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________________ समाज और राष्ट्र की सेवा के लिए समर्पित व्यक्तित्व श्री सत्यंधर कुमार सेठी, उज्जन भारतीय साहित्य में मानव जीवन की मौलिकता का घराने में हुपा, वे कितने बड़े उद्योगपति थे इसमें मैं नहीं अंकन करने के लिए कही भी किपी भी तरह की मिशाल जाना चाहता । इन चीजों से किसी का व्यक्तित्व नहीं देखने को नहीं मिलती। इसलिए मानव जीव को प्रपो- मां जा सकता। महान वह है जो इन सबसे अपने लिक जीवन माना है। इस जीवन से सम्बन्धित पौराणिक मापको बचाकर देश व समाज की सेवामों में अपने ग्रंथों में अनेक कथायें महान साधको द्वारा लिखी गई प्रापको अर्पित कर देता है। साहजी के जीवन से सन. हैं जिनमें बतलाया गया है कि मानव ने अपने जीवन धित अनेक लेख व ग्रथ प्रकाशित हए है और होते रहेगे. का निर्माण करके किस तरह मनवना प्राप्त की है और जिनमें उनके जीवन की झांकिया अनेकों मिलेंगी। लेकिन उसके बाद मत्य, हिमा पोर अनेकात विचारधारा के जहां तक मैं उनके सम्पर्क में पाया हूं, मैंने उनके जीवन प्राधार से अपने प्रापको देश, राष्ट्र और प्राणी सेवा के मे व कार्यों से यही अनुभव लिया कि वे एक अलिप्त लिए समर्पित कर दिया है। तीर्थकर जैसे महापुरुषो की श्रावक की तरह अपने जीवन के निर्माण में जुटे रहते थे। पूर्व भव की जीवनियों में भी ऐसे सकरा मिलते है जिनमे मैंने हमेशा उनके हृदय में उदारता मोर करुणा के दर्शन वे साधना के बल पर विश्व के समस्त प्राणियो की सेवा का किए व चेहरे पर हमेशा शाति के भाव । न उनमें प्रभिः व्रत लेते है । सेवा ही जीवन का एक महान व्रत है जिसका मान की भावनाये थी और न किसी प्रकार की प्रतिष्ठा सम्बन्ध न राज्य शासन से है और न धन सम्पदा से पोर की भावनायें। उनमे हमेशा लघुता और मानव भावनामो जिसका स्पष्ट उदाहरण भगवान महावीर का है । भगवान के दर्शन होते थे। वे सही रूप मे एक धार्मिक महापुरुष महावीर अपार वैभव और राज्य सम्पदा के बीच पैदा थे। उनके जीवन का लक्ष्य प्रनाथ, गरीब और अबलामों हए, लेकिन उनके जीवन का लक्ष्य प्रात्मविश्वास के साथ की सेवा का था और साहित्य प्रचार व इतिहास-प्रकाश निस्तर प्राणी संवा व राष्ट्र सेवा का रहा और वे इस का था, जिसके लिए प्रापने प्रचुर मात्रा में धन का उपसंकल्प की पूर्ति मे लगे रहे और उन्होंने अपने इस महान योग किया। मानव जीवन को सफल किया। ऐसे महापुरुष हमेशा से गरीब छात्रों के लिए मापन दिल खोलकर छात्रवृत्ति होते पाये है पोर भविष्य में होते रहेगे। इस युग म फड खोले व प्रसहाय प्रबलामो को ऊचा उठाने के लिए भी अनेक सतों और विद्वानो ने भी जन्म लिया है जिनके महायक फण्ड खोले , जिनसे प्राज भी इस वर्ग का प्रत्यद्वारा राष्ट्र के प्राणियो की अनन्त सेवाये हुई है जिनमे । धिक उत्थान हो रहा है। इसी तरह, प्रापने साहित्य और पं. टोडरमलजी, पं० सदासुख जी, प. बनारसीदासजी, इतिहास के प्रकार के लिए ज्ञानपीठ जैसी महान सस्था प० गणेशप्रसादजी प्रादि के नाम उल्लेखनीय है। को जन्म दिया, जिसके द्वारा साहित्य जगत की इन विशिष्ट पुरुषो के स्वर्गवाम के बाद भी इस पाज भी सेवायें हो रही है। इस संस्थान द्वारा प्रलभ्य जैन भारत भूमि पर एक ऐसी विभूति ने जन्म लिया, जिसका ग्रन्थों का सरल और स्पष्ट भाषा में प्रकाशन करके जो जन्म जन कुल मेव विशाल वैभव के बीच में होते हर जैन साहित्य व इतिहास को प्रकाश में लाने का प्रयत्न भी उसने अपने जीवन की समस्त सेवायें राष्ट्र पोर समाज किया गया है वह जैन इतिहास मे हमेशा स्मरणीय रहेगा। के विकास के लिए अर्पित कर दी । वह विभूति है श्री साहू जैन समाज के लिए माहूजी की यह एक ऐसी देन है शान्ति प्रसाद जैन, जिनके संबन्ध में हम गौरव के साथ जिसके लिए जैन समजता रहेगा। यह देन जैनों तक लिख सकते हैं या कह सकते हैं कि इस महान व्यक्ति का ही सीमित नही लेकिन भारतीय वाङ्मय के लिए भो महान जीवन किसी एक जाति विशेष व समाज विशेष के सर्वोपरि देन है जो प्रतिवर्ष सर्वोपरि साहित्य के लेखक को लिए नही रहा । साहूजी का जन्म कहां हुमा, कितने बड़े एक साख रुपये की राशि का पारितोषिक देती रही है।
SR No.538031
Book TitleAnekant 1978 Book 31 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulprasad Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1978
Total Pages223
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size12 MB
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