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________________ ४. १ कि. ३-४ यह एक बहुत बड़ा प्रादर्श है। और अनेकांत विचारधारा को। साहजी ने जीवन के इसी तरह, भारत के समस्त तीर्थों को प्रकाश में लाने अन्त तक एकता के लिए अथक प्रयास किया और इसको के लिए समाज के सुप्रसिद्ध विद्वान् पं. बलभद्रजी साहू मूर्त रूप देने के लिए दि. जैन महासमिति जैसी विराट साहब ने प्रेरणायें दी जिससे प्रभावित होकर भारत के सस्था को जन्म दिया, जिसका स्थान भारत के कोने-२ कोने-कोने मे जाकर पंडितजी ने जैन तीर्थ का इतिहास मे वटवृक्ष की तरह साकार हो रहा है। यदि समाज बटोरा और उसे वे प्रकाश मे लाय। ने साहजी की इग भावना को साकार रूप दे डाला तो २५००वें निर्वाण महोत्सव के इस रूप में सफल होने इस युग में उनके प्रति जैन समाज की यह सबसे बडी का श्रेय भी माननीय साहू साहब को है जिन्होने अपनी श्रद्धाजलि होगी। समस्त शक्तियां लगाकर गष्ट्रीय स्तर पर इसका प्रायो साहूजी अनेक संस्थानो के सस्थापक, व्यवस्थापक व जन करवाया। भगवान महावीर के निर्माण के बाद जनो सचालक थे। समाज के कार्यकर्ताप्रो के प्रति उनका का यह पहला प्रायोजन है जो सार्वजनिक रूप से विश्व अगाध प्रेम था। उनका सम्मान देते थे और अपने मकान के बौन २ मे मनाया गया। इस प्रायोजन स मर्वसाधारण पर बहा भारी प्रातिथ्य करते थे। कई बार मस्थानो को यह समझने का प्रपमर मिला कि जन धर्म क मूल के अधिवेशनो म मझे उनके प्रत्यक्ष दर्शन करने के अवसर सिवान्त अहिंसा, अपरिग्रह और अन कात राष्ट्र के लिए मिल है। वे म देखते ही प्रागे बढ़कर गले लगाते थे कितने उपयोगी है। पौर मेरी पीठ ठोका करते थे। उनमे समाज के कार्यसाहजी जितने धार्मिक और साहित्यिक प्रेमी थे उतन पति जतन पासीयतामा कभी मतही वे समाजसुधारक भी थे । वे सामाजिक रूढियो के कदर ढया क कट्टर सर नही पाया जब पर्यपणराजपर्व और दीपावली पर मुझे विरोधी थे । वे हमेशा समाज को वर्तमान रूढ़ियों से वे भल जाते । उनमे वात्सल्य और समता का जबर्दस्त सममत कराने के लिए प्रयास किया करते थे । उनको विवाह- स्वरा था। ऐसे एक नहीं अनेकों उदाहरण है। शादियो के प्रदर्शन बिल्कुल पसन्द नही थे। वे चाहते थे मैं यहां स्वर्गीया रमा रानीजी को भी नही भूल कि प्रत्यन्त सादगी के साथ ये सम्पन्न हों। जहा तक मेरा सकता। जिन की सही प्रेरणामों से ही माहूजी का जीवन अनुमान है, उन्होंने अपने बच्चो की शादियों में किसी भी महान् बना । रमाजी सही रूप मे प्रादर्श देवी थी। प्रकार का दिखावा व प्रदर्शन नहीं किया था। वे अ भारतवर्षीय दि० जैन परिषद की विचारधारा के पूर्ण समर्थक इतने विशाल कुटम्ब के बीच रहते हुए भी उन्होने थे और उसके माध्यम से वे समाज को हमेशा सबोधित अपने कर्तव्य को निभाया व स्वयं अनेक संस्थानों की करते थे। साहूजी के विचारों में यह भी विशेषता थी संचालन किया । कि वे समन्वय विचारधारा के सबसे बड़े व्यक्ति थे। परि- मैं तो यही निवेवन करना चाहूगा कि जैन समाज षद के सर्वेसर्वा होने पर भी महासभा और परिषद को साहू जी जैसे प्रादर्श पुरुषो के पदचिह्नों पर चलकर उनके एक करने के लिए उन्होंने कई बार प्रयास किया। साह स नसन स्वप्न को साकार करे और उनकी संगठन पोर एकता जी चाहते थे कि हम संगठन को महसा दें जिससे हमारी की भावना को मूर्त रूप दे जिससे कि स्वर्गीय प्रात्मा को शक्तियों का उपयोग प्रच्छाइयो में हो। साहजी न बदर शाति प्राप्त हो। बीस पंथी थे और न तेरह पथी थे। वे पंथ से ऊपर उठे मैं भी उस महामानव के चरणों में सही रूप से श्रद्धा हए विचारों के थे । वे कभी भी वैचारिक संघर्ष में नही सुमन अर्पित करता हुमा भगवान महावीर से प्रार्थना करता गए। वे सही रूप में मनेकांतवादी थे। इसीलिए वे हैं कि वे मझे भी वह शक्ति प्रदान करें जिससे मैं उनके भाषणों को महत्व नही देते थे। वे महत्व देते थे अहिंसा पदचिह्नों पर चल सक। 000
SR No.538031
Book TitleAnekant 1978 Book 31 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulprasad Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1978
Total Pages223
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size12 MB
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