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________________ सामाजिक इतिहास का एक युगांत श्री चन्दनमल थी। श्री साह शान्तिप्रमाद जैन के २७ अक्तूबर, १९७७ णाए कराई। प्रर्थशास्त्र और वित्तीय सिद्धान्तों और पद्ध को प्रात: ११ बजे दिल्ली मे देहावमन होने पर समस्त तियों का प्रापका बड़ा व्यापक प्रौर विशद् अध्ययन था, जैन समाज एवं देश. प्रौद्योगिक, मास्कृतिक साहित्यिक और प्रत्येक विषय से सम्बद्ध पाकड़ों एव विवरण की जानक्षेत्र शोकमग्न हो गए। श्री माह जी को दिल का दौरा कारी इस प्रकार हृदयगम थी कि वह देश-विदेश के एक सप्ताह पूर्व लडा था और उन्हें तत्काल स्थानीय सर माथिक मामलो के तथ्यों का पूरे परिप्रेक्ष्य में देखक : सही गंगाराम अस्पताल के नसिंग होम में ले जाया गया था। निष्कर्ष निकालत थे और अपनी प्रतिभा से सबको चकित तबियत काफी कुछ संभल गई थी, किन्तु फिर एक दो कर देते थे। विशेष रूप से, भारतीय उद्यम और भारतीय हल्के दौरे पीर पड़ गये और उनका देह वमन हो गया। क्षमता के प्रति पार अपने प्रौद्योगिक जीवन के प्रारम्भ उत्तर प्रदेश के अन्तर्गत नजीबाबाद के पुगने घरानों में दो या पायावान रहे। में साह जैन घराना बहुत प्रष्टिन रहा है। श्री शान्ति साह साहब ने अपने इन उद्देश्यो को पूनि को दष्टिप्रसादजी का जन्म इसी नगर और घराने में सन् १९१२ लक्ष्य में रखते हुए प्रावश्यकता के अनुरूप अन्यान्य देशों में हमा था। उनके पितामह साहू सकचन्द जैन थे. का भ्रमण-पर्यटन भी किया। सर्वप्रथम १९३६ मे वह च. पिताजी दीवानचादजी और माता श्रीमती मूर्तिदेवीजी ईस्ट-इडीज गये, फिर १९४५ में प्रास्ट्रलिया और फिर १९५४ में मोवियत रूस । ये तीन पात्राए उन्हाने भार पापको प्रारम्भिक शिक्षा नजीबाबाद के शिक्षा केन्द्रों तीय प्रौद्योगिक प्रतिनिधि के रूप में की थी पोर परिणामो में ह। हाई स्कूल करने के बाद प्रापने काशो विविद्या- कोटि सेवे BIHA लेत. लय में प्रवेश किया। वहां से फिर पागरा विश्वविद्यालय प्रमरीका, जर्मनी तथा अन्य वई योगेपीय देशो का भी में मा गये । पागरा विश्वविद्यालय से ही बी. एम.सी. a मापने परिभ्रमण किया और अनुभवो के समावेशन द्वारा n t परीक्षा प्रथम श्रेणी में पास की। वस्तुतः प्रापका ममूवा साह जैन उद्योगो को अधिकाधिक समृद्ध किया। ही विद्यार्थी जीवन प्रथम श्रेणी का रहा और यह केवल सचमुच जिस सहजता के साथ उद्योग एवं व्यवसाय के प्रध्ययन और ज्ञानोपार्जन की दृष्टि से ही न हो, वरन् क्षेत्र में साहू जी ने सफलता प्राप्त की, वह उनको स्वभाव रियों से भी। वे सभी सद्गुण भोर सदद्वात्तया प्राप गत प्रतिभा और सूझबूझ, सगठन क्षमता तथा अध्यवसाय में विकसित हां,जो सफलता के शिखर तक पहुंचने के और मनमोलता को माला लिए पावश्यक है। ४५ वर्षों में पापने विभिन्न प्रकार और प्रकृति के उद्योग उद्योग के क्षेत्र में पापने तीसरे दशक में पदार्पण धन्धों की एक विस्तृत श्रेणी की स्थापना एवं सचालना किया था और प्रारम्भ से ही अपनी दृष्टि इस भोर करके देश के प्रौद्योगिक विकास में योगदान किया,व भनेक केन्द्रित की किन केवल देश के उद्योग, व्यवसाय का उद्योगो का नेतृत्व किया । इस अंणी के अन्तर्गत जहा एक. विकास और पभिवर्द्धन हो बल्कि सबालनप्रणालियों में मोर कागज, चीनी, वनस्पति, सीमेंट, एसबेस्ट्स प्रोडक्ट्स भी नये-से-नये प्राविधिकको का मन्वयन हो। इसके पाट निर्मित वस्तुए, भारी रसायन, नाइट्रोजन खाद, लिए मारने स्वय विभिन्न माधुनिक पद्धतियों का गम्भीर पावर पस्कोहल, नाईवुड, साइकिल, कोयल को खाने, अध्ययन किया तथा विविध विषय क्षेत्रों में निरन्तर गवेष- लाईट रेलवे इजीनियरिंग वसं पाते है, वहाँ दूसरी पोर
SR No.538031
Book TitleAnekant 1978 Book 31 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulprasad Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1978
Total Pages223
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size12 MB
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