक वर्ग के प्रिय रहे। इस उत्सव की सफलता का जिन्हें हम युग-युग तक याद करते रहेंगे। श्रेय साहूजी की तीन लगन को है जिन्होंने अपनी वे भारतीय माता क ऐसे दिव्य सपूत थे जो जीवन निष्ठा और कर्तव्यशीलता से समाज के मन को मोह लिया भर विविध प्रकार से जन संस्कृति, हिंसात्मक विचार- प्रौर उत्सव में चार चाद लगा दिए । धारा और भारतीय दिव्य विचारों के पोषण के लिए वैष्णव कुल मे जन्म लेने पर भी श्रीमती रमा रानी सतत प्रयत्नशील रहे। जी के मन मे जैन धर्म और जैन संस्कृति के प्रति बड़ी भ० महावीर स्वामी के २५००वे निर्माण महोत्सव भक्ति थी। वे सहजी को सतत धार्मिक कार्यों में प्रोत्साहन पर उन्होंने जो प्रसाधारण कार्य किए, उन्हे देख हमे भिक्ष- दिया करती थी। गजवारावेल (जो महापराक्रमी पोर शक्तिशाली नरेश था यद्यपि साहूजी का अन्तःकरण स्वतः जिन शासन की पौर जिसने दुर्दान्त शत्रु को परास्तकर कुमारी पर्वत पर प्रभावना करने म सदैव उत्साहित रहता था परन्तु रमा १७गिरि मे धर्मोद्योतन का महान कार्य किया) को याद जी का सहयोग सोने मे सुगन्धि की तरह चरितार्थ हुमा। भा गई। जैन सस्कृति और जैन धर्म के उत्थान मे सदैव दिल्ली में भगवान महावीर के २५००वें निर्वाण पर जैन महिलामो ने मसाधारण शक्ति लगाकर माश्चर्यमहोत्सव में एक छोटी-सी पुस्तक जब साहजी को दिई जनक कार्य किए है। प्राचीन काल में अनेक तपस्विनी, दान तो बोले कि 'तुमने तो सभी की प्रशंसा लिख दी।" गीला, वीरप्रसवा, शूरवीर, तेजस्वी, शक्तिशाली, वीरा. वस्तुतः जिन्होंने निर्वाण महोत्सव पर क्रियात्मक सह. ना लेखिका, कवियित्री, प्रत्यक, बुद्धिमती नारी रल हुई योग दिया इसमे उन्ही महानुभावो की प्रशसा है मन्य को जिन्होंने जिन शासन को उद्योग करने में भी प्रभावना मन
SR No.538031
Book TitleAnekant 1978 Book 31 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulprasad Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1978
Total Pages223
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size12 MB
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