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________________ पुरातत्त्व के अमर प्रेमी 0 डा. सुरेन्द्र कुमार प्रार्य, उज्जैन साहजी अपने बहुविधि व्यक्तित्व के कारण चिर. था। उसके लिए इस संग्रहालय की मूर्तियों का वर्गीकरण स्मरणीय थे। वे एक सफल उद्योगपति, जागरुक विचारक करके एक विस्तृत लेख भेजने को लिखा था। मैंने व पं. और सामाजिक कार्यकर्ता के साथ-साथ धर्म, दर्शन, कला, सत्यंधर कुमार जी ने संयुक्त रूप से एक लेख भेजा था जो राजनीति पौर साहित्य में भी विशेष रुचि रखते थे। भारत उस प्रभ्य के भाग-२ में प्रध्याय ३८ में पृष्ठ ५८७ से ५८८ देश की प्राचीन सपदा व प्रतीत की गरिमा के प्रसंगों में तक छपा भी, और लगभग १५ चित्र मूर्तियो के भेजे। मापका मन अधिक रमता था। उनका पुरातत्व में भी संग्रहालय में मालव प्रदेश के बदनावर, चोर, विशेष आकर्षण था और एक जागरूक पाठक की भांति जामनेर, ईसागढ, सुन्दरसी, मक्सी, प्राष्टा, इंदार मादि हर उत्खनन मोर नई पुरातात्विक उपलब्धियों पर लेख, स्थानों से प्रतिमाएं एकत्र की गई थीं व उनका संग्रह सम्मरण व रिपोर्ट पढा करते थे। मेरा उनसे कभी कर यहाँ स्थापित करने का समय व महाकाल क्षेत्र की माक्षात्कार न हो सका, परन्तु पत्रों द्वारा सूचनाप्रो का व कालियादह की शिवनत्य व शिव पार्वती, सरस्वती पादान-प्रदान होता रहता था, और उसी पत्र-व्यवहार प्रादि प्रतिमानों का हवाला दिया था, तब साहजी ने लिखा के प्राधार पर यह स्पष्ट होता है कि प्रातःस्मरणीय श्री था कि यह जैन व जैनेतर ब्राह्मण शेवधर्म की प्रतिभामों साहजी पुरातत्व विषय मे अत्यधिक रुचि रखते थे। का एक भारतीय स्तर का संग्रहालय है तथा उसका विधि" उज्जैन के मालवा प्रान्तीय दिगम्बर जैन संग्रहालय, । वत प्राकलन होना चाहिए-इससे भारतीय संस्कृति के जयसिंह पुरा के विषय मे उनकी गहरी रुचि थी। यह सग्रहा. वत् लय पंडिन सत्यधरकुमार सेठी एवं श्री भपेन्द्रकुमार सेठी उज्जवल पक्ष का सबल रूप विद्वानों के समक्ष पाया है। उ साहजी की इच्छा थी कि यह संग्रहालय उज्जैन का के अथक प्रयासों से स्थापित किया गया था। इस संग्रहालय की मतिशिल्प के कालक्रमानसार व्यवस्था के लिए मैं एक प्रमुख प्राकषण कन्द्र बने और देश-विदेश के विमान इस पोर प्राकर्षित हो। हमने उनकी इच्छानुसार एक सन् १९६८ से ही क्रियाशील था । डा. वि. भी. वाकण सचित्र मलबम, मूर्ति विवरण, पहचान, लांछन, प्रायुध, कर, श्री नारायण भाटी, श्री दीप चन्द जैन, श्री लालबहादुर यक्ष-यक्षिणी व पादपीठ के शिलालेखों के पाचन के साथ तोमर के साथ मैंने समस्त ५१० प्रतिमानों का क्रमांकी. करण, अभिलेखों की प्रतिलिपि एवं मनि सौष्ठव का एक तयार किया। न्यूमायर इरविन (मास्ट्रिया), बेनेट पिटर वहत केटलाग तैयार किया था। उस केटलाग को ज्ञानपीठ (लंदन), लोथार बांके (मास्ट्रिया) व ऋजर (इगलैड) ने इसका मूर्तिशिल्प देखा, फोटोग्राफ लिए व इसकी मूर्तियों की प्रोर प्रकाशनार्थ भेजा गया। इसी बीच अखिल भारतीय प्रोरिएन्टल कान्फ्रेंस का उज्जैन अधिवेशन हो रहा का प्रकाशन किया। साहूजी ने पत्र में लिखा था कि था, प्रतः एक परिचय पुस्तिका इस संग्रहालय की प्रका- मालवा के जैन तीर्थों पर एक पुस्तक तैयार की जाय। उसी शित की जो समस्त कलाप्रेमी प्रबुद्ध पाठको को वितरित शृखला में मैंने "मक्सी जैन तीर्थ : एक परिचय व इतिकी गई । मैंने एक प्रति प्रादरणीय साह जी के पास भेजी हास" पुस्तक लिखी जो हाल ही में प्रकाशित हुई है। थी और उनका मंतव्य मांगा था। इस पर साहूजी ने ऊन, ओंकारेश्वर, बड़वानी, बनडिया पर भी मैं लेखन कर एक विस्तृत पत्र दिया था कि परिचय पुस्तिका को पढकर रहा है। सभी के प्रेरणास्रोत पादरणीय साहजी थे। उन्हे हर्ष हुमा व किन-किन स्थानों से कब-कब संग्रह किया साहूजी का मत था कि प्राचीन मूर्तियो मे युगों की गया है और जैन प्रतिमानों पर शोध करने वालों को श्रद्धा समन्वित रही है। प्रतः यह हमारे लिए धरोहर है। यहाँ किस प्रकार की सुविधा दी जाती है? क्या जैन धर्म राष्ट्र के लिए यह थाती है जिस पर यगों तक भारके अतिरिक्त भी इस संग्रहालय मे अन्य प्रतिमाएं हैं ? तीयो को गर्व होगा। साथ ही ज्ञानपीठ द्वारा प्रकाशित 'जन मार्ट एण्ड मार्कि- अन्त में उनके प्रति श्रद्धांजली प्रस्तुत करत हूं । टेक्चर' डा. अमलानन्द घोष द्वारा संपादित होने वाला विक्रम विश्वविद्याल, उज्जैन (मध्य प्रदेश) 000
SR No.538031
Book TitleAnekant 1978 Book 31 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulprasad Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1978
Total Pages223
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size12 MB
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